राहुल गांधी में ये कॉन्फिडेंस कहां से आ रहा है?

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Rahul-Gandhi

लोकसभा चुनाव बस होने को हैं। सभी पार्टियां जनता को अपने अपने तरीके से लुभाने में लगी हैं। भारत का इतिहास रहा है राजनीति यहां चेहरे पर चलती है। राजनीति पक्ष की हो या विपक्ष की, बिना चेहरे के कोई पार्टी टिक नहीं पाती। उस एक चेहरे पर पार्टी काम करती है। मोदी तो खैर उदहारण है ही हम यहां बात विपक्ष की करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बोल पहले से काफी बदल गए हैं। भाषण वे अब पूरे कोन्फिडेंस के बिना नीचे देखे देते हैं। राहुल गांधी काफी बदल चुके हैं।

राहुल गांधी के हाल ही दिए भाषण में उनका गुस्सा, कोन्फिडेंस सब नजर आता है। क्या बोला क्या नहीं बोला उस पर हम नहीं जा रहे। राजनीति में राजनेता की अदा को बहुत कुछ समझा जाता है और वो नब्ज़ राहुल गांधी ने पकड़ी भी है।

ऐसा कोई जादू नहीं है जो हो गया है। लोकसभा चुनाव सर पर हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आने का पुरजोर प्रयास कर रही हैं। ऐसे में पार्टी का चेहरा बने हुए हैं राहुल गांधी। हर दिन नई प्रेस कॉन्फ्रेंस में नजर आ जाते हैं। विपक्ष को टारगेट करते हैं।

2013 की बात है जब मुद्दे पर बिना किसी तैयारी के राहुल गांधी दिल्ली प्रेस क्लब पहुंचे थे। दागी सांसदों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों को बचाने के लिए बनाया अध्यादेश ही फाड़ दिया। उस वक्त राहुल गांधी को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। लेकिन अब नए आत्मविश्वास का क्या सोर्स हो सकता है

तीन राज्यों में जीत

बेशक जब जनता ही किसी पार्टी का साथ दे तो आत्मविश्वास तो पार्टी अध्यक्ष में आएगा ही। मीडिया ने इसको भांप लिया और राहुल गांधी को अपनी डिबेट्स में जगह देनी शुरू कर दी। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश तीनों ही जगहों पर बीजेपी की सरकार थी लेकिन कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में तीनों ही राज्यों में बीजेपी को हटा दिया।

राफेल डील पर लगातार हमले

राहुल गांधी लगातार राफेल डील को लेकर सत्ता और सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करते नजर आते हैं। राहुल गांधी ने हर बार खुलकर मोदी का विरोध दर्ज किया। राफेल मामले में हर बार कहा कि “चौकीदार चोर है”

जनता को खींचने का हुनर

अब के राहुल गांधी जनता को समझ आने लगे हैं, उनके भाषणों से तो यही लगता है। वे सत्ता पक्ष पर पूरी तरह से हावी नजर आते हैं। तीन राज्यों में काम संभालने के कारण राहुल गांधी में काफी परिवर्तन दिखता है। उनकी राजनैतिक चेतना में भी वृद्धि हुई है। वे दांव पेंच समझने लगे हैं। वे अब शर्मिंदा कर देने वाली गलतियां नहीं करते।

पार्टी की भीतर की हलचल को भी राहुल गांधी संभाले हुए हैं। पार्टी को बिखरने से बचाया रखा जा रहा है। मुख्यमंत्री की दौड़ में भी राहुल गांधी ने अनुभव को चुना और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में गहलोत और कमलनाथ को कुर्सी पर बिठाया। ज्योतिरादिस्य सिंधिया को आगमी लोकसभा चुनावों में बड़ी भूमिका दी गई है। हम नहीं कह रहे राहुल गांधी अपने दम पर जीत दिला लाएंगे लेकिन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस बीजेपी को टक्कर अच्छे से देगी।

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