आज प्रधानमंत्री मोदी के गुलाब वाले नेहरू की नहीं बल्कि “किसानों के नेहरू” की बात करेंगे

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वह प्रधानमंत्री जिसकी विरासत में भारत के हर क्षेत्र ने तरक्की के नए कीर्तिमान दर्ज है, वो आज वर्तमान सरकार के लिए एक झुनझुना बना हुआ है। आज हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री या सरकार पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की विरासत पर हमला करने का एक मौका नहीं छोड़ती है। जी हां, आज फिर से यह कहने की जरूरत इसलिए आन पड़ी क्योंकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की विरासत पर कीचड़ उछाला है।

“ये गुलाब का फूल लगा कर घूमने वाले लोग जिन्हें बागवानी का ज्ञान था, पर इनको खेतों के बारे में कुछ नहीं पता था, किसान की समस्याओं का इन्हें ज्ञान नही था”। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को जोधपुर में एक चुनावी रैली में बिना नाम लिए सीधा नेहरू पर निशाना साधा।

किसानों का गुस्सा हाल में दिल्ली में देखने को मिल रहा है, जहां किसान सरकार से विभिन्न मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में मोदी ने किसानों की समस्या को भी नेहरू के परिदृश्य से जोड़ते हुए उस पर बोलना सही समझा।

मोदी के गुलाब वाले बयान के बाद आपको बात के दोनों पहलू जानने का पूरा हक है तो चलिए थोड़े पन्ने पलटते हैं और जानते हैं नेहरू कितना समझते थे किसानों की पीड़ा।

नेहरू ने भाखड़ा बांध की आधारभूत संरचना रखी थी जिसने देश की हरित क्रांति में एक अहम भूमिका निभाई थी, जिसने भारत में अनाज उत्पादन को बढ़ाने में मदद की।

किसानों के लिए नेहरू की वचनबद्धता को आप उनकी कही एक बात से समझ सकते हैं जो उन्होंने स्वतंत्रता के तुरंत बाद कही थी जिसमें नेहरू ने कहा था “बाकी सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि नहीं।”

देश में खेती के विकास पर 2008 में छपे एक लेख में, हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले एम. स्वामीनाथन ने लिखा कि “यह जवाहरलाल नेहरू का युग था जहां कृषि को वैज्ञानिक समझ के साथ आगे बढ़ाया गया और खेती के बुनियादी ढांचे के विकास पर मुख्य जोर रहा।’

उस समय उठाए गए कदमों में उर्वरक और कीटनाशक कारखानों की स्थापना, बड़े बहुउद्देश्यीय सिंचाई-सह-शक्ति परियोजनाओं का निर्माण, कृषि योजनाओं का राष्ट्रीय विस्तार और कई कार्यक्रमों का निर्माण और सबसे खास कृषि विश्वविद्यालयों की शुरुआत हुई।

अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री योगिंदर के. अलाघ के मुताबिक नेहरू के योगदानों में सिंचाई पर काफी ध्यान केंद्रित रहा। नेहरू न सिर्फ स्टील प्लाटों के वास्तुकार रहे बल्कि बड़ी सिंचाई परियोजनाएं जैसे भाखड़ा नांगल बांध, हीराकुंड बांध, नागार्जुन सागर बांध जैसे प्रोजेक्ट में नेहरू की अहम भूमिका थी। यहां तक कि ‘ग्रो मोर फूड’ अभियान जो वास्तव में दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) के साथ शुरू हुआ उसको नेहरू ने शुरू किया था जिसके बाद कृषि प्रगति में तेजी लाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया।

वहीं 1952 में, संसद में बोलते हुए नेहरू ने अंडरस्कोर किया कि कैसे भारत कृषि पर ध्यान दिए बिना औद्योगीकरण की उम्मीद नहीं कर सकता है। नेहरू ने कहा “हम निश्चित रूप से औद्योगीकरण को महत्व देते हैं, लेकिन वर्तमान संदर्भ में हमें कृषि, खाद्य और कृषि से संबंधित मामलों के लिए अधिक महत्व देना चाहिए”। अगर हमारी कृषि की नींव मजबूत नहीं है तो जिस उद्योग को हम आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसका आधार मजबूत नहीं होगा।

अगर हमारी कृषि दृढ़ता बढ़ जाती है, जैसा कि हम उम्मीद करते हैं, तो औद्योगिक मोर्चे पर तेजी से प्रगति करना हमारे लिए अपेक्षाकृत आसान होगा, जबकि अगर हम केवल औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं और कृषि एक दिन कमजोर स्थिति में चली जाएगी और फिर औद्योगीकरण अपने आप कमजोर हो जाएगा।

ये पढ़ने के बाद अब फैसला आपके ऊपर है कि गुलाब लगाने वाला वो प्रधानमंत्री किसानों की पीड़ा और खेती के बारे में क्या सोचता था और प्रधानमंत्री मोदी के दिए ताजा बयान में कितना विरोधाभास है।

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