उस दौर में जब ब्रिटिश साम्राज्य की तूती बोलती थी, लोग अपने ही देश में जुल्म व अत्याचारों के बुरे दौर से गुजर रहे थे। तब अंग्रेजों को यह लगने लगा था कि वो ही सर्वशक्तिमान हैं। उस समय ब्रिटिश राज यह मानने लगा था कि उनके शासन को सदियों तक कोई हिला नहीं सकता। वर्ष 1928 में 30 अक्टूबर के दिन एक शख्स को ब्रिटिश पुलिस ने लाठियों से बड़ी ही निर्ममता से पीटा, आखिरकार कुछ दिन बाद ही उसकी मौत हो गईं। इसके बाद देश में क्रांति की ज्वाला आ गईं, जिससे ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिलने लगीं।
जी हां, दिन था 17 नवंबर 1928 का और पंजाब में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की मौत के साथ ही भारत की आजादी की कहानी लिखनी शुरू हो गई थी। आज उस प्रसिद्ध क्रांतिवीर लाला लाजपत राय की 95वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर जानिए उनके प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
उर्दू-पर्शियन शिक्षक के घर में जन्मे थे लाला
क्रांतिकारी लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के धुडीके में मुंशी राधाकृष्ण अग्रवाल और गुलाब देवी के घर में हुआ था। उनकी शुरुआती शिक्षा गवर्मेंट हायर सेकंडरी स्कूल, धुडीके में हुईं। लाजपत राय को पिता से राष्ट्रवादी विचार मिले, वहीं माता से उन्होंने धार्मिक आस्था के गुण सीखे। आगे चलकर लाजपत राय ने अपने विचारों को सहेज कर रखा। साथ ही उनके विचारों की झलक ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलनों और पत्रकारिता में भी दिखीं। स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद वर्ष 1880 में लाजपत राय ने कानून की पढ़ाई करने के लिए गवर्मेंट कॉलेज लाहौर में एडमिशन लिया।
दयानंद सरस्वती से मुलाकात के बाद आए बदलाव
कॉलेज के दिनों में लाला लाजपत राय की मुलाकात आर्य समाज के महान विचारक स्वामी दयानंद सरस्वती से हुईं। उनसे मिलने के बाद लाजपत राय की ज़िंदगी और सोच में कई बदलाव आए। आगे चलकर लाजपत राय लाहौर में आर्य समाज के सदस्य बने और फिर वहीं से ‘आर्य गैजेट’ निकाला।
लाजपत राय ने गरम दल का किया था गठन
अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1892 में लाला लाजपत राय ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरम दल के विरोध में ‘गरम दल’ बनाया। बंगाल के विभाजन के खिलाफ चल रहे आंदोलन का भी मुख्य चेहरा लाजपत राय ही थे। उस समय के प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुरेंद्रनाथ बनर्जी, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष के साथ लाला लाजपत राय ने स्वदेशी अभियान चलाया और उसे पूरे देश में मजबूत करने के लिए सफल प्रयास किए।
विदेश में दिखाया अपने विचारों का दमखम
लाल लाजपत राय ने अपने विचारों से भारत के लोगों को प्रभावित करने के साथ ही विदेशों में भी अपनी बात उसी अंदाज और जोश के साथ रखीं। वर्ष 1914 में वे ब्रिटेन चले गए, फिर वहां से आगे वो संयुक्त राज्य अमेरिका भी पहुंचे। विदेश में रहते हुए लाजपत राय ने ‘इंडियन होम लीग ऑफ़ अमेरिका’ बनाईं। उस दौरान ही प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया था, जिसके कारण लाजपत राय वर्ष 1920 में वापस देश लौट आए।
वर्ष 1929 में साइमन कमीशन के भारत आने को लेकर लाला लाजपत राय ने खुलकर उसका विरोध किया और कई जुलूस निकाले। इसी दौरान एक जुलूस में ब्रिटिश सरकार ने लाजपत राय को बेरहमी से पीटा, जिसके कारण उनके सिर में गंभीर चोटें आई और इसी वजह से 17 नवंबर, 1928 को उनकी मौत हो गईं। इस तरह भारत माता का एक और सपूत हमेशा के लिए अलविदा कह गया। उनका बलिदान देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है।
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