भारतीय अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए मोदी सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। इसी कोशिश में रिजर्व बैंक ने विमल जालान समिति की सिफारिशों पर अमल करते हुए सोमवार को रिकॉर्ड 1.76 लाख करोड़ रुपए का लाभांश और कैश रिजर्व मोदी सरकार को देने का निर्णय किया है। केंद्र सरकार की यह मांग काफी लंबे समय से चली आ रही थी, जिसे अब पूरा करने का निर्णय लिया गया है। अर्थशास्त्र विशेषज्ञों का मानना हैं कि इससे केंद्र सरकार को राजकोषीय घाटा बढ़ाए बिना ही मंद पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिलेगी।
यह केन्द्रीय बैंक की ओर से सरकार को दी जाने वाली राशि में सबसे बड़ी नकदी होगी। पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों को आरबीआई की बोर्ड मीटिंग में स्वीकार कर लिया। आरबीआई की ओर दी जाने वाली राशि 1.76 लाख करोड़ में वित्त वर्ष 2018-19 का अधिशेष 1,23,414 करोड़ रुपए और 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान शामिल है।
इसकी सिफारिश संशोधित आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क में की गई है। इस राशि के माध्यम से केन्द्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को आर्थिक मदद मिलेगी, ज्यादा खर्च की राह खुलेंगी और सरकार को राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत तक स्थिर रखने में मदद मिलेगी। लोकसभा 2019 चुनाव से पूर्व फरवरी में वित्त मंत्री पीयूष गोयल की ओर से पेश अंतरिम बजट में लक्ष्य 3.4% से नीचे लाया गया था।
इतनी बड़ी राशि पहली बार देगा आरबीआई
आरबीआई ने पिछले एक दशक में ऐसा दूसरी बार किया है जब उसने सरकार को 50,000 करोड़ रुपए से अधिक राशि देने का फैसला किया है। वर्ष 2014 की शुरुआत में वाई.एच. मेलेगम समिति की सिफारिश पर तीन साल की अवधि में केंद्र सरकार को 52,679 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए थे। इससे पूर्व की सरकारों को केंद्रीय बैंक की ओर से इस प्रकार की राशि दी गई थी। केंद्र सरकार को वर्ष 2007-08 में 15,011 करोड़, 2008-09 में 25,009 करोड़, 2009-10 में 18,759 करोड़, 2010-11 में 15,009 करोड़, 2011-12 में 16,010 करोड़, 2012-13 में 33,010 करोड़ और 2013-14 में 52,679 करोड़ रुपए दिए गए हैं।
बता दें कि, केंद्रीय बैंक प्रति वर्ष केंद्र सरकार को अधिशेष ट्रांसफर करती है। पिछले छह वर्षों में यह ट्रांसफर राशि 30 हजार से 65 हजार करोड़ रुपए की मध्य रही है। गत वर्ष आरबीआई ने सरकार को 50 हजार करोड़ रुपए, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 में मात्र 30,659 करोड़ रुपए लाभांश के रूप में दिए थे।
हालांकि, इस बार की मंजूर राशि पिछले पांच वर्षों के औसत 53 हजार करोड़ रुपए से तीन गुना अधिक है। आरबीआई के सामने समस्या यह है कि वह अपनी कुल अतिरिक्त पूंजी या लाभांश सरकार को ट्रांसफर नहीं करती है। यह राशि आर्थिक हालात खराब होने के समय के लिए बचाकर रखती है।
काफी समय से जारी था विवाद
1.76 लाख करोड़ रुपए की राशि को मंजूरी के बाद केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद खत्म हो गया है। इस मुद्दे को लेकर तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने 11 दिसंबर, 2018 को इस्तीफा दे दिया था।