पट्टाभि सीतारमैया ने भारत की आज़ादी के लिए छोड़ दिया था डॉक्टरी पेशा, बाद में बने कांग्रेस अध्यक्ष

Views : 7609  |  4 minutes read
Pattabhi-Sitaramayya-Biography

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी और कांग्रेस के नेता रहे पट्टाभि सीतारमैया की 17 दिसंबर को 62वीं पुण्यतिथि है। वह स्वतंत्रता के समय प्रमुख गांधीवादी और एक पत्रकार भी ​थे। आजादी के दौरान उन्होंने दक्षिण भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रति लोगों में जागरूकता लाने का काम किया था। वह महात्मा गांधी के प्रमुख सहयोगी थे। वर्ष 1939 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनावों में उन्हें सुभाषचन्द्र बोस से हार का सामना करना पड़ा था।

भोगराजू पट्टाभि सीतारमैया का जीवन परिचय

भोगराजू पट्टाभि सीतारमैया का जन्म 24 नवंबर, 1880 को आंध्र प्रदेश के गुंडुगोलनू गांव के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही एक होशियार बालक ​थे। उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की और अपना अध्ययन जारी रखा।

सीतारमैया ने ग्रेजुएशन की शिक्षा मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से प्राप्त की। उन्होंने डॉक्टर बनने के लिए एमबीसीएम की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने आंध्र प्रदेश के एक तटीय शहर मछलीपट्टनम में चिकित्सा शुरू की। उन्होंने देश की आजादी के लिए डॉक्टरी का पेशा छोड़ देश की आजादी में कूद पड़े।

Pattabhi-Sitaramayya

राष्ट्रीय आंदोलन में हुए शामिल

पट्टाभि ने देश की आजादी के लिए कॉलेज के समय में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। बाद में उन्होंने डॉक्टरी का पेशा छोड़ दिया और पूरी तरह से आजादी में शामिल हो गए। वर्ष 1910 में सीतारमैया ने ‘आंध्र जातीय कलासला’ की स्थापना की। वह वर्ष 1908 से लेकर 1911 तक ‘कृष्ण पत्रिका’ के संपादक भी रहे। अंग्रेजी और तेलुगु लेखन में उन्होंने अपनी अलग शैली विकसित कर ली थी।

वर्ष 1919 में उन्होंने ‘जन्मभूमि’ नामक एक अंग्रेजी पत्र की शुरूआत की। इसका मुख्य लक्ष्य गांधी के विचारों का प्रसार करना था। इसके माध्यम से लोग उनके लेखन कला से प्रभावित हुए। इससे उन्हें मोतीलाल नेहरु के पत्र ‘इंडिपेंडेंट’ के संपादन करने का मौका मिला, जो इलाहाबाद से प्रकाशित होता था।

वह लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल जैसे अतिवादी नेताओं के समर्थक थे। पट्टाभि जब महात्मा गांधी से मिले तो उनके विचारों से वह काफी प्रभावित हुए। इस दौरान वह श्रीमती एनी बेसेंट के होम रूल लीग के अनुयायी बने।

कई वित्तीय संस्थानों की स्थापना में योगदान

सीतारमैया ने देश में कई वित्तीय संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई– जैसे वर्ष 1915 में कृष्णा कोऑपरेटिव सेंट्रल बैंक, वर्ष 1923 में आंध्रा बैंक, वर्ष 1925 में आंध्रा इंश्योरेंस कंपनी (आंध्र में पहली बीमा कंपनी), 1927 में वडियामन्नडु लैंड बंधक बैंक, 1929 में भारत लक्ष्मी बैंक लिमिटेड और 1935 में आदर्श बीमा कंपनी आदि।

कांग्रेस अध्यक्ष पद पर विवाद

सीतारमैया को वर्ष 1939 में हुए कांग्रेस त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा। वह मोहनदास गांधी के निकटतम उम्मीदवार के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल थे। लेकिन उन्हें नेताजी की बढ़ती लोकप्रियता के चलते हार का सामना करना पड़ा।

आजादी के बाद

देश की स्वतंत्रता के बाद उन्हें भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था। सीतारमैया को नियम समिति, संघ शक्तियों समिति और प्रांतीय संविधान समिति के सदस्य बनाया गया। वर्ष 1948 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

उन्होंने सिक्सटी इयर्स ऑफ़ कांग्रेस, फेदर्स एण्ड-स्टोन्स, नेशनल एजुकेशन, इंडियन नेशनलिज्म, रिडिस्ट्रिब्यूशन ऑफ़ स्टेट्स, हिस्ट्री ऑफ़ द कांग्रेस (यह उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक है जिसका पहला भाग सन 1935 में और दूसरा भाग 1947 में प्रकाशित हुआ था) जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।

निधन

भोगुराजू पट्टाभि सीतारमैया का 17 दिसम्बर, 1959 को निधन हुआ।

सी. राजगोपालाचारी ने पंडित नेहरू से वैचारिक मतभेद होने के बाद कांग्रेस छोड़ बना ली थी अलग पार्टी

COMMENT