देश में एक बार फिर पुरस्कार लौटाने का मामला तूल पकड़ रहा है। मणिपुरी फिल्मकार अरिबाम श्याम शर्मा ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के विरोध में अपना ‘पद्मश्री’ सम्मान लौटा दिया। उन्हें वर्ष 2006 में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया था। नागरिकता (संशोधन) विधेयक को उन्होंने पूर्वोत्तर भारत विरोधी करार दिया।
Filmmaker Aribam Shyam Sharma returns his 2006 Padma Shri award in protest against Citizenship Amendment Bill. pic.twitter.com/zJ4QQlK9Ze
— ANI (@ANI) February 3, 2019
शर्मा मणिपुर के जाने-माने निर्देशक व कंपोजर हैं उन्हें ‘ओलांगथागी वांगमदासू’, ‘इमागी निंग्थम’ और ‘इशानौ’ जैसी मणिपुरी फिल्मों के लिये जाने जाते हैं।
शर्मा ने कहा कि केंद्र विधेयक वापस लेने की पूर्वोत्तर की जनता की अपील नहीं सुन रहा है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पूर्वोत्तर खासकर मणिपुर और यहां के लोगों के हितों के खिलाफ है। इस पर (विधेयक के पारित होने पर) पुनर्विचार को लेकर पूर्वोत्तर में सभी राज्यों के तमाम नेता भी केंद्र सरकार से अनुरोध कर चुके हैं।
शर्मा ने कहा, लेकिन कल जब मैं खबरें देख रहा था तब हमारे माननीय प्रधानमंत्री यह घोषणा कर रहे थे कि विधेयक जल्द पारित किया जायेगा।
त्रिपुरा का उदाहरण देते हुए फिल्मकार ने कहा कि अगर यह विधेयक पारित होता है तो इतिहास खुद को दोहराएगा।
उन्होंने कहा, हम लोग इसे त्रिपुरा में देख चुके हैं। त्रिपुरा में त्रिपुरावासियों की ही नहीं चलती… मणिपुर की आबादी सिर्फ 28-29 लाख है जो उत्तर प्रदेश में एक जिले की आबादी से भी कम है। उन्होंने कहा, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय जैसे छोटे राज्यों को संरक्षण मिला है। बावजूद इसके वे विरोध कर रहे हैं क्योंकि अगर यह विधेयक पारित होता है तो वहां के मूल निवासियों का कोई अस्तित्व नहीं बचेगा। उनका सफाया हो जाएगा। यह अभी नहीं हो सकता लेकिन आज से 50 साल बाद यह जरूर होगा।
शर्मा ने कहा कि सम्मान लौटाना ही एकमात्र ऐसा तरीका है जिसके जरिए मैं विधेयक के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकता हूं। उन्होंने कहा, मैं कोई नेता नहीं हूं। मेरा राजनीति से भी कोई लेना-देना नहीं है। मैं महज एक फिल्मकार हूं। मैंने जीवन में काफी कुछ देखा है। लेकिन यह सबसे बुरा है। अगर यह विधेयक पारित होता है तो हम जैसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी। यह पूर्वोत्तर के खिलाफ है।
उन्होंने कहा, इसके सिवा मैं कुछ कर भी नहीं सकता। यही एकमात्र तरीका है जिसके जरिए मैं अपना विरोध जता सकता हूं…हम लोग उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। कुछ किस्म की नस्ली भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं… अगर इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके नतीजे गंभीर होंगे।
क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक?
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 को लोकसभा में नागरिकता अधिनियम 1955 में बदलाव के लिए लाया गया था। केंद्र सरकार ने इस विधेयक के जरिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को बिना वैध दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए उनके निवास काल को 11 वर्ष से घटाकर छह वर्ष कर दिया गया है। यानी अब ये शरणार्थी 6 साल बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस बिल के तहत सरकार अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास में है।