अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को लेकर पहली बार यूरोपीय संसद चेती है, उसे आज ही क्यों लगा कि किसी देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है। काश! यूरोपीय संसद ने आजादी के बाद से अब तक पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों पर आवाज उठाई होती, तो शायद भारत को सीएए में संशोधन करने की आवश्यकता नहीं होती।
हाल में यूरोपीय संसद ने भारत में बने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रस्ताव पास किया है जिसके प्रतिउत्तर में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने लिखा कि एक विधान मंडल का दूसरे विधान मंडल पर फैसला देना अनुचित है। जिसकी वजह से कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा अपने हितों को साधने के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अंतर-संसदीय यूनियन का सदस्य होने के नाते हमें अन्य विधानमंडलों की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए।
सीएए से नहीं छीनेगी किसी की नागरिकता
लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने सीएए पर सरकार का पक्ष रखते हुए बताया है कि यह पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीडन के शिकार हुए लोगों को आसानी से नागरिकता देने के लिए है, न कि देश किसी नागरिक की नागरिकता छीनने के लिए। इसे कानून बनाने से पहले संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद पारित किया गया है।
इससे अलग यूरोपीय संघ के प्रमुख सदस्य देश फ्रांस ने भारत के पक्ष में अपनी बात कही है। नई दिल्ली स्थित फ्रांस के दूतावास की ओर से जारी बयान के अनुसार, ‘हमने पहले भी कहा है और आज फिर दोहरा रहे हैं कि सीएए भारत का आंतरिक कानूनी मामला है। आगे हमारा जो भी कदम होगा इसी सोच के साथ होगा।’ फ्रांस ईयू के संस्थापक देशों में है और उसका खुलकर साथ मिलने से भारत के लिए यूरोपीय संसद के सदस्यों के सामने अपनी बात रखने में मजबूती आएगी।
यूरोपीय संघ में 29 जनवरी को इन मुद्दों पर होगी चर्चा
जो देश पहले से आतंकवाद से पीड़ित है और दुनिया के कई शांति पूर्ण कार्यों में योगदान के लिए जाना जाता है। आज एक कानून को लेकर उस पर यूरोपीय संघ संदेश कर रहा है और वह देश जो आतंक का गढ़ है और जहां से विभिन्न धर्मों के अल्पसंख्यकों को उत्पीड़ित करके शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किया जा रहा है उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
यूरोपीय संघ के आधिकारिक बयान और फ्रांस के साथ आने के बावजूद यूरोपीय संसद से जो सूचनाएं अभी मिल रही है, उसके अनुसार वहां 29 जनवरी को सीएए, एनआरसी व जम्मू-कश्मीर पर चर्चा होगी। 30 जनवरी को इस पर वोटिंग भी होगी। यूरोपीय संसद के विभिन्न संसदीय दलों ने सीएए को लेकर छह प्रस्ताव सदन पटल पर रखे हैं। कमोबेश सभी प्रस्ताव भारत सरकार के सीएए को लेकर उठाए गए कदमों की निंदा करते हैं।
सबसे अधिक निंदा प्रस्ताव 154 सांसदों वाली एसएंडडी समूह की तरफ से रखे गए हैं। जिसमें कहा गया है कि सीएए की वजह से दुनिया की सबसे बड़ा नागरिकता संबंधी समस्या पैदा हो सकती है। 182 सांसदों वाली ईपीपी समूह ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि सीएए भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को काफी नुकसान पहुंचाएगा। यूरोपीय संसद के 751 में से 600 सांसदों ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया है। अभी तक भारत को लेकर कभी भी इतना बड़ा प्रस्ताव यूरोपीय संसद में नहीं आया है।
लोकतांत्रिक तरीके से पारित हुआ सीएए- भारतीय विदेश मंत्रालय
यूरोपीय संसद में पारित प्रस्ताव के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सीएए पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है। इसे एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत पारित किया गया है। कोई भी देश जब नागरिकता देता है, तो उसके लिए कुछ शर्त तय करता है। यूरोपीय संघ के भी कुछ सदस्य देश इस तरह के नियमों का पालन करते हैं।
मंत्रालय के सूत्रों ने उम्मीद जताई कि यूरोपीय संसद में इस प्रस्ताव को लाने वाले इस बारे में भारत से बातचीत की जाएगी और सीएए पर सही जानकारी लेंगे। भारत को चिंता है कि यूरोपीय संघ में भारी बहुमत से पास होने वाला प्रस्ताव न सिर्फ उसकी छवि को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि यूरोप में उसके रणनीतिक व आर्थिक हितों पर चोट करेगा। ईयू भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार व भारत से सबसे ज्यादा सामान आयात करने वाला समूह है।