5 राज्यों के चुनावों बाद देश में मोदी लहर या मोदी मैजिक के क्या हैं मायने?

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देश के 5 राज्यों में हाल ही में खत्म हुए विधानसभा चुनावों को सभी राजनीतिक पंडितों ने 2019 का सेमीफाइनल कहा। नतीजे आने के बाद सियासी तूफान उठा और बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजी। बीजेपी सत्ता वाले तीनों राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से सरकार कांग्रेस के पाले में आ गई। 13 सितंबर 2013 को भारत को एक नया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में मिला जिसके साथ ही “मोदी लहर” नाम भी काफी चर्चा में रहा।

मोदी लहर का मैजिक

बीजेपी के लिए सबसे अहम चेहरा मोदी के बनने के बाद दिसंबर 2013 में चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला और दिल्ली आप के पाले में चली गई। इन तीन हिंदीभाषी राज्यों में बीजेपी के जीत का परचम लहराने से सियासी हल्कों में मोदी लहर चलने लगी। मोदी लहर के ऊपर ही 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा गया और 30 साल में कोई पार्टी अपने बलबूते बहुमत से सत्ता में आई। मोदी लहर ऐसी चली कि फिर एक-एक कर 21 राज्यों में बीजेपी का झंडा लहराया।

मोदी लहर से निकला कांग्रेस मुक्त भारत का नारा

मोदी लहर के आने के बाद अधिकांश राज्यों में सत्ता पर आसीन कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी और देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी को देश की कमान छोड़नी पड़ी। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, असम, आंध्र प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सरकारें होने के बावजूद उसे विरोधी लहर का सामना करना पड़ा।

अब लहर का ताजा रूख क्या है?

लगातार जीत का परचम लहराने वाली बीजेपी को आखिरकार सत्ता विरोधी लहर भी देखनी पड़ी। कुछ समय पहले हुए गोरखपुर, फूलपुर, कैराना के लोकसभा उपचुनावों में हार जिसके बाद ताजा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की करारी हार से मोदी मैजिक या मोदी लहर पर कई सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं। विपक्षी खेमे में खुशी का माहौल है।

बीजेपी को 2013 वाली जीत की याद सताती है !

2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई हार के बाद हर कोई बीजेपी की 2013 की जीत को याद कर रहा है। दिसंबर 2013 में जहां मध्य प्रदेश में बीजेपी को 168 सीटें मिली, राजस्थान में 163 सीटें जीती तो वहीं छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से बीजेपी को 49 सीटों पर जीत हासिल हुई, लेकिन इस बार सारा गणित गड़बड़ा गया। स्थानीय चुनाव भले ही राज्य के मुद्दों पर लड़े जाते हैं लेकिन 2019 की बिसात यहां से बिछनी शुरू हो चुकी है।

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