लोकसभा चुनाव से पहले जान लीजिए.. कैसे मिलता है राजनीतिक दलों को नेशनल पार्टी का दर्ज़ा?

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देश में अगली लोकसभा के लिए चुनाव में अब एक महीने से भी कम समय बचा है। लोकतंत्र के इस सबसे बड़े उत्सव की शुरुआत 11 अप्रैल, 2019 से होगी। 19 मई को अंतिम चरण के मतदान होंगे। इस बार आम चुनाव कुल सात चरणों में हो रहे हैं। 23 मई को देशभर में एक साथ मतगणना के बाद लोकसभा चुनाव का परिणाम घोषित कर दिया जाएगा। हर बार की तरह इन चुनावों में भी कई राजनीतिक पार्टियां हिस्सा लेंगी। इनमें कुछ पार्टियां राष्ट्रीय स्तर और कुछ क्षेत्रीय स्तर की होती है। वैसे तो देश में सैकड़ों राजनीतिक दल रजिस्टर्ड हैं, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दो प्रमुख बड़ी पार्टियां है। 2014 के चुनाव में मात्र छह पार्टियां ही राष्ट्रीय पार्टी के रूप में चुनाव में शामिल थी। आइए हम आपको बताते हैं कि कैसे ये राजनीतिक दल राष्ट्रीय या क्षेत्रीय या राज्य स्तर की पार्टी का दर्ज़ा पाते हैं..

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ऐसे मिलता है किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज़ा

किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज़ा हासिल करने के लिए यह जरुरी है कि वह लोकसभा चुनाव या राज्य के विधानसभा चुनाव में चार या उससे ज्यादा राज्यों में कुल मान्य वोटिंग में से कम से कम 6 फीसदी वोट हासिल किए हो। किसी भी एक या सभी राज्यों में से लोकसभा की कम से कम 4 सीटों पर जीत दर्ज की हो। या फिर लोकसभा में कम से कम 2 फीसदी सीटें जीती हों और ये सदस्य कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से चुनकर आए हों। पार्टी को कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो। इन शर्तों को पूरा करने वाली राजनीतिक पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है।

राष्ट्रीय पार्टी बनने पर मिलने वाले फायदे

किसी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का दर्ज़ा मिलने पर जब भी चुनाव आयोग राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाई जाती है तो वह उसमें शामिल होने का अधिकार रखती है। पार्टी को अपने सभी उम्मीदवारों के लिए एक स्थायी चुनाव चिह्न मिल जाता है। राष्ट्रीय पार्टी चुनाव के दौरान ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के माध्यम से मतदाताओं को संबोधित करती है। राष्ट्रीय पार्टियों को लोकसभा चुनाव के दौरान अपने स्टार प्रचारक को नामित करने का अधिकार होता है। एक राष्ट्रीय पार्टी के अधिकतम 40 स्टार प्रचारक हो सकते हैं जबकि, अन्य पार्टियों के लिए अधिकतम 20 स्टार प्रचारकों की छूट है। गौर करने वाली बात यह है कि स्टारक प्रचारकों के खर्च को उम्मीदवार के चुनाव खर्च में शामिल नहीं किया जाता है।

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क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय पार्टी बनने के लिए शर्तें

किसी पार्टी को क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलता है जब उसने पिछले विधानसभा चुनाव में कुल वोटिंग प्रतिशत के कम से कम 6 फीसदी मत हासिल किए हों और इस पार्टी के कम से कम 2 विधायक जीतकर आए हों। या फिर पिछले विधानसभा चुनाव में इस पार्टी ने कुल सीटों में से कम से कम 3 फीसदी सीटें अपने नाम की हो या 25 विधानसभा सदस्यों पर कम से कम 1 सदस्य विधानसभा में भेजा हों। या राज्य में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में इस पार्टी ने कुल डाले गए वोटों में से कम से कम 8 फीसदी वोट प्राप्त किए हों। निम्न शर्तों को पूरा करने वाली पार्टी क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय पार्टी का दर्ज़ा हासिल करती है।

क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलने का फायदा

जब कोई दल क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय पार्टी का दर्ज़ा हासिल कर लेता है तो उसे जब भी चुनाव आयोग, राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा सर्वदलीय मीटिंग बुलाई जाती है तो वह क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय पार्टी भी उसमें शामिल होने का अधिकार रखती है। पार्टी को एक स्थायी चुनाव चिह्न मिल जाता है जिसका इस्तेमाल वह अपने सभी उम्मीदवारों के लिए करती है। इसके साथ ही वह चुनाव के दौरान ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के माध्यम से वोटर्स को संबोधित कर सकती है।

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फिलहाल देश में केवल तीन पार्टियां ही राष्ट्रीय दर्ज़ा प्राप्त पार्टी

पिछले आम चुनाव में छह पार्टियों ने राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर चुनाव लड़ा था। इन 6 राष्ट्रीय पार्टियों में बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, सीपीएम, एनसीपी और सीपीआई शामिल थीं। इनमें से तीन पार्टियां ही राष्ट्रीय पार्टी का स्टेटस बचाने में कामयाब रहीं। जबकि तीन पार्टियों यानी बीएसपी, सीपीएम और एनसीपी पर दर्जा छिनने का खतरा मंडराया हुआ है। चुनाव आयोग ने इन दलों से पूछा है कि उनका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा क्यों नहीं छिना जाए? गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में इन तीन पार्टियों का प्रदर्शन राष्ट्रीय पार्टी की शर्तों को पूरा करने वाला नहीं रहा है।

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इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बाद बीएसपी यानी बहुजन समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उसने कुल वोटों के 4.1 फीसदी वोट प्राप्त किए थे। लेकिन दुर्भाग्य से वह एक भी सीट जीतने में सफ़ल नहीं हो सकी थीं। वहीं, दूसरी ओर एनसीपी को मात्र 1.6 फीसदी वोट शेयर मिला और वह लोकसभा की चार सीटें जीतने में कामयाब रही। एनसीपी ने ये सभी सीटें महाराष्ट्र राज्य से जीती थीं। जबकि सीपीआई कुल मतों के 0.8 प्रतिशत हासिल करने के साथ एक सीट पर जीत दर्ज करते हुए ख़ाता खोलने में सफ़ल रही।

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