महान हिन्दी कवयित्री, लेखिका, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् महादेवी वर्मा की 26 मार्च को 116वीं जयंती है। उनका जन्म वर्ष 1907 को उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था। उनके पिता पेशे से प्रोफेसर हुआ करते थे और उन्होंने ही महादेवी को अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी माँ ने विशेष रूप से उन्हें संस्कृत और हिंदी दोनों सीखने के लिए प्रेरित किया। महादेवी ने सात साल की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्हें भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)’ समेत कई बड़े सम्मानों से नवाज़ा गया। महादेवी को ‘आधुनिक युग की मीरा’ भी कहा जाता है। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
महादेवी की नौ साल की उम्र में करा दी गई थी शादी
महादेवी वर्मा की महज नौ साल की उम्र में शादी कर दी गई थी, लेकिन उन्होंने अपने माता-पिता के साथ रहना जारी रखा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के दौरान महादेवी वर्मा की कविताएं लोगों के बीच आने लगीं। इससे पहले वे अपने इस हुनर को छुपाकर ही रखती थीं। इस फील्ड में उनका शुरुआती काम उनकी रूममेट और दोस्त प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा पहली बार देखा गया था। वर्मा और चौहान ने हिंदी में लिखना शुरू किया और जानी-मानी कवयित्री बन गईं।
वो मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना
वो तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना!
छायावादी युग के प्रमुख रचनाकारों में शामिल हैं महादेवी
महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य में छायावाद आंदोलन के प्रमुख रचनाकारों में से एक माना जाता है। वर्मा को सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रा नंदन पंत और उनके समकालीन सहित कई लोकप्रिय हिंदी कवियों द्वारा सराहा गया था। उनके साहित्य को देखते हुए उन्हें आधुनिक मीराबाई तक कहा जाता है। हिंदी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ में सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ महादेवी भी प्रमुखता के साथ शामिल की जाती हैं। उन्होंने बाल कविताएं भी लिखीं हैं, जो काफी पसंद की गईं। उनकी बाल कविताओं के दो संकलन भी प्रकाशित हुए, जिनमें ‘ठाकुर जी भोले हैं’ और ‘आज खरीदेंगे हम ज्वाला’ शामिल हैं। महादेवी वर्मा को कवयित्री के तौर पर जाना जाता है, लेकिन उन्होंने कई कहानियां और संस्करण लिखे हैं, जो साहित्य जगत को और समृद्ध करते हैं।
पति से दूर संन्यासिन की तरह बताया सारा जीवन
महादेवी वर्मा का निजी जीवन सफल नहीं रहा और वे अपने पति से अलग रहती थीं। उनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज कस्बे के रहने वाले वरुण नारायण वर्मा से हुआ, लेकिन यह सफल नहीं रहा। इसके बाद उन्होंने जाने-अनजाने खुद को एक संन्यासिनी का जीवन में ढाल लिया। इसके बाद उन्होंने पूरी जिंदगी सफेद कपड़े पहने। वह तख्त पर सोईं। यहां तक कि कभी श्रृंगार तक नहीं किया था। महादेवी के जीवन के निशान उनके द्वारा लिखे गए साहित्य में दिखते हैं जो कि संवेदना से भरा है। कर्मक्षेत्र में महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे लोगों के संपर्क में आने से इनके विचारों को और भी ज्यादा अच्छी दिशा मिलीं।
कई सम्मानों से नवाज़ा गया था महादेवी को
महादेवी वर्मा अपने आप में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक हैं। आज कई आधुनिक लेखिकाएं उन्हें अपना प्रतीक मानती हैं। वर्ष 1934 में उन्होंने अपने काम के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन में ‘सेसरिया पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1956 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ और वर्ष 1979 में ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 1982 में उन्हें कविता संग्रह ‘यामा’ के लिए ‘ज्ञानपीठ अवॉर्ड’ से दिया गया। इसके बाद वर्ष 1988 में महादेवी को भारत सरकार ने देश के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार ‘पद्म विभूषण’ से नवाज़ा। 11 सितंबर, 1987 को प्रयागराज में महादेवी वर्मा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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