आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि व खड़ी बोली को प्रमुखता से अपने साहित्य में स्थान देने वाले मैथिलीशरण गुप्त आज 3 अगस्त को 137वीं जयंती है। मैथिलीशरण को राष्ट्रकवि कहा जाता है। उनकी कविताएं निराश मन में भी उमंग भर देती थी। गुप्त ने खड़ी बोली को अपने साहित्य में ब्रज भाषा के स्थान पर महत्व देते हुए आगे लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। इस खास अवसर पर जानिए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय
मशहूर कवि कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 को उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ था। उनके पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता काशीबाई थी। उन्हें बचपन से ही स्कूल जाना पसंद नहीं था। वह स्कूल में खेलकूद में ज्यादा समय बर्बाद किया करते थे, जिसके कारण वह पढ़ाई में पिछड़ने लगे तो पिता ने उनके पढ़ने का इंतजाम घर पर कर दिया था।
उन्हें तीसरी कक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए झांसी के मैकडोनाल्ड हाई स्कूल में भर्ती करवा दिया। परंतु उनका झुकाव लोककला, लोक-संगीत, लोक-नाट्य, खेल-कूद व अन्य मनोरंजन की ओर अधिक था। इस कारण से मैथिलीशरण को गांव वापस बुला लिया गया। उन्होंने घर पर हिन्दी, बांग्ला व संस्कृत साहित्य आदि विषयों का अध्ययन किया।
12 साल की उम्र में ब्रजभाषा में कविता लिखने लगे थे गुप्त
मैथिलीशरण का मार्गदर्शन मुंशी अजमेरी ने किया था। उन्होंने मात्र 12 साल की अवस्था में ही ब्रजभाषा में कविता लिखना आरंभ कर दिया था। हिंदी की खड़ी बोली को प्रोत्साहित करने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से उनकी मुलाकात हुई और उनके कहने पर ही खड़ी बोली में मैथिलीशरण ने अपना लेखन कार्य शुरू किया जो ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित होने लगी। गुप्त पहली रचना ‘रंग में भंग’ प्रकाशित हुआ।
इसके बाद उनकी दूसरी रचना ‘जयद्रथ वध’ प्रकाशित हुई। मैथिलीशरण की स्वतंत्रता आंदोलन के समय वर्ष 1914 में राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत रचना ‘भारत-भारती’ प्रकाशित हुई। जिसने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों में आजादी की तड़प जगा दी। इसने मैथिलीशरण को राष्ट्रकवि बना दिया। मैथिलीशरण ने देश प्रेम, सामाजिक सुधार, धर्म प्रधान, राजनीति, भक्ति जैसे सभी विषयों पर काव्य रचनाएं की। वर्ष 1931 में ‘साकेत’ और ‘पंचवटी’ की रचना की। इस दौरान वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए।
मृत्युपर्यंत राज्यसभा के सदस्य रहे गुप्त
मैथिली शरण गुप्त की ज्यादातर काव्य संग्रह रामायण, महाभारत, बौद्ध कथाओं और प्रसिद्ध धार्मिक नायकों के जीवन चरित्र के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उनकी प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘साकेत’ रामायण महाकाव्य के पात्र लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के जीवन चरित्र को उजागर करती है, जबकि उनकी एक अन्य रचना ‘यशोधरा’ जो गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के इर्द-गिर्द घूमती है।
प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को हिन्दी-कविता (खड़ी बोली) का जन्मदाता कहती थी। उनके समय में हिन्दी-साहित्य में तीन ‘द’ को बड़े आदर की दृष्टि से देखा जाता था- दादा माखनलाल चतुर्वेदी, दद्दा मैथिली शरण गुप्त और दीदी महादेवी वर्मा। सबके नाम में भी ‘म’ का सादृश्य था। वर्ष 1947 में देश आजाद हो गया, उसके बाद उन्हें राज्यसभा का मानद सदस्य भी बनाया गया और मृत्युपर्यंत राज्यसभा के सदस्य बने रहे।
साहित्य रचनाएं एवं पुरस्कार
मैथिलीशरण गुप्त को भारत सरकार ने वर्ष 1954 में देश के तीसरे सर्वोच्च पुरस्कार ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया। उनकी रचना ‘भारत भारती’ (1914) देश की आज़ादी के दौरान लोगों में देशभक्ति को उजागर में प्रभावशाली रही और इस कारण से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपमा दी थी। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने साल 1962 में ‘अभिनंदन ग्रंथ’ भेंट किया। गुप्त हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी. लिट. की उपाधि से भी सम्मानित किए गए थे।
कवि मैथिली शरण गुप्त हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में एक थे। गुप्त की 40 मौलिक तथा 6 अनुदित पुस्तकें प्रकाशित हुईं। उनकी प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार हैं:- ‘तिलोत्तमा’ (1915), ‘शकुंतला’ (1919), ‘पंचवटी’ (1925), ‘हिन्दू’ (1927), ‘त्रिपथगा’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’ (1932), ‘मंगलघाट’ , ‘नहुष’, ‘विश्ववेदना’ (1942), ‘प्रदक्षिणा’ (1950), ‘जय भारत’ (1952), ‘रत्नावली’ (1960) आदि प्रमुख हैं। इसमें सर्वाधिक लोकप्रियता ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘जय भारत’ और ‘द्वापर’ को मिलीं।
राष्ट्रकवि मैथिली शरण का निधन
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपने प्रभावी लेखन से हिंदी साहित्य की बखूबी सेवा की और अपनी नायाब रचनाओं से उन्होंने देशभक्ति, नारी पीड़ा और समाज सुधार को प्रेरित किया। 12 दिसंबर, 1964 को 78 वर्ष की उम्र में भारत के इस महान कवि का निधन हो गया।
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