पीरियड्स लीव : बदलाव की ओर कदम, जरूरत सोचने की फिर समझने की

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आजकल कई बार यह सुनने को मिलता है कि जमाना बदल गया है। कई मायनों में यह सही भी है लेकिन कुछ मामलों में ​देखा जाए तो अब भी जमाना वहीं ठहरा हुआ सा लगता है। जैसे ‘पीरियड्स’। जब भी यह शब्द आता है तो एक अजीब सी खामोशी हो जाती है। कोई इस बारे में खुलकर बात करना पसंद नहीं करता। नैपकिन खरीदने से लेकर पीरियड के दौरान होने वाली परेशानियों तक को लेकर ऐसा महौल बना रखा है जैसे यह कोई बीमारी है। इस बायो​लॉजिकल प्रोसेस के बारे में बात करने से आज भी लड़कियों महिलाओं को रोका जाता है। यदि कोई खुलकर अपने विचार रखती है तो उसे बेशर्म या बोल्ड का तमगा दिया जाता है।

इन सबके इतर हाल ही कोलकाता की एक कम्पनी ने कुछ ऐसा किया है जो वाकई काबिल ए तारीफ है। आने वाला साल 2019 कोलकाता की एक कंपनी की महिला कर्मचारियों के लिए खुशखबरी लेकर आ रहा है। जनवरी 2019 से कोलकाता स्थित एक डिजिटल कंपनी FlyMyBiz ने अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव की घोषणा की है। इसमें महिलाओं को पीरियड्स के समय हर महीने एक दिन की छुट्टी दी जाएगी।

हालांकि ये कोई पहली कंपनी नहीं है। इसके पहले भी कई कंपनियां और यहां तक की संसद में भी महिलाओं के इस समस्या पर बात हो चुकी है। साल 2018 की शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश के सांसद ने Menstruation Benefit Bill के जरिए महिलाओं की इस समस्या को आवाज दी थी। इस प्राइवेट बिल के लाते ही पीरियड्स के समय महिलाओं को अवकाश दिए जाने की बात पर देशभर में व्यापक बहस छिड़ गई थी।

कई देशों ने अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव का प्रावधान किया है। अगर इतिहास में जाएं तो 1947 की शुरुआत में, जापान ने एक कानून पारित किया जिसमें महिलाओं को पीरियड्स के दौरान एक दिन की छुट्टी देने का प्रावधान किया गया था। इंडोनेशियाई सरकार ने 1948 के अपने श्रम अधिनियम के तहत मासिक धर्म के पहले और दूसरे दिन को पेड छुट्टियों के रूप में अनुमति दी है। इसी तरह, दक्षिण कोरिया में महिलाओं को वर्ष 2001 से ही पीरियड्स की छुट्टी दी जा रही है। यहां तक कि नाईकी जैसी कंपनियों ने भी इसी तरह की नीतियों को अपना लिया है।

अगर देश की बात करें तो हमारे यहां भी एक राज्य ऐसा है जिसने पीरियड्स में महिलाओं को छुट्टी देने का प्रावधान 1992 से लागू कर रखा है। वो राज्य है पिछड़ा माना जाने वाला बिहार। यहां महिलाएं जरूरत पड़ने पर हर महीने दो दिन की छुट्टी ले सकती हैं। लेकिन या तो कई महिलाओं को इस सुविधा के बारे में ही नहीं पता या फिर जिन्हें पता भी है तो पीरियड्स के साथ जोड़ दिए गए सामाजिक लोकलाज और शर्म की व्यवस्था के कारण अधिकतर महिलाएं इस छुट्टी से परहेज करती हैं।

यही नहीं हाल के दिनों में कुछ एक प्राइवेट कंपनियों ने भी महिलाओं की इस परेशानी की तरफ अपना रुख बदला है। जैसे कि मुंबई स्थित मीडिया फर्म, Culture Machine ने जुलाई 2017 से अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव देनी शुरू कर दी है। यही नहीं कल्चर मशीन ने तो एक वीडियो भी बनाया जिसमें उसकी महिला कर्मचारी पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में खुलकर बात कर रही हैं। इसके अलावा Gozoop नाम की कंपनी ने भी अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव की व्यवस्था शुरू की है। ये महिला कर्मचारियों को पीरियड्स के पहले दिन छुट्टी देते हैं।

विरोध भी

इस सुविधा का विरोध करने वालों का तर्क होता है कि इससे महिलाओं के लिए ही समस्या बढ़ेगी और कंपनियां अपने यहां महिलाओं को रखने में कतराएंगी। उनका यह भी मानना है कि ज्यादातर महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान भी पूरी क्षमता से काम करने में सक्षम होती हैं। और मुट्ठी भर महिलाएं हैं जिन्हें असहनीय पीड़ा होती है लेकिन उनके लिए सिक लीव की सुविधा है।
यहां तक कि कुछ लोग सेरेना विलियम्स का उदाहरण भी देते हैं जिन्होंने अपनी प्रेगनेंसी में ग्रैंड स्लैम जीता था। इस उदाहरण के जरिए ये साबित करने की कोशिश की गई कि महिलाओं को किसी ‘स्पेशल’ ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं है।

इसके साथ ही सोशल मीडिया पर एक बात ये भी जोर-शोर से उठाई गई कि मासिक धर्म की नीतियां पुरुषों के खिलाफ भेदभाव कर सकती हैं क्योंकि महिलाओं को हर साल एकस्ट्रा छुट्टियां मिलेंगी।

सबसे पहला तो ये कि क्योंकि कुछ महिलाओं ने कठिन समय में भी उल्लेखनीय उपलब्धियां पा ली। इसका मतलब ये नहीं है कि उनके नाम का सहारा लेकर दूसरी औरतों को बदनाम किया जाए। उदाहरण के लिए, कुछ अध्ययनों से पता चला है कि महिलाएं वास्तव में पुरुषों की तुलना में बेहतर मल्टीटास्क कर पाती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम उससे ये उम्मीद करने लगें कि हर महिला आसानी से मल्टी टास्किंग कर लेगी और अगर कोई महिला ये नहीं कर पाती है तो हम उसे नीचा दिखाने लगें।

दूसरी बात जो लोग महिलाओं को काम पर रखने के खिलाफ होते हैं या जिनका रवैया पक्षपाती होता है उन्हें किसी और बहाने की जरूरत नहीं है। आखिर महिलाओं को मैटरनिटी लीव लेने के लिए भी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी और इसे लागू न करने के पीछे भी कंपनियां यही तर्क दे रही थी।

तीसरा अगर यह तर्क है कि इस तरह की नीति से पुरुषों के साथ भेदभाव पैदा होगा तो ये बेहद बचकाना और अतार्किक है। क्योंकि ऐसा तर्क देकर आप पीरियड्स के समय महिलाओं को होने वाली परेशानियों को नग्न कर रहे हैं। पीरियड्स लीव में महिलाएं पार्टी नहीं करती बल्कि उस दर्द से लड़ रही होती हैं।

साथ ही महिला और पुरुषों के बीच भेदभाव की बात तब तो नहीं की जाती जब दोनों के बीच के सैलरी में जमीन आसमान का अंतर होता है? एक ही काम के लिए महिलाओं को सदियों से पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जा रहा है तो फिर इस समय आपके भेदभाव का लॉजिक कहां चला जाता है? ऐसे में यही सोचकर तसल्ली कर लीजिए कि आपको महिलाओं की तरह एक्स्ट्रा पीरियड्स लीव भले न मिल रही हो पर कम से कम वेतन तो उनसे दो गुना मिल रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’ में भारत को पुरुषों और महिलाओं के बीच की मजदूरी में समानता के लिए 144 देशों में से 136वां स्थान मिला है और कुछ कहने को बच जाता है क्या फिर इस पर?

खैर, बहस कभी खत्म नहीं होनी लेकिन सकारात्मक प्रयासों का दिल से स्वागत किया जाना चाहिए।

साभार : Firstpost

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