नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने 18 दिसंबर बुधवार को वर्ष 2016 में सायरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाने को गलत करार दिया है और उन्हें फिर से टाटा सन्स के चेयरमैन बनाए जाने का आदेश दिया है। साथ ही ट्रिब्यूनल ने एन चंद्रशेखरन की चेयरमैन पर नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया है।
इससे पहले सायरस मिस्त्री नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में मुकदमा हार गए थे जिसके बाद उन्होंने अपीलेट ट्रिब्यूनल में अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी। अपीलेट ट्रिब्यूनल ने जुलाई में फैसला सुरक्षित रखा था।
यह था पूरा मामला
सायरस मिस्त्री वर्ष 2012 में टाटा संस के चेयरमैन पद पर नियुक्त हुए थे। लेकिन 24 अक्टूबर, 2016 में रतन टाटा कैम्प और कंपनी बोर्ड ने मिस्त्री पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर उन्हें चेयरमैन पद से हटा दिया था। इसके साथ मिस्त्री को ग्रुप की अन्य कंपनियों से भी बाहर निकलने को कहा गया। बाद में सायरस ने ग्रुप की 6 कंपनियों के बोर्ड से अपना इस्तीफा दे दिया और उन्होंने टाटा सन्स व रतन टाटा के निर्णय के खिलाफ उन्हें एनसीएलटी में घसीटा।
शापूरजी पलोनजी समूह की दो कंपनी सायरस इन्वेस्टमेंट और स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ने टाटा ट्रस्ट और टाटा सन्स के निदेशकों के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। जिनमें टाटा संस पर अनियमितता बरतने और टाटा संस के निदेशकों ने आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन और प्रबंधन व नैतिक मूल्यों का उल्लंघन किया।
इस याचिका के माध्यम से यह आरोप लगाया गया था कि मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने का काम ग्रुप के कुछ प्रमोटर्स ने किया। जिनके उत्पीड़न की वजह से उन्हें कंपनी से इस्तीफा देना पड़ा। यह नहीं याचिका के एक अन्य भाग में यह आरोप है कि ग्रुप और रतन टाटा के अव्यवस्थित प्रबंधन की वजह से ग्रुप को आय का काफी ज्यादा नुकसान हुआ। हालांकि टाटा ग्रुप ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया था।
वहीं ग्रुप ने कहा है कि सायरस मिस्त्री को इस्तीफा और ग्रुप से इसलिए बाहर किया गया है क्योंकि बोर्ड उनके प्रति विश्वास खो चुका था। ग्रुप ने आरोप लगाया था कि मिस्त्री ने जानबूझकर और कंपनी को नुकसान पहुंचाने की नीयत से संवेदनशील जानकारी लीक की। इसकी वजह से ग्रुप की मार्केट वैल्यू में बड़ा नुकसान हुआ।