राजस्थान विधानसभा चुनाव में वोटिंग के लिए अब महज 3 दिन बचे हैं। ऐसे में हर सीट के चुनावी समीकरणों के बीच सीमा से सटा इलाका जैसलमेर विधानसभा सीट इन दिनों खासा चर्चा में है। कुछ समय से वहां नेताओं द्वारा ‘जाति एवं धर्म आधारित राजनीति’ करने के आरोप लगने के बीच अब वहां का ‘वोट फॉर नोटा’ अभियान भी सुर्खियों में छाया हुआ है।
इस अभियान के बाद मुख्य पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस के लिए चिंताजनक स्थिति बनी हुई है। अभियान के तहत लोग वोटरों से किसी भी पार्टी को वोट ना करने की अपील कर रहे हैं।
इसके अलावा अभियान में जैसलमेर शहर और आसपास के इलाकों में ‘वोट फॉर नोटा’ लिखी हुई पर्चियां भी घरों में बांटी जा रही हैं। वहीं अभियान से जुड़े कुछ युवा वोट ना देने की अपील वाले नारे की लिखी टीशर्ट पहने दिखाई दे रहे हैं।
चुनाव को नजदीक आते देख अभियान को यूट्यूब और सोशल मीडिया पर भी काफी फैलाया जा रहा है जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस अभियान को पहुंचाया जा सकें।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने शुरू की पहल
बताया जा रहा है कि राजनीतिक पार्टियों का बहिष्कार करने के लिए ‘वोट फॉर नोटा’ पहल की शुरुआत कुछ ही हफ्तों पहले यहां के सामाजिक कार्यकर्ता विमल गोपा ने की थी। एससी-एसटी कानून से नाराज लोग शुरूआत में इसका हिस्सा थे जिसके बाद अलग-अलग तबकों के लोग भी इससे जुड़ने लगे।
अभियान का संचालन करने वाले सोशल वर्कर गोपा का कहना है कि इस अभियान से समाज के हर तबके के लोग जुड़े हैं। हम इस बार चुनाव में राजनीतिक दलों को जाति एवं धर्म आधारित राजनीति ना करने का संदेश देना चाहते हैं।
5 हजार से अधिक लोग दबाएंगे नोटा का बटन
ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस अभियान से पांच हजार से अधिक लोग इस अभियान से जुड़े हैं। ऐसे में इतने वोटर्स के चुनाव ना देने के फैसले के बाद बीजेपी और कांग्रेस की हालत खराब है।