राजेश्वरी चटर्जी: माइक्रोवेव इंजीनियरिंग के क्षेत्र में दिया था उल्लेखनीय योगदान

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Rajeshwari Chatterjee

भारत की पहली इंजीनियर महिला वैज्ञानिक राजेश्वरी चटर्जी की 24 जनवरी को 98वीं बर्थ एनिवर्सरी हैं। उन्होंने माइक्रोवेव इंजीनियरिंग और एंटीना इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया था। वह भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर रही और बाद में वहीं अध्यक्ष रही थी।

जीवन परिचय

राजेश्वरी चटर्जी का जन्म 24 जनवरी, 1922 को कर्नाटक में हुआ था। राजेश्वरी की प्राइमरी एजुकेशन उनकी दादी द्वारा स्थापित एक ‘स्पेशल इंग्लिश स्कूल’ में हुई थी। बाद में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए सेंट्रल कॉलेज ऑफ़ बैंगलोर में दाखिला लिया। यहां से उन्होंने गणित में बीएससी (ऑनर्स) और एमएससी की डिग्री प्राप्त की। वह मैसूर यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान पर रहीं। बीएससी और एमएससी परीक्षाओं में उनके बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें क्रमशः मम्मदी कृष्णराज वोडेयार पुरस्कार और एम टी नारायण अयंगर पुरस्कार और वाल्टर्स मेमोरियल पुरस्कार मिला।

उन्होंने एमएससी करने के बाद वर्ष 1943 में संचार के क्षेत्र में तत्कालीन विद्युत प्रौद्योगिकी विभाग में एक शोध छात्र के रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में प्रवेश लिया।

उनके समय में भारतीय महिलाओं को उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, फिर भी राजेश्वरी वर्ष 1950 के दशक में अमेरिका शिक्षा प्राप्त करने गई। उन्होंने मिशिगन विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग से अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1953 में उन्होंने प्रोफेसर विलियम गोल्ड डॉव के मार्गदर्शन में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।

इंजीनियरिंग विभाग की अध्यक्ष बनीं

राजेश्वरी पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने वर्ष 1953 में भारत लौट आईं। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। बाद में यहीं पर वह इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग की अध्यक्ष बनीं। इस क्षेत्र में स्पेशलिस्ट होने के कारण उन्हें इलेक्ट्रिक चुम्बकीय सिद्धांत, इलेक्ट्रॉन ट्यूब सर्किट और माइक्रोवेव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने का मौका मिला था।

निजी जीवन

राजेश्वरी ने अपने ही कॉलेज सहपाठी रहे शिशिर कुमार चटर्जी से शादी की। बाद में उन्होंने अपने पति के साथ माइक्रोवेव अनुसंधान प्रयोगशाला का निर्माण किया और माइक्रोवेव इंजीनियरिंग के क्षेत्र में शोध शुरू किया, जो भारत में इस तरह का पहला शोध था।

उन्होंने अपने जीवन में 100 से अधिक शोध पत्र लिखे और सात पुस्तकें लिखी। वर्ष 1982 में आईआईएससी से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने सामाजिक कार्यक्रमों पर काम किया, जिसमें भारतीय महिला अध्ययन संस्थान भी शामिल है।

उनके पति की वर्ष 1994 में मृत्यु हो गई। लेकिन राजेश्वरी ने सक्रिय जीवन जीना जारी रखा।

निधन

देश को माइक्रोवेव इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली राजेश्वरी का 3 सितम्बर, 2010 को मल्लेश्वरम में अपने घर में गिर गई। उन्हें चोट लगी तो इलाज के लिए हॉस्पिटल ले जाया गया लेकिन वह बच न सकी और दुनिया को अलविदा कह दिया।

देश में माइक्रोवेव और एंटीना इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके शानदार योगदान की सराहना करते हुए, केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने उन्हें भारत की पहली महिला उपलब्धिकर्ताओं में से एक के रूप में नामित किया।

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