बचपन में रामायण, महाभारत की कहानियां सुनते थे तो बड़े बुजुर्ग बताते थे कि राजा लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए गुरू के पास गुरूकुल भेजते थे, पढ़ाई पूरी होने तक बच्चा गुरूकुल में रहकर शिक्षा-दीक्षा हासिल करता था और आखिर में गुरूदक्षिणा देकर अपनी परीक्षा पास करते थे, इस दौरान बच्चे के कर्ता-धर्ता गुरू ही होते थे।
कहानियों से बाहर आते हैं, चलते हैं हमारे बचपन में, माने 90 के दशक में पैदा हुए बच्चों के टाइम में, पढ़ने के लिए स्कूल जाना, घर आकर फिर पढ़ना, ये सब कुछ एकदम रूटीन की तरह ही था। महीने के आखिर में पापा-मम्मी को पूरी रिपोर्ट कार्ड पैरेंट्स टीचर मीटिंग में दिया जाता था। हालांकि ये तरीका आज भी अपनाया जाता है।
अब आते हैं वर्तमान पर और चलते हैं दिल्ली की एडवांस्ड एवं हाईटेक दुनिया में। जी हां, दिल्ली की केजरीवाल सरकार अपने पहले कार्यकाल में सरकारी स्कूलों की कायापलट के लिए देश और दुनियाभर में तारीफ लूट रही है। यह बात तथ्यात्मक भी है कि वाकई सरकारी स्कूलों में पिछले 2-3 सालों में खूब काम हुआ है।
मिशन बुनियाद, मॉडल स्कूल, स्मार्ट क्लासें, नवोदय स्कूलों का नवीनीकरण जैसे कई ऐसे काम हुए हैं जिनसे दिल्ली के सरकारी स्कूलों का इंफ्रास्ट्रक्चर आज किसी निजी स्कूल को टक्कर देने लायक बना है।
लेकिन हाल में दिल्ली सरकार का लिया गया एक फैसला सवालों के घेरे में लिपट चुका है। दिल्ली सरकार ने ऐलान किया है कि दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा लगवाएं जाएंगे। इस योजना में पूरे स्कूल में सभी क्लासरूम कॉरिडोर और प्ले ग्राउंड में कैमरे लगाए जाने हैं। माता-पिता को एक मोबाइल एप दिया जाएगा जिसमें वो अपने बच्चे को लाइव देख सकते हैं।
सीसीटीवी प्रोजेक्ट को मील का पत्थर बता रही सरकार ने इस पर कहा है कि माता-पिता अपने बच्चे को लाइव मोबाइल पर देखकर पता लगा सकते हैं कि बच्चा क्या कर रहा है, सुरक्षित है या नहीं वगैरह-वगैरह।
अब एक बार में देखने पर तो हमें यह लगता है कि हां बच्चों की सुरक्षा के लिए तो यह योजना बहुत जरूरी है लेकिन कुछ और छुपी बारीकियां हैं जिनको आपत्ति भी कहा जा सकता है, उन पर भी गौर किया जाना चाहिए। और हां, ये सिर्फ क्लासरूम वाले कैमरों पर ही हैं।
बच्चों का आर्टिफिशियल बिहेवियर !
हम सभी जानते हैं बच्चा होना मतलब नेचुरल होना। अब किसी बच्चे की नेचुरलिटी पर आप तीसरी आंख (CCTV) लगा देंगे तो एक अजीब किस्म के आर्टिफिशियल बिहेवियर को आप जन्म देते हैं। बच्चा क्लासरूम में है और उसे लगे पापा-मम्मी देख रहे हैं तो वो एक आर्टिफिशियल चाइल्ड है जिसकी हर हरकत कैमरे के मुताबिक होगी, ऐसे में आप अपने बच्चे की नेचुरलिटी को खो चुके होते हैं। हां आप यहां बच्चे की उम्र सीमा को तय करके ऊपर लिखी हर बात को एक अलग एंगल से भी देख सकते हैं।
टीचर की काबिलियत पर शक !
कैमरे लगाए जाने का एक मकसद सरकार ने साफ किया कि बच्चों की पढ़ाई पर निगरानी रखेंगे, माने यह भी पता लगाया जाएगा कि टीचर कैसे पढ़ा रहे हैं ? अगर दिल्ली सरकार को अपने टीचर्स की काबिलियत पर ही शक है तो वो बच्चों की निगरानी रखकर पढ़ाई में सुधार की बातें थोड़ी बेमानी सी है। दूसरे शब्दों में कहें तो एक टीचर और स्टूडेंट के आपसी रिश्ते में सीसीटीवी की आंखें सीधे तौर पर दखलअंदाजी कर रही है। वहीं एक टीचर का वर्कप्लेस जहां उसकी आजादी बसती है, उन पर अब हर माता-पिता की नजरें हमेशा रहेंगी, तो उसकी परफॉरमेंस पर क्या असर पड़ेगा इस पर भी गौर किया जाना चाहिए !
निगरानी और निजता में अंतर है तो उसे देखना जरूरी है
सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने की घोषणा होने के बाद से ही बच्चों की निजता का हनन होने जैसी बातें हो रही है जिसे सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। बच्चों की निजता अगर कुछ नहीं होती तो उसे कम से कम उसके नेचुरलिटी के परिदृश्य में देखना जरूरी है।
टेक्नोलॉजी
टेक्नोलॉजी एक ऐसी चीज होती है जिसका आप चाहें जैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं किसी भी समस्या को झट से रोकना और धीरे-धीरे दूर करने में बड़ा फर्क होता है। आप तुरंत सीसीटीवी लगाकर बच्चों की स्कूल से जुड़ी सारी समस्या पल भर में दूर नहीं कर सकते हैं। हां, सीसीटीवी योजना से कई नए बदलाव आ सकते हैं लेकिन इसमें छुपी उन बारीकियों पर गौर किया जाना भी जरूरी है जो सीधे बच्चों से जुड़ी हैं।
आखिर में क्या है सीसीटीवी योजना ?
सितंबर 2017 में गुरुग्राम के एक बड़े प्राइवेट स्कूल के टॉयलेट में बच्चे का शव मिलने के बाद उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के सभी एक हजार से ज्यादा सरकारी स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा लगवाने का ऐलान किया था।