फिर लौट सकता है दोने पत्तल का दौर, बस सोचने की है जरूरत

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कोई समय था जब शादी या किसी समारोह में विभिन्न प्रकार के पेड़ों के पत्तों से बनने वाले दोना-पत्तल का प्रयोग खाना परोसने के लिए किया जाता था। पिछले कुछ दशकों से इनका प्रचलन लगभग समाप्त हो गया है। कारण कुछ भी रहा हो लेकिन इनका स्थान लिया थर्माकोल और प्लास्टिक से बनने वाले दोना-पत्तलों ने।

जी हां, लगभग हर शादी-ब्याह या छोटी सी बर्थडे पार्टी में अब आधुनिक मशीनों से बने दोना-पत्तलों में आपको खाने के लिए स्वादिष्ट पकवान परोसे जाते हैं और आप बड़े मजे से खाते हैं। लेकिन आज के समय में प्लास्टिक से होने वाली अनेक बीमारियों के कारण इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठने लगी है। कई स्थानों पर थर्माकोल और प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से बाजार में फिर पेड़ के पत्तों से बने दोने-पत्तलों की मांग बढ़ी रही है जिनसे कई क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।

ऐसा ही रोजगार का अवसर बनकर आया है थारू जनजाति की महिलाओं के लिए। भारत के कई राज्यों में आज भी कई जनजातियां जंगलों के आसपास में निवास करती है। आधुनिकता की चमक में थारू जनजाति का पुश्तैनी धंधा पेड़ के पत्ते से दोना-पत्तल बनाने का, थर्माकोल और प्लास्टिक के प्रचलन बढ़ने से विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया था। लेकिन एक बार फिर वहां दोने पत्तल का व्यवसाय रफ्तार पकड़ रहा है। साथ ही ईको फ्रेंडली यह कॉन्सेेप्ट हमें भी फिर से नई दिशा में सोचने के लिए भी कह रहा है।

सेहत के लिए भी फायदेमंद है पत्ते के दोना-पत्तल

थर्माकोल और प्लास्टिक से बने दोना-पत्तल की अपेक्षा पत्ते से बने दोना-पत्तल में भोजन करना काफी फायदेमंद है। ये दोना-पत्तल कई पेड़ों के पत्तों से बनती है जो कई औषधीय गुण से सम्पन्न होते हैं।

पलाश के पत्तों से बने पत्तल में भोजन करने से सोने के बर्तनों में भोजन करने जितना लाभ मिलता है। पाचन तंत्र से संबंधी रोगों में भी यह दोना-पत्तल लाभदायक है।

केले के दोना-पत्तल में भोजन से चांदी के बर्तन में भोजन करने जैसा लाभ मिलता है।

लगकवाग्रस्त (पैरालाइसिस) मरीजों को अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तल में और जोड़ों के दर्द से परेशान मरीजों को करंज की पत्तियों से बनने वाले पत्तल में भोजन कराने से लाभ मिलता है।

पर्यावरण के अनुकूल है पड़े से बने दोना—पत्तल

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पड़े से बने दोना-पत्तल में भोजन करना स्वास्थ्य के लिए तो फायदेमंद है ही साथ ही ये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं जबकि प्लास्टिक और थर्माकोल की पत्तल गलती है।

केवल बातों और शोधों से काम नहीं चलता है अगर कुछ बदलाव करना है तो हमें खुद से शुरुआत करनी होगी। पुराने जमाने के इस कॉन्सेप्ट को अपडेट वर्जन के साथ फिर से लॉन्च किया जा सकता है, जो बिजनेस भी बढ़ाएगा और लोगों को रोजगार भी देगा।

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