अंग्रेजी हुकुमत की तिजोरी भर देता था कुंभ मेला, खर्च करने के बाद इतना होता था प्रॉफिट

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एक ग्लोबल इवेंट का रूप लेता जा रहा कुंभ मेले का इतिहास बताता है कि अंग्रेजी हुकुमत ने इसमें भी अपना फायदा ढूंढ लिया था। जहां आज इस मेले में करोड़ों रूपए खर्च होते हैं वहीं इतिहास की बात करें तो कम दाम में ज्यादा फायदे का सौदा हो जाया करता था। दरअसल तबके इलाहाबाद और आज के प्रयागराज के अभिलेखागार में अंग्रेजों के जमाने के कुछ ऐसे दस्तावेज मौजूद है जो बताते हैं कि किस तरह अंग्रेज कुंभ मेले में इंवेस्ट कर इससे अपना सरकारी खजाना भर लेते थे। रिपोर्टस के अनुसार सन 1882 में कुंभ के आयोजन में मात्र 20 हजार रूपए खर्च किए गए थे और सरकार को सीधे 50 हजार रूपए तक की आमदनी हुई थी जो कि दुगुनी से भी ज्यादा कमाई है। ये सारा पैसा सरकारी खजाने में जमा कराया गया था।

आमदनी से ही विकास कार्य करवाए

अंग्रेजी हुकुमत की सबसे अच्छी बात ये थी कि उसे कुंभ मेलेे से जो भी रूपया पैसा कमाया वो सारा पैसा वापस इलाहाबाद के विकास में ही ​लगा दिया गया। अंग्रेज चाहते तो ये सारा पैसा ब्रिटेन भी भेज सकते थे मगर उन्होनें ऐसा किया नहीं।

इलाहाबाद में हुए कुंभ मेले पर उस समय के खर्चों का पूरा ब्यौरा आज भी यहां सुरक्षित मौजूद है क्योंकि उस समय भी पूरी प्लानिंग के साथ मेले के आयोजन से लेकर उसके समापन तक की रिपोर्ट तैयार की जाती थी।

इस तरह लगाया गया था विकास कार्यों में पैसा

1882 के इलाहाबाद कुंभ मेले में विल्सन नाम के मजिस्ट्रेट ने अंग्रेज सरकार को पूरी रिपोर्ट भेजी थी जिसमें बताया गया था कि मेले के आयोजन में कहां और कितना पैसा लगाया गया। रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि मेले से हुई आमदनी को फिर विकास कार्यों में कहां कहां खर्च किया गया।

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रिपोर्ट बताती है कि शहर में अल्फ्रेड पार्क जिसे अब आजाद पार्क कहा जाता है को विकसित किया गया और इलाहाबाद की मशहूर पब्लिक लाइब्रेरी में 3000 रूपए खर्च किए गए वहीं ​कॉल्विन डिस्पेंसरी जो आज स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय के नाम से जानी जाती है पर 2600 रूपए खर्च किए गए थे।

कुल मिलाकर कहें तो आज जहां इस मेले पर सरकार को सिर्फ खर्च करना पड़ता है वहीं अंग्रेजी शासन में ये मेला फायदे का सौदा साबित होता था जिसका पूरा प्रॉफिट वापस इलाहाबाद के लोगों का जीवन सुधारने में लगा दिया जाता था।

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