देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोगों ने जो ‘गुजरात का शेर’ की संज्ञा दी है वो उनसे अब छीन लेनी चाहिए। गुजरात की आन बान और शान माने जाने वाले एशियाई शेरों की हालत यहां बेहद नाजुक मोड़ पर है और जल्द ही सरकार ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो एक दिन ये शेर यहां से विलुप्त हो जाएंगे।
गत सोमवार को गुजरात के अमरेली में एक मालगाड़ी से कुचलकर 3 शेरों की मौत हो गई। गुजरात में तेजी से एशियाई शेरों की मौत का सिलसिला इसी साल सितंबर महीने से चल रहा है जहां अब तक 26 शेरों की मौत हो चुकी है। सोमवार की घटना में बोटड से पिपावाव पोर्ट की ओर जा रही एक मालगाड़ी के नीचे तीन शेर आ गए जिनमें से दो पुरुष और एक मादा शेरनी की मौत हो गई। इन शेरों की उम्र मात्र डेढ़ से दो साल के बीच रही होगी।
बता दें कि इससे पहले अक्टूबर माह में 23 अन्य शेरों की भी एक संक्रमण के फैलने से मौत हो चुकी है जिसपर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जैसी संस्थाए भी अपनी ओर से चिंता जता चुकी है। साल 2015 में हुई शेरों की जनगणना के हिसाब से गुजरात के गिर वनक्षेत्र में करीब 523 एशियाई शेर मौजूद थे। लेकिन अब उनकी संख्या में तेजी से गिरावट होने लगी है। अमरेली जिले में पड़ने वाले गिर के जंगल एशियाई शेरों के संरक्षण के लिए काम में लिया गया था। यहां इंसान और शेरों का कई बार आमना सामना होता रहा है लेकिन यहां के शेर इंसानों पर बिलकुल भी हमला नहीं करते। इस वनक्षेत्र में आने वाले कई लोगों ने शेरों को बचाने का खुद ही बीड़ा उठा रखा है जहां वो उन्हें अपने मवेशियों तक का शिकार आराम से कर लेने देते हैं। लेकिन ज्यादा इंसानी दखल होने से इन शेरों की सुरक्षा पर हमेशा से ही सवाल खड़े रहते हैं। गुजरात के पर्यटन का राजस्व का काफी अच्छा खासा हिस्सा भी दुनियाभर से आने वाले पर्यटकों के रूप में होता है। अब भी अगर सरकार इन्हें बचाने के प्रयास नहीं करेगी तो वो दिन दूर नहीं जब दुनियाभर में भारत का नाम उंचा रखने वाले हमारे एशियाई शेर सिर्फ किस्से कहानियों में ही रह जाएंगे।