दशकों के कठिन परिश्रम की बदौलत कथक नृत्य के पर्याय बनकर उभरे पंडित बिरजू महाराज का नाम आते ही हमारे ज़ेहन में कथक की थाप सुनाई देती है। बिरजू महाराज को कथक विरासत में मिला था। उन्होंने ‘लखनऊ कथक घराने’ को नई बुलन्दियों पर पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाईं। इस शख्सियत का पिछले माह ही देवलोक गमन हुआ है। 4 फरवरी को बिरजू महाराज की 85वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास अवसर पर जानिए कथक की दुनिया के ख्याति प्राप्त गुरु पंडित बिरजू महाराज के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
पं. बिरजू महाराज का जीवन परिचय
बहुमुखी प्रतिभा के धनी पंडित बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी, 1938 को उत्तरप्रदेश के लखनऊ में कालका बिंदादीन घराने में हुआ था। यह कथक नृत्य का प्रसिद्ध घराना माना जाता है। बिरजू महाराज का बचपन का नाम दुखहरण था। बाद में उनका नाम ‘बृज मोहन नाथ मिश्रा’ रखा गया। घर के सभी लोग उन्हें प्यार से बिरजू-बिरजू कहकर बुलाते थे। इसी वजह से बाद में वो ‘बिरजू महाराज’ के नाम से लोकप्रिय हो गए।
महज 9 साल की उम्र में पिता को खोया
पंडित बिरजू महाराज के पिता जगन्नाथ महाराज थे, जो खुद लखनऊ कथक घराने से आते थे और अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। अच्छन महाराज की गोद में महज तीन साल की उम्र में ही बिरजू महाराज की प्रतिभा दिखने लगी थी। इसी को देखते हुए पिता ने बचपन से ही अपने यशस्वी पुत्र को नृत्य की दीक्षा देनी शुरू कर दी। किंतु बिरजू महाराज के सिर से पिता का साया उस समय उठ गया, जब वह महज नौ साल के थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके सुप्रसिद्ध चाचा आचार्य शंभू जी और लच्छू जी महाराज ने उन्हें प्रशिक्षित किया।
बचपन में बब्बन मियां से नाच के बदले लेते थे पतंग
बिरजू महाराज की अम्मा को उनका पतंग उड़ाना और गिल्ली-डंडा खेलना बिल्कुल पसंद नहीं था। जब अम्मा पतंग के लिए पैसे नहीं देतीं तो नन्हा बिरजू दुकानदार बब्बन मियां को नाच दिखा कर पतंग ले लिया करता। पंडित बिरजू महाराज को तबला, पखावज नाल, सितार आदि कई वाद्ययंत्रों पर भी महारत हासिल थी। वो बहुत अच्छे गायक, कवि व चित्रकार भी थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार की नृत्यावलियों जैसे ‘गोवर्धन लीला’, ‘माखन चोरी’, ‘मालती-माधव’, ‘कुमार संभव’ और ‘फ़ाग बहार’ इत्यादि की रचना कीं।
बहुत कम उम्र में संगीत भारती में सिखाने लगे थे नृत्य
पंडित बिरजू महाराज ने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने कत्थक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षण कार्य आरम्भ कर दिया। यहां वे संकाय के अध्यक्ष थे तथा इसके निदेशक भी रहे। तत्पश्चात वर्ष 1998 में उन्होंने वहीं से सेवानिवृत्ति पायीं। इसके बाद ‘कलाश्रम’ नाम से दिल्ली में अपना कथक संस्थान शुरू किया।
कई नामी फिल्मों के लिए किया था नृत्य निर्देशन
कथक नृत्य के नामी कलाकार पंडित बिरजू महाराज ने सत्यजीत रॉय की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ से लेकर ‘दिल तो पागल है’, ‘गदर’, ‘देवदास’, ‘डेढ़ इश्किया’, ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसी कई प्रसिद्ध हिंदी फिल्मों में नृत्य निर्देशन किया। बिरजू महाराज के निजी जीवन की बात करें उनके पांच पुत्र-पुत्रियां हैं, जिनमें तीन बेटियां और दो बेटे शामिल हैं। उनके तीन बच्चे ममता महाराज, दीपक महाराज और जय किशन महाराज भी अपने अधिकारों में कथक नर्तकियों के नाम हैं।
पुरस्कार एवं सम्मान
- पंडित बिरजू महाराज को कला के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए शुरू से ही खूब प्रशंसा एवं सम्मान मिले, जिनमें वर्ष 1986 में ‘पद्म विभूषण’, ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ तथा मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा ‘कालिदास सम्मान’ जैसे प्रमुख हैं। पुरस्कारों के साथ ही इन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की ‘मानद उपाधि’ मिलीं।
- 2002 में लता मंगेश्कर पुरस्कार से सम्मानित हुए।
- भरत मुनि सम्मान
- 2012 में सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन हेतु ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ फिल्म – विश्वरूपम के लिए
- 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला।
प्रसिद्ध शास्त्रीय कथक नृत्य
भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में सबसे पुराना कथक नृत्य है। इस संस्कृत शब्द का अर्थ होता है कहानी सुनाने वाला।
उत्तर भारत का प्रसिद्ध शास्त्रीय कथक नृत्य के तीन घराने हैं –
- लखनऊ घराना
इस घराने की शुरुआत ईश्वरी प्रसाद जी से माना जाता है।
पंडित बिरजू महाराज इसी घराने से हैं। - जयपुर घराना
इस घराने की शुरुआत भानुजी ने की थी। - बनारस घराना
इसे जानकी प्रसाद घराना के नाम से भी जाना जाता है।
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