दुनियाभर के दृष्टिहीनों के मसीहा और उन्हें पढ़ने-लिखने योग्य बनाने वाले लुई ब्रेल की आज 214वीं जयंती है। लुई एक महान शिक्षाविद और ब्रेल लिपि के आविष्कारक थे। उनके इस आविष्कार की वजह से पूरी दुनिया में हर साल 4 जनवरी को उनकी स्मृति में ‘विश्व ब्रेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। लुई ने दुनिया के दृष्टिहीन लोगों के लिए ब्रेल लिपि बनाईं, जिससे ये लोग पढ़-लिखकर समाज की मुख्यधारा से जुड़ने में सक्षम हो रहे हैं। इस लिपि की बदौलत ही नेत्रहीन अपनी आजीविका के लिए आज दूसरों पर निर्भर नहीं हैं। इस खास मौके पर जानिए दृष्टिहीनों के जीवन में अपने आविष्कार से रोशनी लाने वाले लुई ब्रेल के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
लुई ब्रेल का जीवन परिचय
प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं वैज्ञानिक लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी, 1809 को फ्रांस के कौपव्रे (Coupvray) नामक गांव में हुआ था। उनके पिता साइमन रेने और माता मोनिके थीं। उसके पिता का घोड़ों की काठी बनाने का कारखाना था। लुई के तीन बड़े भाई-बहन थे। तीन साल की उम्र में खेलते समय उनकी आंख में किसी औजार से एक आंख जख्मी हो गई, जिससे उन्हें काफी पीड़ा हुई और खूब इलाज के बाद भी वह सही न हो सकी। बढ़ते संक्रमण से उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी हमेशा के लिए चली गई। इस प्रकार लुई को दिखना बंद हो गया।
ब्रेल लिपि का आविष्कार कर लाए क्रांति
अपनी आंखों से दिखाई नहीं देने के बाद भी लुई ब्रेल ने हिम्मत नहीं हारी। परिवारजनों ने एक पादरी की मदद से उनका पेरिस के ‘रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रेन’ में एडमिशन करा दिया। इसमें अंधे बच्चों को वेलन्टीन होउ द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाया जाता था जोकि अधूरी लिपि थी। अध्ययन के दौरान उन्हें पता चला कि शाही सेना के रिटायर्ड कैप्टन चार्ल्स बार्बियर ने सेना के लिए एक ऐसी कूटलिपि का विकास किया था, जिसकी सहायता से वे टटोलकर अंधेरे में भी संदेशों को पढ़ सके।
कैप्टन का उद्देश्य युद्ध के दौरान सैनिकों को आने वाली परेशानियों को कम करना था। यहीं से उनके दिमाग में ब्रेल लिपि के आविष्कार का विचार आया। उसने पादरी वेलन्टीन से कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से मुलाकात करने की इच्छा प्रकट की। पादरी ने लुई ब्रेल की कैप्टन से मुलाकात करवाई। कैप्टन द्वारा बताई गई कूटलिपि में उसने कुछ संशोधन प्रस्तावित किए। लुई द्वारा सुझाए संशोधनों को कैप्टन ने स्वीकार किया।
निधन के 16 साल बाद ब्रेल लिपि को मिली मान्यता
कैप्टन चार्ल्स बार्बियर ने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़ी जाने वाली नाइट राइटिंग और सोनोग्राफी के बारे में लुई ब्रेल को बताया था। यह लिपि कागज पर उभरी हुई होती थी और 12 बिंदुओं पर आधारित थी। लुई ने कैप्टन की लिपि को ही आधार बनाया और उसमें संशोधन किया। इसे केवल 6 बिंदुओं में तब्दील कर ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। इसमें 64 अक्षर और चिन्ह बनाए। लुई ने लिपि को कारगार बनाने के लिए विराम चिन्ह और संगीत के नोटेशन लिखने के लिए भी जरुरी चिन्हों का लिपि में समावेश किया।
लुई गणित, भूगोल और इतिहास में महारथ हासिल कर काफी प्रसिद्ध हो गए। उन्होंने वर्ष 1825 में खुद ही ऐसी लिपि का आविष्कार किया, जिसके बाद नेत्रहीन लोगों की शिक्षा में क्रांति आई। लेकिन उनकी लिपि को उनके निधन के 16 वर्ष बाद वर्ष 1868 में रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ से मान्यता मिली थी। ब्रेल को ने केवल फ्रांस में ख्याति मिली, बल्कि पूरी दुनिया में 4 जनवरी को उनकी स्मृति में विश्व ब्रेल दिवस मनाया जाता है। भारत ने भी लुई ब्रेल को सम्मान देने के लिए वर्ष 2009 में डाक टिकिट जारी किया था। इतना ही नहीं लुई की मृत्यु के 100 वर्ष पूरे होने पर फ्रांस सरकार ने दफनाए गए उनके शरीर को बाहर निकाला और राष्ट्रीय ध्वज में लपेट कर पूरे राजकीय सम्मान से दोबारा दफनाया।
ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल का निधन
महान शिक्षाविद् व वैज्ञानिक लुई ब्रेल को वर्ष 1851 में टीबी की बीमारी हो गई, जिससे उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा। इससे 43 वर्ष की उम्र में लुई का 6 जनवरी, 1852 को निधन हो गया।
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