पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फिलहाल मीडिया की सुर्खियों में है। अपनी राजनीतिक दाव-पेंच और तेज-तर्रार रवैये के चलते दीदी की हर तरफ चर्चा हो रही है। हाल ही दिए धरने से ममता बनर्जी ने सीबीआई को आड़े हाथों लिया।
फिलहाल दीदी ने धरना खत्म कर दिया है। कोर्ट के निर्देश आने के बाद ममता ने इसे उनकी नैतिक जीत बताया और धरना से उठ गईं। धरनों के साथ ममता दीदी का पुराना नाता रहा है। इतिहास के पन्नों में इस साधारण सी दिखती औरत के नाम कई धरने दर्ज हैं।
ममता बनर्जी हमेशा से ही तल्ख रवैये वाली रही हैं। उनका टैंपर हमेशा से ही हाई रहा है। उनका राजनीतिक कॅरियर इस बात की गवाही भी देता है। उस वक्त ममता का नाम खूब उछला था जब वे जयप्रकाश नारायण की गाड़ी के बोनट पर बैठ गईं। अपने राजनीतिक सफर में उन्होंने कई बार विरोध किया।
बात 1996 की है जब वे अलीगढ़ में एक रैली में मौजूद थीं और काली शॉल अपने गले में डालकर फांसी खाने की धमकी देने लगीं।
2006 में ममता बनर्जी ने कोलकाता के मेट्रो चैनल पर 25 दिनों की भूख हड़ताल की। जिसमें सिंगूर के किसानों से जबरन हड़पी गई ज़मीन वापस करने की मांग की गई थी। ममता ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्जी की अगुवाई वाली वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ एनटीए निर्माण प्लांट के लिए टाटा मोटर्स को 1,000 एकड़ बहु-फसली भूमि सौंपने के लिए अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया था।
उस निर्णय की कीमत वाम मोर्चे को बहुत भारी पड़ी और ममता बाद में बंगाल में विपक्ष का चुनावी चेहरा बन गईं और आखिर में ममता ने वहां जीत हासिल की और लेफ्ट सरकार को हरा दिया।
सिंगूर पर मीडिया का ध्यान तब गया जब टाटा मोटर्स की एक कार बनाने के लिए वहां फैक्ट्री का निर्माण शुरू किया। टाटा नैनो के लिए यहां फेक्ट्री लगाई जानी थी जिसका अनुमानित खर्च सिंगूर में $ 2,500 थी।
पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम नियम का हवाला देते हुए 997 एकड़ (4.०3 किमी 2) खेत का एक प्रमुख डोमेन अधिग्रहण करने का फैसला किया जिस पर टाटा मोटर्स को अपना कारखाना बनाना था। यह नियम सार्वजनिक सुधार परियोजनाओं के लिए था, और पश्चिम बंगाल सरकार चाहती थी कि टाटा उनके राज्य में निर्माण करे।
इस परियोजना का बंगाल में कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों ने विरोध किया था। और तभी ममता बनर्जी ने 25 दिनों तक धरना दिया था।