31 जनवरी तक देश के उच्च न्यायालयों में 42 लाख से अधिक मामले लटके हुए पड़े थे और पिछले साल 1 दिसंबर तक उच्चतम न्यायालय में लगभग 57,000 केस पेंडिंग पड़े थे। लोकसभा में ये आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में सबसे अधिक पेंडिंग केस हैं। (7.2 लाख से अधिक) इसके बाद नंबर आता है राजस्थान (4.5 लाख) और मद्रास (4 लाख) हाई कोर्ट्स का।
कानून मंत्रालय ने कहा कि केस का समय पर निपट जाना कई तरह की चीजों पर निर्भर होता है। लेकिन केस को तेजी से निपटाने के लिए कई तरह की पहल भी की गई हैं जैसे कि नेशनल मिशन फॉर जस्टिस डिलीवरी एंड लीगल रिफॉर्म्स जिसने लंबित मामलों को निपटाने के लिए एक अलग अप्रोच को अपनाया है।
जिन फेक्टर्स की बात की जा रही है सरकार ने कहा है कि सबसे बड़ा फेक्टर है जजों की उपलब्धता। सुप्रीम कोर्ट में 31 में से तीन पद खाली हैं और हाई कोर्ट में 1,079 में से 400 पद खाली पड़े हैं।
जजों की संख्या को लेकर भारत के विभिन्न चीफ जस्टिस भी चिंता जताते रहे हैं। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि वहां की न्याय पालिका मजबूत हो लेकिन हाल क्या हैं वो आप देख ही सकते हैं।
और आंकड़े पढ़िए
न्याय पालिका की हालत फिलहाल भारतीय अस्पतालों जैसी ही मालूम पड़ती है। कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि क्रिटिकल केयर के लिए भारत में 50 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स की जरूरत है। लेकिन भारत में हैं कितने? भारत में हैं लगभग 8350 डॉक्टर्स। आंकड़े थोड़े बढ़ सकते हैं क्योंकि सर्वे थोड़ा पुराना है। लेकिन फिर भी जहां 50 हजार डॉक्टर्स की जरूरत हो वहां पर व्यवस्था क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों की बात करें तो 1000 मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। इस हिसाब से भारत में 10,000 पर 10 डॉक्टर होने चाहिए मगर हैं 7 डॉक्टर ही। आपको बता दें कि ब्राजील और चीन में 10,000 पर 180 डॉक्टर हैं।
अब आते हैं न्याय पालिका पर 10 लाख लोगों पर पर भारत में जजों की संख्या मुश्किल से 15 है। ऐसे में हमारी न्याय पालिका की हालत का अंदाजा पता लगाया जा सकता है। केस कई कई सालों तक पेंडिंग इसी लिए पड़े रहे हैं।