पत्थलगड़ी आंदोलन: 7 आंदोलन विरोधियों की हत्या, काम न आई सीएम सोरेन की पहल

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Patthalgadhi

झारखंड राज्य की नई सरकार के सामने पत्थलगड़ी आंदोलन ने रक्तरंजित रूप धारण कर लिया है। यह आंदोलन जो जमीन और जंगल बचाने को लेकर शुरू हुआ था अब हिंसक बन चुका है। नक्सलवादियों का गढ़ समझे जाने वाले पश्चिमी सिंहभूम जिले के गुदड़ी प्रखंड के बुरुगुलीकेरा गांव में पत्थलगड़ी समर्थकों ने पत्थलगड़ी का विरोध करने पर उप मुखिया सहित 7 ग्रामीणों को पीट-पीटकर हत्या कर दी। इन विरोधियों पर पत्थलगड़ी समर्थकों ने लाठी-डंडों और टांगी से हमला किया और लाशों को घने जंगल में फेंक दी।

इस घटना के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट किया और इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। झारखंड पुलिस इस मामले की जांच कर रही है और सर्च ऑपरेशन जारी है। उन्होंने कहा कि झारखंड में कानून का राज है और दोषियों के खिलाफ कानूनन कार्रवाई की जाएगी। हेमंत सोरेन इस मामले की सभी संबंधित अधिकारियों के साथ समीक्षा करेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे।

नई सरकार के लिए भी पत्थलगड़ी आंदोलन बना चुनौती

हाल में झारखंड मेें हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी नई सरकार के सामने यह घटना एक बड़ी चुनौती है। बता दें कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद ही अपनी कैबिनेट की पहली बैठक में इस आंदोलन से जुड़े 10000 लोगों पर से मामलों को वापस ले लिया था। नए सीएम को इस पहल से उम्मीद थी कि उनकी पहल के बाद आंदोलन शांत हो जाएगा, किंतु पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा 7 लोगों की हत्या राज्य सरकार सकते में हैं।

मंगलवार को गांव में पत्थलगड़ी आंदोलन पर एक मीटिंग बुलाई गई थी। इस दौरान विवाद बढ़ गया और पत्थलगड़ी समर्थकों ने 7 लोगों को वहां से अगवा किया। जिनमें उपमुखिया जेम्स भी शामिल थे। उन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया।

क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन

पत्थलगड़ी आंदोलन देश के झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल राज्यों के आदिवासी और नक्सल प्रभावित इलाकों में चलने वाला आंदोलन है। इस आंदोलन का उद्देश्य आदिवासी अपनी जमीन और जंगल पर सार्वभौम दावा करते हैं। यानी आदिवासी इन प्राकृतिक संसाधनों पर अपना मालिकना हक समझते हैं और यहां राज्य के कानून की बजाय खुद का कानून मानने की बात कहते हैं।

इस आंदोलन का प्रमुख नारा है— न लोकसभा न विधानसभा, सबसे ऊपर ग्रामसभा। इस आंदोलन के तहत आदिवासी एक पत्थर गाड़ देते हैं। गाड़े गए पत्थरों पर लिखा रहता है कि इन क्षेत्रों में संसद या विधानसभा का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है और यहां पर बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश भी वर्जित है।

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