हिंदुस्तान में मुग़लिया सल्तनत कायम करने का श्रेय बाबर को जाता है तो उस सल्तनत को कायम रखने का श्रेय पांचवें मुग़ल यानी शाहजहां को जाता है। शाहजहां को ‘अकबर के हिंदुस्तान’ का वारिस भी माना जाता है। इतिहास को तथ्यों की कमी की वजह से हमेशा से ही शक के दायरे में रख कर पढ़ा जाता रहा है।
ऐसे में मौजूदा दौर के इतिहासकार बनारसी प्रसाद सक्सेना के ‘शाहजहां का इतिहास’ के आधार पर आज शाहजहां की पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं इस मुगल शासक के बारे में।
पैदा होने पर अकबर ने ख़ुर्रम कहकर बुलाया
5 जनवरी, 1592 की जुमेरात को जहांगीर की बेगम ने बेटे को जन्म दिय़ा तो जहांगीर ने दादा अकबर को उसका नाम रखने के लिए कहा। अकबर ने पहली बार में ही उसे ख़ुर्रम कहकर बुलाया। ख़ुर्रम का अर्थ होता है ख़ुशी।
अकबर खुद ज़िंदगी भर अनपढ़ रहा पर ख़ुर्रम को हर तरह की तालीम दिलवाई। 15 साल की उम्र में अकबर उसे साथ जंग पर ले जाने लगा था। शाहजहां का पूरा बचपन अकबर की आबोहवा में ही गुजरा।
36 की उम्र में बन गया हिंदुस्तान का बादशाह
जहांगीर ने जो बगावत अकबर के खिलाफ की थी वो ही बगावती अंदाज दिखाते हुए शाहजहां ने 36 साल की उम्र में हिंदुस्तान का बादशाह बनने में कामयाबी हासिल की। जहांगीर के लगभग हर जंग के दौरान शाहजहां नायक साबित हुआ और उसका जंग में जूनून एकदम अकबर जैसा ही था।
मुमताज़ से थी बेइंतहा मुहब्बत
शाहजहां को मोहब्बत अर्जुमंद बानो यानी मुमताज से थी लेकिन इसके अलावा फ़ारस के सुल्तान शाह इस्माइल की बेटी और अब्दुल रहीम खानखाना की पोती दो और बेगमें थीं। शाहजहां अक्सर सल्तनत के सभी मसलों पर मुमताज से राय लिया करता था। शाहजहां की ताजपोशी के महज़ 3 साल बाद मुमताज़ का सात जून, 1631 को बुरहानपुर में इंतकाल हो गया। शाहजहां ने आगरा में मुमताज को दफना दिया।
शाहजहां की मुमताज़ से इस कद्र मोहब्बत करता था कि उसके इंतकाल के बाद उसने पूरे दो साल तक शोक मनाया। वह अपने जीवन के हर दिन में खालीपन महसूस करने लगा और उसने सारे जलसे और संगीत कार्यक्रमों में शिरकत करना छोड़ दिया।
स्थापत्य कला में अकबर काल से भी आगे
मुगल काल का सबसे अच्छा वास्तुकार शाहजहां को ही माना जाता है। आज विश्व के अजूबों में शामिल नायाब इमारत ताजमहल यकीनन मुग़ल काल का सबसे बेहतरीन तोहफा है। ताजमहल को बनाने वाले वास्तुकार पर आज तक बहस चल रही है लेकिन इतिहासकार बताते हैं कि ख़ुद शाहजहां ही इसका असली वास्तुकार था। शाहजहां को 15 साल की उम्र से ही आर्किटेक्चर से बेहद लगाव था।
ताजमहल विश्व की उन गिनी-चुनी इमारतों में से एक है जहां कई कलाओं का एक साथ संगम देखा जा सकता है।
मज़हबी तौर पर रहा काफी उदार
जहांगीर खुद आधा मुग़ल था और उसकी बेगम यानि शाहजहां की मां जगत गोसाईं राजपूत थी इसलिए शाहजहां कुल मिलाकर सिर्फ एक चौथाई मुग़ल था। शाहजहां सुन्नी मुसलमान था और मुमताज़ शिया थी इसलिए उसके शासनकाल में धार्मिक कट्टरवाद एकदम निचले स्तर पर चली गई थी। लेकिन मुमताज़ के चले जाने के सुन्नी उलेमाओं ने शाहजहां पर अपना अधिकार बढ़ाना शुरू कर दिया जिसके बाद उसने कट्टरता का रास्ता पकड़ा और उस दौरान कई मंदिर गिरवाए।