हमारे देश में 5 सितंबर को ‘राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन आता है। डॉ. राधाकृष्णन के समाज में अतुल्य योगदान के कारण उनके जन्मदिन को टीचर्स डे के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गांव में 5 सितंबर, 1888 को हुआ था। उनके पिता का नाम सिवाकमु और माता का नाम सिताम्मा था। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 135वीं जयंती के अवसर पर जानिए उनके प्रेरणादायक जीवन के बारे में कुछ रोचक बातें…
विधार्थी जीवन में विवेकानंद और वीर सावरकर रहे प्रभावित
डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई का शौक था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई। उन्होंने अपनी कॉलेज की पढ़ाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से की। राधाकृष्णन ने वर्ष 1904 में कला वर्ग में स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। वर्ष 1916 में उन्होंने दर्शनशास्त्र में एमए किया। राधाकृष्णन विधार्थी जीवन में स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर से काफी प्रभावित हुए। इनके विचारों को आगे उन्होंने आत्मसात भी किया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. राधाकृष्णन ने मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला। इसके बाद उन्होंने कई विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य किया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन वर्ष 1939 से लेकर 1948 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) के कुलपति भी रहे। वे एक शिक्षक होने के साथ-साथ दार्शनिक और राजनीतिज्ञ भी थे।
डॉ. सर्वपल्ली का 16 साल की उम्र में हो गया था विवाह
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मात्र 16 साल की उम्र में शादी हो गई थी। उनका यह विवाह महज 10 साल की सिवाकामू नाम की लड़की से हुआ था। शादी के पांच साल बाद दोनों के घर में एक बेटी ने जन्म लिया। उनके नाम में सर्वपल्ली जुड़ने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। दरअसल, डॉ. राधाकृष्णन के पूर्वज सर्वपल्ली गांव से थे, जो कुछ समय बाद तिरुतनी गांव में बस गए। उनके पूर्वज चाहते थे कि उनके नाम के साथ सदैव उनके जन्मस्थल गांव का स्मरण हमेशा रहे, यही वजह थी कि पीढ़ी दर पीढ़ी सर्वपल्ली नाम में भी जुड़ गया।
आज़ादी के बाद यूनेस्को में देश का प्रतिनिधित्व किया
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक कॅरियर बेहद महत्वपूर्ण रहा। देश की आज़ादी के बाद राधाकृष्णन ने यूनेस्को में देश का प्रतिनिधित्व किया। वे वर्ष 1949 से लेकर 1952 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत भी रहे थे। वर्ष 1952 में राधाकृष्णन पहली बार देश के उपराष्ट्रपति बने। वे स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माण सभा के सदस्य भी रहे। वर्ष 1962 में डॉ. राधाकृष्णन को देश का दूसरा राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को शिक्षा और राजनीति में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1954 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाज़ा। वे वर्ष 1967 में मद्रास जाकर रहने लगे थे। 17 अप्रैल, 1975 को लंबी बीमारी के कारण डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन हो गया। उन्हें मरणोपरांत मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा ‘टेम्पलटन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
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