भारत के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का गुरुवार को पटना में 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वशिष्ठ नारायण 40 साल से मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थे और पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके निधन पर शोक जताया है।
वह अपने परिवार के साथ कुल्हरिया, पटना काम्पलेक्स में रहते थे। कुछ समय पहले ही उनकी तबीयत खराब होने पर उन्हें पीएमसीएच में भर्ती करवाया गया था, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बड़े ही अफसोस की बात है कि वशिष्ठ नारायण सिंह का शव 2 घंटे तक एंबुलेंस का इंतजार करता रहा। जिस महान वैज्ञानिक ने देश को इतना कुछ दिया वो गुमनामी का जीवन ही जी रहा था।
जीवन परिचय
वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म 2 अप्रैल, 1942 को बिहार राज्य के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में हुआ था। वशिष्ठ बचपन से ही होशियार थे। उन्होंने वर्ष 1961 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और बिहार बोर्ड का टॉपर छात्र बने। उन्होंने बाद में पटना के साइंस कॉलेज में अध्ययन किया। गणित में उच्च शिक्षा के लिए वह वर्ष 1963 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले गए और वर्ष 1969 में पीएचडी की उपाधि हासिल की। नारायण सिंह एक एसोसिएट साइंटिस्ट प्रोफेसर के रूप में नासा में शामिल हो गए।
वह वर्ष 1972 में भारत लौट आए और आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर नियुक्त हुए। अगले पांच वर्षों के दौरान, उन्होंने आईआईटी कानपुर, टीआईएफआर, मुंबई और आईएसआई, कोलकाता में भी पढ़ाया।
सिजोफ्रेनिया बीमारी ने गुमनामी में जीने को किया मजबूर
वशिष्ठ नारायण सिंह को करीब 40 साल से सिजोफ्रेनिया बीमारी ने जकड़ा हुआ था। वह अपने भाई अयोध्या सिंह के साथ पटना में रहते थे। एक वक्त था जब इस महान गणितज्ञ का लोहा भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी चलता था परंतु उन्हें सिजोफ्रेनिया बीमारी ने हमेशा के लिए गुमनाम बना दिया।
वशिष्ठ ने महान वैज्ञानिक आंइस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती दी थी। उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले जब 31 कम्प्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कम्प्यूटर ठीक होने पर उनक और कम्प्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था।
क्या है सिजोफ्रेनिया
सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) एक गंभीर मानसिक बीमारी है जिसमें मरीज को अधिकतर भ्रम और डरावने सपने दिखने या किसी के होने का आभास होने की शिकायत हो सकती है। यह बीमारी ज्यादातर 16 से 30 की उम्र के बीच में होती है। इसके मरीज जल्द ही जिंदगी से हताश हो जाते हैं और कई बार तो मरीज को आत्महत्या की प्रबल इच्छा तक हो जाती है। अधिकतर मामलो में मरीज को इस बीमारी से ग्रस्त होने के बारे में पता नहीं चल पाता है।
इस मानसिक बीमारी के लक्षण और संकेत हर पीड़ित व्यक्ति में अलग प्रकार के हो सकते हैं।
सिजोफ्रेनिया के लक्षण
इसके मरीज को भ्रम होने लगता है। उसे खुद को सताए जाने का आभास होने लगता है।
सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति को अजनबी आवाजें सुनाई देती हैं। उन्हें ऐसी चीजें दिखाई और महसूस होती हैं जो वास्तव में होती ही नहीं है।
इसके मरीजों में जीवन में कुछ करने की इच्छा समाप्त होने लगती है। मरीज दैनिक दिनचर्या के जरूरी काम जैसे कपड़े धोना और खाना बनाने तक को टालने लगता है।
सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति समाज से खुद को अलग-थलग कर लेते हैं। उन्हें अक्सर ऐसा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुंचाने या फिर मार डालना चाहते हैं। बॉलीवुड की मशहूर फिल्म एक्ट्रेस परवीन बाबी भी सिजोफ्रेनिया के इसी लक्षण की शिकार थी।
इसके मरीजों को दिखाई देने वाले मायावी दृश्य और भ्रम इतने असली होते हैं कि उसे यकीन ही नहीं होता है कि वह बीमार है।
इसके मरीज दवाओं से होने वाले साइड इफैक्ट्स के डर से उन्हें खाना पसंद नहीं करते हैं। उन्हें यह भी भय हो सकता है कि उन्हें दवाओं की जगह पर जहर दिया जा सकता है।
लाइलाज नहीं है यह बीमारी
इस बीमारी के विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी व्यक्ति को सिजोफ्रेनिया होने के कई कारण हो सकते हैं। कई शोधों में ऐसा पाया गया है कि कई बार आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारण मिलकर इंसान को सिजोफ्रेनिक बना देते हैं।
सिजोफ्रेनिया लाइलाज बीमारी नहीं है, इसका इलाज संभव है। इस बीमारी से लड़ने के लिए सिर्फ मरीज की इच्छाशक्ति और सही इलाज की आवश्यकता होती है। मनोवैज्ञानिक इस बीमारी के इलाज के लिए काउंसलिंग, साइकोथेरेपी और थेरेपी सेशन की मदद लेते हैं। साइकोलॉजिकल काउंसलिंग से सिजोफ्रेनिया के लक्षणों को ठीक करने में मदद मिलती है। यह एक गंभीर मानसिक बीमारी है और सही समय पर इलाज मिल जाए तो मरीज जल्द ही स्वस्थ होकर सामान्य जिंदगी बिता सकते हैं। सही इलाज से सिजोफ्रेनिया के लक्षण जल्दी ही दूर होने लगते हैं।