20वीं शताब्दी में जोश मलीहाबादी एक ऐसे शायर के रूप में उभर कर सामने आए, जिन्होंने आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ अपनी कलम उठाईं। आज उनकी 125वीं जयंती है। साहित्य की दुनिया में उन्हें उनकी बगावत पसंद नज्मों के लिए जाना जाता है। क्रांति और इंकलाब की बात करने वालों ने जोश को उस दौर में ‘क्रांति का शायर’ और ‘शायर-ए-इंकलाब’ की उपाधि दी। प्रसिद्ध उर्दू शायर जोश मलीहाबादी का जन्म 5 दिसंबर, 1898 को उत्तरप्रदेश में लखनऊ जिले के मलीहाबाद में हुआ था। इस अवसर पर पढ़िए ‘जोश’ की कुछ चुनिंदा रचनाएं…
जोश मलीहाबादी की कुछ चर्चित नज्में…
1.”हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी
और उन की तरफ़ ख़ुदाई है”
2.”मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है”
3.”दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया”
4.”एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आप के
एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है”
5.”इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है”
6.”मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया”
7.”कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दो
जब आग भेज दी है तो पानी भी भेज दो”
8.”उस ने वादा किया है आने का
रंग देखो ग़रीब ख़ाने का”
9.”वहाँ से है मिरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह
जो इंतिहा है तिरे सब्र आज़माने की”
10.”सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का
जब उस ने वादा किया हम ने ए’तिबार किया”
11.”कोई आया तिरी झलक देखी
कोई बोला सुनी तिरी आवाज़”
12.”किसी का अहद-ए-जवानी में पारसा होना
क़सम ख़ुदा की ये तौहीन है जवानी की”
13.”आप से हम को रंज ही कैसा
मुस्कुरा दीजिए सफ़ाई से”
14.”अब तक न ख़बर थी मुझे उजड़े हुए घर की
वो आए तो घर बे-सर-ओ-सामाँ नज़र आया”
15.”तुझको इन नींद की तरसी हुई आंखों की कसम
अपनी रातों को मेरी हिज्र में बरबाद न कर”
लियाक़त सरकार का तख्तापलट करने की साजिश में गिरफ्तार किए गए थे शायर फैज़ अहमद फैज़