सुप्रीम कोर्ट यानि उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में कहा कि घर के भीतर चार दीवारों के बीच अनुसूचित जाति (SC) व अनुसूचित जनजाति (ST) के व्यक्ति पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी अपराध नहीं होती। कोर्ट ने इसके साथ ही गुरुवार को एक व्यक्ति के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत एक इमारत में महिला का अपमान करने के आरोपों को खारिज कर दिया। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा, ‘किसी व्यक्ति के लिए सभी अपमान या धमकी एससी-एसटी कानून के तहत अपराध नहीं होते। ऐसा तब ही होगा जब वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से आता हो।’
सामाजिक तौर से सबके सामने की गई टिप्पणी अपराध
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने साथ ही कहा कि इसे अपराध तभी माना जाएगा, जब अपमानजनक टिप्पणी सामाजिक तौर से सबके सामने की गई हो। पीठ ने कहा, इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों का कोई आधार नहीं है। इसलिए आरोप-पत्र को खारिज किया जाता है। पीठ ने साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता हितेश वर्मा के खिलाफ अन्य अपराधों में दाखिल एफआईआर पर संबंधित कोर्ट कानून के अनुसार सुनवाई करते रहेंगे। वर्मा ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें न्यायालय ने आरोप-पत्र व समन को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया था।
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किसी ने देखा या सुना नहीं तो कैसा अपमान
पीठ ने अपने वर्ष 2008 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें समाज में अपमान और किसी बंद जगह में की गई टिप्पणी के बीच में फर्क बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘तब के फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि अगर आपत्तिजनक टिप्पणी अपराध इमारत के बाहर जैसे घर के लॉन, बालकनी में या फिर बाउंड्री के बाहर किया गया हो, जहां से आते-जाते किसी ने देखा या सुना हो तब उसे सार्वजनिक जगह माना जाएगा।