भारत की आजादी में योगदान देने वाले एक स्वतंत्रता सेनानी, कृषि वैज्ञानिक व राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ को डिजाइन करने वाले महान देशभक्त पिंगली वेंकैया की आज 2 अगस्त को 147वीं जयंती है। झण्डा किसी देश की आन-बान-शान का प्रतीक होता है, हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की डिजाइन वेंकैया साहब ने ही कड़ी मशक्कत के बाद तैयार की थी। राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक पिंगली वेंकैया ने देश को एकता के सूत्र में पिरोने के विचार को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया था।
पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त, 1876 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के भटालापेनमारू नामक गांव में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम पिंगली हनुमंत रायडू और वेंकट रत्नम था। वेंकैया की प्रारंभिक शिक्षा भटाला पेनमरू और मछलीपट्टनम में हुई। बाद में वह आगे की शिक्षा प्राप्त करने 19 वर्ष की उम्र में मुंबई चले गए। यहीं पर वह सेना में भर्ती हो गए, जहां से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में…
अफ्रीका में सैन्य कार्यवाही के दौरान हुई गांधीजी से मुलाकात
वर्ष 1899 से 1902 के मध्य अफ्रीेकी देश दक्षिण अफ्रीका में बायर युद्ध चल रहा था, जिसमें उन्होंने भाग लिया था। यहीं पर उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हो गई, वह गांधीजी के विचारों से काफी प्रभावित हुए, स्वदेश आने पर मुंबई में रेलवे में गार्ड की नौकरी करने लग गए। इस दौरान मद्रास (वर्तमान में चेन्नई) में प्लेग महामारी के रूप में फैल गया और कई लोग अकाल मौत के मुंह में समा गए। इससे व्यथित होकर वेंकैया ने नौकरी छोड़ दी और मद्रास में प्लेग रोग निर्मूलन इंस्पेक्टर के पद पर कार्य करने लग गए।
देश को एक सूत्र में पिरोने के विचार से किया झण्डा डिजाइन
वर्ष 1916 में पिंगली वेंकैया के मन में विचार आया कि एक इस तरह का झंडा बनाया जाए जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरो सके। उन्होंने अपनी योजना को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी को बताया और तीनों ने संयुक्त रूप से ‘राष्ट्रीय झण्डा मिशन’ का गठन किया। वेंकैया गांधी जी से पूर्व में मिल चुके थे और उन्होंने उनसे राष्ट्रीय ध्वज के लिए सलाह लेना उचित समझा। इस पर गांधीजी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र को स्थान देने की सलाह दी, जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने का संकेत बन सके।
वेंकैया ने अपनी प्रारंभिक डिजाइन में लाल और हरे रंग की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बनाया, पर यह डिजाइन गांधीजी के मतानुसार संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती थी। इस तरह से राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे। ऐसा झण्डा जो भारत की संपूर्ण विविधताओं को दर्शा सके, उसको लेकर काफी मंथन किया गया।
जब संविधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया ध्वज
बाद में वर्ष 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक समिति बनाई गई। इसी वर्ष कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और वर्ष 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
इसके बाद जब आज़ादी की घोषणा होने के पूर्व कांग्रेस के सामने यह प्रश्न उठा कि आजादी के बाद राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन कैसा हो? इसके लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान डिजाइन में 22 जुलाई, 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया। इस तरह वेंकैया द्वारा डिजाइन किया गया तिरंगा झण्डा ही 15 अगस्त, 1947 को हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।
पिंगली वेंकैया को सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने उनकी स्मृति में वर्ष 2009 में उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया था। वह लोगों के बीच ‘झंडा वेंकैया’ के नाम से लोगों के बीच लोकप्रिय हो गए।
राष्ट्रीय ध्वज डिजाइनर पिंगली का निधन
राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन देकर सदा के लिए अमर हो गए पिंगली वेंकैया का 4 जुलाई, 1963 को निधन हो गया।
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