वर्तमान में सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक एड्स, दुनिया के सामने एक महामारी की तरह है। कुछ सालों पहले तक जिसे लाइलाज बीमारी माना जाता था वहीं अब कुछ लोग उचित इलाज के बाद एड्स से निजात पा रहे हैं। हाल में दुनिया में दूसरी बार लंदन के रहने वाले एक शख्स को एड्स (AIDS) से सुरक्षित बचा लिया गया जिसे 2003 में HIV पॉजीटिव पाया गया था।
वहीं इससे पहले अमेरिका में भी एक मामले में टिमॉथी ब्राउन नाम के शख्स में एड्स वायरस को पूरी तरह खत्म कर दिया गया था।
डॉक्टरों की टीम का कहना है कि इस शख्स को ठीक करने के लिए इसका बोन मेरो (बोन मेरो ट्रांसप्लांट यानी अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण जिससे कैंसर का इलाज करना बहुत ही जटिल काम होता है। बोन मेरो ट्रांसप्लांट के दौरान पीड़ित व्यक्ति की प्रभावित बोन मेरो को हेल्दी बोन मेरो से बदल दिया जाता है। इस ट्रांसप्लांट के बाद हेल्दी और नई कोशिकाएं शरीर में मौजूद संक्रमण से लड़ने में मदद करती है और बीमार व्यक्ति अपने को पहले से अधिक स्वस्थ महसूस करने लगता है।) ट्रांसप्लांट किया गया।
इस ट्रांसप्लांट के दौरान जिस डोनर से यह बोन मेरो लिया गया उसका जेनेटिक म्युटेशन ‘CCR5 delta 32’ पाया गया और यह जेनेटिक म्युटेशन एचआईवी के वायरस से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में योगदान करता है।
(जेनेटिक म्युटेशन – म्युटेशन का आसान भाषा में मतलब होता है बदलाव, जैसा कि आप जानते हैं हर किसी के शरीर में अपनी-अपनी डीएनए की एक फिक्स डिजाइन होती है, म्युटेशन में इस डीएनए सीक्वेंस को बदल दिया जाता है।)
वहीं ट्रांसप्लांट करने के बाद 18 महीने तक इस शख्स को एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं के डोज दिए गए और 3 साल तक मेडिकल देखरेख में रखा गया। इसके बाद डॉक्टरों का कहना है कि अब इस आदमी के अंदर एचआईवी का कोई वायरस नहीं पाया गया।
हालांकि आगे क्या स्थिति रहती है इस बारे में डॉक्टर ने अभी निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा। इसके अलावा टीम का यह भी कहना है कि इस आदमी में एड्स के वायरस खत्म होने का यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि एड्स का इलाज खोज लिया गया है।
आदमी जिसे “लंदन पेशेंट” ( ये नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इलाज करने वाली मेडिकल टीम ने उसका नाम, उम्र, राष्ट्रीयता या किसी भी तरह की जानकारी का खुलासा नहीं किया है।) कहा जा रहा है, जिसका मामला एचआईवी के पहले ज्ञात पेशेंट के जैसा ही है। पहला पेशेंट टिमोथी ब्राउन जिसे बर्लिन पेशेंट कहा जाता था, उसको भी ऐसे ही ट्रीटमेंट से गुजारा गया था। ब्राउन, जो इलाज के समय बर्लिन में रहते थे उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए हैं और एचआईवी विशेषज्ञों के अनुसार, अभी भी वह एचआईवी-मुक्त है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दुनिया में फिलहाल करीब 37 मिलियन लोग एचआईवी से संक्रमित हैं और अब तक इस महामारी की वजह से दुनिया में करीब 35 मिलियन लोगों ने जान गंवाई है।
कैसे संभव हुआ इलाज ?
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में इस रोगी का इलाज करने वाले डॉक्टर बताते हैं कि इस आदमी में 2003 में एचआईवी के वायरस पाए गए थे और 2012 में एक प्रकार के ब्लड कैंसर का भी पता चला था जिसे हॉजकिन लिम्फोमा कहा जाता है।
2016 में, जब कैंसर के इलाज के लिए डॉक्टरों ने उनके लिए ट्रांसप्लांट मैच को खोजने का का फैसला किया। ट्रांसप्लांट के लिए जो डोनर था उसे मेडिकल भाषा में ‘CCR5 डेल्टा 32’ कहा जाता है जो एचआईवी का प्रतिरोध भी करता है।
अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि यह समझ से बाहर है कि ट्रीटमेंट के इस तरीके से सभी रोगियों को ठीक किया जा सकता है या नहीं ? यह प्रक्रिया महंगी, जटिल और जोखिम भरी है। दूसरों में ऐसा करने के लिए, उनके सटीक डोनर लोगों का मिलना बहुत जरूरी है। लेकिन डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की कई टीमों का मानना है कि आने वाले समय में एड्स के लिए इलाज खोज लिया जाएगा।