सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ : जिसकी कविताओं को समझना हर किसी के बस की बात नहीं !

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हिंदी साहित्य में कई अंदाज में और अनेकों तरीकों से कविताएं लिखी जाती है। ऐसा ही एक अंदाज इसमें खड़ी बोली का है जिसको एक समय में साहित्यिक कसौटी पर रचनाकार खरा नहीं मानते थे। लेकिन छायावाद के सबसे प्रमुख स्तंभकार, महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ को खड़ी बोली हिंदी में कविता को ईजाद करने का श्रेय दिया जाता है।

निराला की कविताओं के बाद खड़ी बोली हिंदी में लिखे जाने वाले साहित्य को लोग जानने लगे, उसे प्रतिष्ठा मिलने लगी। निराला ने अपने समय में भाषा के साथ जितने प्रयोग किए उतने किसी भी कवि ने नहीं किए।

छायावाद के समय हुए कवियों की रचनाओं को समझना हर किसी के लिए आसान काम नहीं है। जिस समय छायावाद था उस समय खड़ी बोली की हिंदी कविता के बारे में बहुत कम लोग जानते थे इसलिए उस दौरान कवियों ने खुद शब्द गढ़े जिनका मतलब आज भी ढूंढ़ने पर नहीं मिलता।

निराला की कविता को समझना इतना आसान नहीं

निराला की कविताओं को लेकर अक्सर यह कहा जाता है कि उनका मतलब आसानी से समझ नहीं आता है। हां थोड़ा ध्यान से या शब्दकोश की मदद से पढ़ने पर मतलब निकाला जा सकता है। निराला इसलिए अन्य सभी कवियों से अलग थे क्योंकि वो अपने समय से बहुत आगे थे।

निराला के अंदाज निराले

आज हिंदी कविता में हम जो भी अलग शैली या अंदाज देखते हैं उनकी बुनियाद निराला ही थे। निराला के भाषा के साथ सफल प्रयोग की बदौलत कवि अलग-अलग शैली में कविता करने की जहमत उठाने लगे। वहीं निराला की रचनाओं में उर्दू ग़ज़लों की शैली से लेकर शास्त्रीय और लोकगीतों तक की महक मिल जाती थी।

नारी के असली सौंदर्य को बताया

एक समय था जब कविताओं में नारी का चित्रण हमेशा एक प्रेयसी के रूप में किया जाता था लेकिन निराला ने अपनी कविताओं में नारी के कई आयाम विकसित किए। कभी नारी को निराला ने बेटी के रूप में तो कभी श्रमिक बताया। वहीं निराला की कविताओं में किसानों पर हुए शोषण की चीत्कार भी दिखाई दी।

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