लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। 26 जून को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफा दिया जिसके बाद कांग्रेस में इस्तीफों की झड़ी लग गई। बीते एक हफ्ते में कांग्रेस के 130 अलग-अलग पदाधिकारियों ने पद छोड़ दिया है।
यूपीए अध्यक्ष और मां सोनिया गांधी की मौजूदगी में, राहुल ने पिछले हफ्ते एक लिखित इस्तीफे की घोषणा की, जिसमें कुछ एआईसीसी (ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी) सचिवों, युवा कांग्रेस नेताओं और महिला कांग्रेस की कथित सहमति बताई गई।
राहुल का कहना है कि हाल के लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद किसी की जवाबदेही सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि नए अध्यक्ष को चुनना कांग्रेस वर्किंग कमेटी के ऊपर है।
लग गई इस्तीफों की झड़ी
राहुल गांधी के इस्तीफे की घोषणा के बाद से ही देश के सभी कोनों से जल्द ही इस्तीफों की खबरें आने लगी। कई वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों ने राहुल के सम्मान में पद छोड़ दिया। अकेले उत्तर प्रदेश से कुछ 36 सांसदों ने इस्तीफा दे दिया।
इस्तीफा देने वालों में सांसद विवेक तन्खा, जो कि पार्टी के कानूनी और मानवाधिकार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष थे, मध्य प्रदेश में कांग्रेस महासचिव दीपक बाबरिया, गोवा इकाई के प्रमुख गिरीश चोडणकर, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया और तेलंगाना पीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष पोन्नम प्रभाकर, सभी ने अपने-अपने राज्यों में पार्टी की हार की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। ।
इस्तीफा देने वाले अन्य लोगों में मेघालय के महासचिव नेता पी. संगमा, छत्तीसगढ़ के सचिव अनिल चौधरी और हरियाणा के सचिव सत्यवीर यादव शामिल हैं।
पार्टी ने क्या प्रतिक्रिया दी
इस बीच, पार्टी ने इतने सारे इस्तीफ़ों पर अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। राहुल खुद अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए अड़े हुए हैं। हालांकि, हाल में हुई सारी बैठकों ने कांग्रेस के सभी कार्यकर्ताओं को निराश किया है। राहुल गांधी ने इस साल के अंत में होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनावों में पार्टी की भविष्य की रणनीति पर भी कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जिससे राज्य इकाई का मनोबल टूट गया है।
क्या नेतृत्व संकट जल्दी हल हो पाएगा?
कांग्रेस अध्यक्ष के अपने पद से इस्तीफा देने और देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी के शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार से कोई बाहर का नियुक्त करने की चर्चाओं से राजनीतिक गलियारों में वंशवाद की राजनीति के खिलाफ आवाज मुखर हुई है। यहां तक कि बीजेपी वंशवाद के खिलाफ लंबे समय से बोल ही रही है।
इसके अलावा हिंदी हार्टलैंड के तीन राज्यों में 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हाल की जीत यह साबित करती है कि पार्टी के पास युवा और सक्षम नेता हैं जो नेहरू-गांधी परिवार से नहीं है। वह आगे आकर कमान अपने हाथों में लेकर पार्टी के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं जिसकी पार्टी को सख्त जरूरत है।
आखिर में गांधी, गहलोत, सिंधिया और नाथ जैसी राजवंशीय ताकतों को एक कदम पीछे हटने की इस समय जरूरत है और लोकतांत्रिक तंत्र में अपनी भूमिका पर फिर से विचार करना चाहिए, जिससे नए नेताओं को आगे आने का मौका मिले।