भारत-पाकिस्तान के बीच खुला समझौते का ‘कॉरिडोर’, अब कर सकेंगे इन खूबसूरत मंदिरों के दर्शन

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आज का दिन कई मामलों में ऐतिहासिक दिन है। एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर अपना ऐतिहासिक सुनाया है। वहीं 70 सालों के लंबे इंतजार के बाद करतारपुरा कॉरिडोर का उद्घाटन किया गया। श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया। ये कॉरिडोर भारत के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे को पाक स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारे से जोड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय श्रद्धालुओं के पहले जत्थे को करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के लिए रवाना करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश को करतारपुर साहब कॉरिडोर समर्पित करना मेरा सौभाग्य है. पीएम मोदी ने देश और दुनिया में बसे सभी सिखों को  करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के मौके पर हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि इस कॉरिडोर के बनने के बाद अब गुरुद्वारा दरबार साहब के दर्शन आसान हो जाएंगे।

लाखों श्रद्धालु पहुंच सकेंगे गुरुद्वारा दरबार साहिब

पाकिस्तान द्वारा सिखों के धार्मिक स्थल गुरूद्वारा करतारपुर साहिब के लिए विशेष कॉरिडोर बना देने के बाद दोनों देशों के लोग इसे एक अच्छी पहल बता रहे हैं। इस कॉरिडोर से भारत के लाखों तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान में रावी नदी के तट पर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर जाने की सुविधा मिलेगी, जहां गुरु नानक देव ने 18 साल बिताए थे। अगले वर्ष होने वाले गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के अवसर पर करतारपुर कॉरिडोर विकसित करने का निर्णय लिया है। करतारपुर साहिब वह जगह है, जहां 1539 में गुरु नानक जी के निधन के बाद पवित्र गुरुद्वारे का निर्माण कराया गया था। बता दें कि इस्लामिक देश होने के बावजूद पाकिस्तान में हिंदुओं की आस्था का ख्याल काफी हद तक अच्छे से रखा गया है। भारत में बहुत लोगों ने ये धारणा बना रखी है कि पाकिस्तान में मंदिर होते ही नहीं होंगे लेकिन ये सोच एकदम गलत है। पाकिस्तान के कई प्रांतों में पौराणिक काल के मंदिर हैं जहां हिंदुओं के साथ मुसलमान भी दर्शन के लिए जाते हैं। बताते हैं आपको ऐसे ही कुछ खास मंदिरों के बारे में….

जगन्नाथ मंदिर, (सियालकोट)

जग्गनाथ मंदिर सियालकोट

पंजाब प्रांत के सियालकोट शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर का पुन: निर्माण 2007 में किया गया था। 1000 साल से भी ज्यादा पुराने इस मंदिर के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री ने दो लाख रूपए का विशेष अनुदान दिया था।

हिंगलाज माता मंदिर, (बलूचिस्तान)

हिंगलाज माता मंदिर जिसे नानी मंदिर भी कहा जाता है माता सती के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। भारत पाकिस्तान के अलावा दुनियाभर से यहां काफी संख्या में दर्शनार्थी हर साल बलूचिस्तान आते हैं।

पुराणों में मंदिर के बारे में जो जिक्र किया गया है उसके अनुसार ये मंदिर वहीं स्थित है जहां माता सती का सिर भगवान विष्णु ने धड़ से अलग कर दिया था जिसके बाद शिव ने यहां तांडव किया था। माना ये भी जाता है कि रावण का वध करने के बाद भगवान राम को जब ग्लानी का अनुभव हुआ तो वो इसी इलाके में आकर रहने लगे थे।

श्री वरुणदेव मंदिर, (मनोड़ा)

श्री वरुणदेव मंदिर, (मनोड़ा)

सिंध प्रांत के कराची शहर से बाहर ये श्री वरुण देव मंदिर 160 से भी ज्यादा वर्ष पूर्व में निर्मित किया गया था। यहां अब भगवान की पूजा तो नहीं होती है मगर पर्यटक इसकी बनावट देखने के लिए काफी संख्या में आते हैं।

कटसराज मंदिर, (चकवाल)

पंजाब प्रांत के चकवाल में स्थित कटसराज मंदिर भगवान शिव का एक बेहद खूबसूरत मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल से भी पहले का है।

                                                                  कटसराज मंदिर का खूबसूरत नजारा

मंदिर के बारे में तरह तरह के किस्से कहानियां यहां काफी प्रचलित है जिनमें से यहां स्थित तालाब के बारे में कहा जाता है कि ये भगवान शिव के आंख से गिरे आंसू से बना था।

पंचमुखी हनुमान मंदिर, कराची


कराची में स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर ना सिर्फ हिंदू बल्कि मुसलमानों की भी आस्था का प्रतीक है। इस मंदिर का निर्माण किसी इंसान ने नहीं किया, बल्कि हनुमान जी की प्राकृतिक मूर्ति को यहां खोजा गया था और तभी से लोगों में मंदिर के प्रति गहरी आस्थ होने लगी।

कालका देवी, सिंध


मां काली जब हिंगलाज की ओर बढ़ रही थी तो वो कुछ देर यहां एक गुफा में ठहरी थी तभी से इस रहस्यमयी गुफा को देखने काफी संख्या में लोग यहां आने लगे। महीने के हर पहले सोमवार को इस गुफा के दर्शन करने की छूट दी जाती है।

गोरखनाथ मंदिर, पेशावर


मुगल बादशाह बाबर द्वारा लिखी गई किताब बाबरनामा में इस मंदिर का जिक्र किया गया है। किले जैसे दिखने वाले इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान गोरखनाथ यहां एक कुंड में नहाने के लिए कूद गए थे और 15 किलोमीटर आगे तक पहुंच गए थे।

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