किसी दिन मेरे बच्चों को भीड़ ने घेर कर पूछ लिया कि तुम्हारा मजहब क्या है ?

Views : 3297  |  0 minutes read
naseeruddin-shah

नसीरुद्दीन शाह ने वर्तमान हालातों पर अपनी चिंता जताई है या यूं कहे कि अपना डर बयां किया है। हम सभी उसी समाज का हिस्सा हैं जिसमें रहते हुए शाह ने ये बात बोली है तो  इस बात पर सोचना हमारी ज़िम्मेदारी है कि क्या वाकई ऐसे हालात में हम हैं कि एक कलाकार, एक आम आदमी, एक मजदूर, एक तबका सहमा हुआ है?

आज इंसानों का बरगलाया हुआ झुंड इंसान को सरेआम मार रहा है, कभी वजह गाय बता रहा है तो कभी धर्म को खतरा बताता है, लेकिन शाह ने जो बात कही है उससे पता चलता है कि ये खतरे तो बस एक दिखावा है, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इन्हें रचा जाता है, असली खतरे में इस समाज की इंसानियत है, अमन और सुकून की आबोहवा है !

शाह के बयान को हमें हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से ना देखकर इंसानियत की आखों से देखना और समझना चाहिए कि कैसे एक इंसान, इंसानियत के खतरे का इज़हार कर रहा है !

राजनीतिक स्वार्थ के लिए फैलाई जा रही नफरत की भावना रोज हमारे बीच एक हत्यारे को जन्म दे रही है और जल्द ही हमें इसके बारे में सोचना होगा वरना ऐसा हो की हम खुद हमारे ही समाज की हत्या का धब्बा आने वाली कई पीढ़ियों तक ना मिटा पाएं ?

COMMENT