आज के दौर में ब्यूटी कॉन्टेस्ट में विजेता बनने पर माना जाता है कि मॉडल को अब बॉलीवुड का टिकट मिल गया है। मिस इंडिया या मिस वर्ल्ड बनने का मतलब होता कि अब बॉलीवुड में आसानी से प्रोजेक्ट मिल जाएंगे। लेकिन पुराने दौर की एक अभिनेत्री ऐसी भी हैंं जिनके लिए यह खिताब काम नहीं आया और उन्हें बॉलीवुड में पैर जमाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। हम बात कर रहे हैं गुजरे ज़माने की मशहूर अभिनेत्री नूतन की। 4 जून 1936 में जन्मी नूतन की आज पुण्यतिथि है, आइए आपको उनके शुरुआती कॅरियर और लाइफ के बारे में बताते हैं…।
नूतन की मम्मी शोभना सामर्थ हिन्दी फिल्मों का जाना पहचाना नाम थीं इसलिए नूतन बचपन से ही फिल्मों के सेट पर आया जाया करती थीं। यही कारण था कि वे फिल्मों के प्रति काफी पहले ही आकर्षित हो चुकी थीं। लेकिन नूतन के लिए फिल्मों में जगह बनाना आसान नहीं रहा। उन्होंने बतौर बाल कलाकार ‘नल दम्यंति’ से अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत की। लेकिन बाद में उन्हें फिल्मों के इतने आॅफर नहीं मिले। इसी बीच उन्होंने मिस इंडिया कॉन्टेस्ट में हिस्सा लिया और विजेता बनीं। यह नूतन के लिए बड़ी उपलब्धि थी लेकिन उनका दिल तो फिल्मों के लिए धड़कता था। मिस इंडिया का खिताब होने के बावजूद किसी निर्देशक का ध्यान उन पर नहीं गया। इसके बाद उनकी मां के निर्देशन में बनी फिल्म ‘हमारी बेटियां’ में उन्हें काम करने का अवसर दिया गया। इसके बाद दूसरे निर्देशकों का ध्यान भी उन पर गया।
फिर उन्होंने ‘हमलोग’, ‘शीशम’, ‘नगीना’ और ‘शबाब’ जैसी कुछ फिल्मों में अभिनय किया लेकिन ये फिल्में भी उनके कॅरियर को इतना सफल नहीं बना सकीं। इसके बाद साल 1955 में प्रदर्शित फिल्म ‘सीमा’ से नूतन ने विद्रोहिणी नायिका के सशक्त किरदार को पर्दे पर साकार किया। इस फिल्म में उनका अभिनय इतना दमदार था कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।
यहां आपको बता दें कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सर्वाधिक फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान नूतन और काजोल के नाम संयुक्त रूप से दर्ज है। दोनों को में पांच बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
यूं बढ़ता गया कॅरियर ग्राफ
नूतन ने देवानंद के साथ ‘पेइंग गेस्ट’ और ‘तेरे घर के सामने’ में हल्के-फुल्के रोल कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। 1958 में आई फिल्म ‘सोने की चिड़िया’ के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में नूतन के नाम का डंका बजने लगा। अब वे इंडस्ट्री की स्थापित कलाकार बन गई थीं।
1958 में ही आई फिल्म ‘दिल्ली का ठग’ में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर सभी को चौंका दिया था। उस दौर में यह किसी भी अभिनेत्री के लिए काफी बोल्ड स्टेप था हालांकि उन्हें इसके लिए आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ा।
विमल राय की फिल्म ‘सुजाता’ एवं ‘बंदिनी’ में नूतन ने अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिनय कर अपनी बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल दिया। 1959 में फिल्म ‘सुजाता’ उनके कॅरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। इसके बाद फिल्म ‘अछूत कन्या’ के लिए भी उन्हें काफी वाह वाही मिली और दूसरी बार उनकी झोली में फिल्म फेयर अवॉर्ड आया।
लगातार दर्द भरी दास्तान वाली फिल्में करने के कारण नूतन को इमेज में बंधने वाली एक्ट्रेस कहा जाने लगा। यह माना जाने लगा कि सिर्फ दर्द भरे किरदार ही निभा सकती हैं। इसके जवाब में नूतन ने ‘छलिया’ और ‘सूरत’ जैसी फिल्मों में हास्य अभिनय किया और सभी का मुंह बंद कर दिया।
वर्ष 1965 से 1969 तक नूतन ने दक्षिण भारत के निमार्ताओं की फिल्मों के लिये काम किया। इसमें ज्यादातर सामाजिक और पारिवारिक फिल्में थी। इनमें ‘गौरी’, ‘मेहरबान’, ‘खानदान’, ‘मिलन’ और ‘भाई-बहन’ जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल है। 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘सरस्वतीचंद्र’ की अपार सफलता के बाद नूतन फिल्म इंडस्ट्री की नंबर वन नायिका के रूप मे स्थापित हो गयी।
अपने कॅरियर में कई उम्दा किरदार निभाने वाली नूतन ने चार दशक तक फिल्मी दुनिया पर राज किया और 21 फरवरी 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।