एस.एम.एस. हाईवे बनते-बनते बन गई एम.आई.रोड, जानिए कैसे

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18 नवम्बर 1727 को बसे जयपुर शहर की खुबसूरती पूरी दुनिया में मशहूर है। आज भी अपने उसी पारंपरिक अंदाज़ को संजोए रखने वाले इस शहर को देखने हर साल हज़ारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। ये तो हम सभी जानते हैं कि ये गुलाबी नगरी महाराजा जयसिंह की दूरदर्शी सोच का परिणाम है। मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि जयपुर की सूरत बदलने में दीवान मिर्जा इस्माइल का बेहद अहम रोल था। 24 अक्टूबर 1883 को जन्मे मिर्जा स्माइल ने आज ही के दिन यानी 5 जनवरी 1959 को दुनिया को अलविदा कह दिया था। चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें :

जयसिंह की कल्पना को रामसिंह ने दिया था रंग :

महाराजा जयसिंह और उनके बाद के राजाओं ने जयपुर को पहले सफेद और पीले रंग से पोता था, मगर महाराजा रामसिंह ने इसे गुलाबी रंगवाया और तभी से यह गुलाबी नगर कहलाने लगा। रामसिंह के बाद महाराजा माधोसिंह आए जिन्होंने शहर में मल और गन्दे पानी को बाहर निकालने के लिए भूतल का उपयोग किया। इंग्लैंड यात्रा के बाद तो माधोसिंह की सोच पूरी तरह से बदल गई थी और उन्होंने शहर को अधिक आधुनिक बनाने के लिए प्रयास शुरू किए। तब जयपुर की जनसंख्या एक लाख से भी कम थी।

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परकोटे से बाहर निकल गई थी मानसिंह की सोच :

साल 1922 में माधोसिंह की मृत्यु के बाद सवाई मानसिंह के शासनकाल में अनेक प्रगतिशील सुधार हुए। उस दौरान जयपुर शहर सिर्फ परकोटे से घिरा हुआ था। मगर अजमेर के मेयो काॅलेज में इंग्लिश एजुकेशन सिस्टम से शिक्षित मानसिंह की कल्पना परकोटे को पार करने लगी थी। उन्हें एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता थी जो आधुनिक विचारों वाला हो। तब मैसूर राज्य का बड़ा नाम था। अंग्रेज इसे देश का सबसे समृद्ध रजवाड़ा मानते थे। सर मिर्जा मुहम्मद इस्माइल उस दौरान मैसूर के दीवान हुआ करते थे।

मैसूर छोड़ जयपुर महाराजा का थामा हाथ :

वर्ष 1940 में मैसूर के महाराजा कृष्णराजा की मृत्यु के बाद नए महाराजा धर्मराजा वाडियर से मिर्जा इस्माइल की सोच नहीं मिल सकी और उन्होंने 1941 में इस्तीफा दे दिया। मैसूर राजा के दीवान का पद छोड़ते ही सर मिर्जा को कई राजाओं ने अपने राज का दीवान पद सम्भालने का आग्रह किया। इनमें से सबसे प्रबल आग्रह सवाई मानसिंह का था। उन्होंने सर मिर्जा को आश्वस्त किया कि उन्हें उनके राज्य में खुली छूट मिलेगी और जैसा उन्होंने मैसूर में कर दिखाया वैसा ही जयपुर में भी करके दिखाएं।

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ठाकुरों को नापसंद था मुसलमान को जयपुर की दीवानी देना :

महाराजा सवाई मानसिंह तो सर मिर्जा को जयपुर का दीवान बनाने का फैसला कर चुके थे, लेकिन एक मुसलमान को जयपुर की दीवानी देना कई ठाकुरों और जागीरदारों को गवारा नहीं था। कड़े विरोधों के बावजूद भी जून 1942 में सर मिर्जा इस्माइल ने अपना पद सम्भाला। सवाई मानसिंह ने उन्हें परकोटे के बाहर दक्षिण छोर के विकास का जिम्मा सौंपा। इस काम को उन्होंने इतने बेहतर तरीके से पूरा किया कि केवल एक साल के लिए दीवान का पद स्वीकार करने वाले सर मिर्जा का कार्यकाल दो वर्ष बढ़ा दिया गया।

पांच स्कीमों के तहत हुआ था जयपुर का विकास :

इसके बाद जयपुर राज्य में विकास ने रफ्तार पकड़ी और सर मिर्जा इस्माइल के कार्यकाल में भूमि विकास के अन्तर्गत ए, बी, सी, डी और ई स्कीमें बनी। तब प्रतिगज चार आने और आठ आने में जमीने अलाॅट हुई थीं, लेकिन ज्यादातर नए इलाकों में या तो खेत थे या जंगल। बाहर क्षेत्र में विकास के लिए सबसे पहले परकोटे से जुड़े हिस्से न्यू काॅलोनी का विकास किया गया। साथ ही अजमेरी गेट से रेलवे स्टेशन तक नई सड़क बनाई गई और सड़क के दोनों ओर बाजार विकसित करने के लिए जमीनें दी गईं।

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इस तरह मिली थी जयपुर को मिर्जा स्माइल रोड :

जयपुर पूरी तरह से बदल चुका था और सर मिर्जा को दूसरे घरानों से भी बुलावा आने लगा था। शहर के एक हिस्से में बंगलूरु पद्धति पर बड़े चैक के अन्तर्गत भवन बनाए गए थे, जिसके बीचों-बीच बड़े खम्भे में पांच लाइटें लगाई गईं। जिसके चलते इस चैक का नाम पांचबत्ती पड़ा, जहां शहर के रईस रहते थे। उसके आस—पास की सड़क सर मिर्जा ने अपनी निगरानी में बनवाई थी। ऐसे में सवाई मानसिंह ने उन्हें जयपुर छोड़कर जाने से रोकने के लिए उसका नामकरण मिर्जा इस्माइल रोड (एम.आई.रोड) कर दिया।

एम.आई.रोड बन सकती थी एस.एम.एस. हाइवे :

बता दें कि सर मिर्जा ने इस सड़क का नाम राजा मानसिंह के नाम पर एस.एम.एस. हाइवे रखने का सुझाव दिया था। मगर इसका नाम सर मिर्जा के नाम पर रखकर एक महाराजा ने उनके योगदान को सम्मानित किया था। हालांकि दरबारी मानसिकता से त्रस्त ठाकुरों और जागीरदारों ने एक दीवान के नाम पर किसी सड़क का नाम रखे जाने के महाराजा के फैसले का कड़ा विरोध किया। अब चाहे कोई कुछ भी कहे मगर सर मिर्जा स्माइल के योगदान के सामने तो ये सम्मान भी कम ही था।

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