राजस्थान विधानसभा चुनावों में सियासी समीकरणों के साथ जातिगत पेंच भी बराबर काम करता है। प्रदेश की दोनों मुख्य पार्टियों के नेता जहां जातियों के जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं वहीं पार्टियों में नेताओं की विदाई और स्वागत का दौर भी साथ में चल रहा है।
हाल ही में जहां बीजेपी के दिग्गज नेता रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह ने पार्टी से विदाई लेकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। मानवेंद्र के कांग्रेस में शामिल होने पर जहां कांग्रेस अंदर ही अंदर गदगद हो रही है वहीं बीजेपी को इससे थोड़ी ही सही पर खुशी मिल रही है, पर ऐसा क्यों, आइए समझते हैं।
राजपूत मानवेंद्र के साथ, पर जाटों का क्या?
बीजेपी नेता जसवंत सिंह और उनके बेटे की मारवाड़ क्षेत्र के राजपूत समुदाय में काफी पैठ है लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इतने सालों में भी ये राजपूत नेता जाटों पर वो जादू नहीं चला पाए। अब जब मानवेंद्र सिंह कांग्रेस में हैं जब चुनावों में कांग्रेस को जाट वोटों का नुकसान झेलना पड़ सकता है।
खुद कांग्रेसियों को नहीं भा रही मानवेंद्र की एंट्री-
पूर्व सांसद हरीश चौधरी जो कि बाड़मेर से आने वाले एक जाट नेता है बाड़मेर क्षेत्र से पिछले दशक कांग्रेस का चेहरा थे। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि इस क्षेत्र में विधानसभा उम्मीदवारों का चयन मानवेंद्र के कहने पर होगा। अपने जाट नेता को इस तरह देखकर खुद प्रदेश के जाट खुश नहीं हैं।
9 सीटों पर जाट बिगाड़ सकते हैं खेल-
कांग्रेस नेता हरीश चौधरी ने भी मानवेंद्र पर अपनी नाराजगी जाहिर की है। ऐसा माना जा रहा है कि इससे बाड़मेर और जैसलमेर जिलों की कम से कम 9 सीटों पर इसका असर पड़ सकता है।