हम इंसान हैं। हमें इस दुनिया में बेहद सभ्य माना जाता है। हमने पूरी दुनिया में अपने शहर बना रखे हैं और जानवरों की जगह को सीमित कर दिया है फिर भी हम पिल्लों को मौत के घाट उतार देते हैं।
कोलकाता में एक लाइन में रखे गए 16 पिल्लों को हमें याद रखने की जरूरत है। इनको देखकर या इस खबर को पढ़कर हमें दुबारा सोचना चाहिए कि क्या हम इंसान हैं?
शायद पिल्लों को जहर दिया गया था। शायद उन्हें पीटा गया था शायद उन्हें जहर देकर पीटा गया था और मौत के घाट उतार दिया गया। शायद पिल्लों की संख्या 15 थी। शायद पिल्लों की संख्या 16 थी।
क्या वास्तव में यहां हमें ये जानकारी होनी जरूरी है? क्या यह किसी भी तरह आतंक को कम करता है। क्या आप इस खबर को पढ़कर सोचने पर मजबूर नहीं होते? कोलकाता के अस्पताल के अंदर एक थैले में इन पिल्लों की लाशें पड़ी हैं।
अब दो युवतियों द्वारा कुत्तों को बेरहमी से पीटने का एक वीडियो सामने आया है। वीडियो में कोई भी उन औरतों को रोकते हुए दिखाई नहीं देता है। हालांकि वीडियो में लोग उन्हें रोकने की आवाज लगा रहे हैं इस पर औरतें कहती हैं कि वे हमें काटते हैं।
अटकलें हैं कि वे नर्सिंग छात्र हैं। ये महिलाएं कौन हैं जो पिल्लों को मौत के घाट उतार रहीं थीं? क्या सच में ये औरतें नर्सिंग स्टूडेंट थीं?
हम जानते हैं कि हमारे शहरों में आवारा कुत्तों की समस्या है। लेकिन समाधान उन्हें मौत के मुंह में नहीं समा सकता है। कुछ लोगों का कहना है कि जब कोई मच्छर हमें काटता है तो हम उसे मार देते हैं। कई लोग कुत्तों को खाना खिलाने से परेशान रहते हैं।
यह बर्बरता का पैमाना है जिसने हमें झकझोर दिया है। यदि वे एक बार में दो पिल्लों को मारते तो शायद न्यूज नहीं बनती या किसी को फर्क नहीं पड़ता लेकिन 16 पिल्लों की हत्या से शहर में भी अफरा-तफरी मच जाती है।
फिर भी इस तरह की अविवेकपूर्ण क्रूरता हमारे लिए शायद ही नई हो। मार्च 2018 में छह पिल्लों को गुरुग्राम में मार दिया गया और दफन कर दिया गया। “अज्ञात व्यक्तियों” के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई। पशु प्रेमियों ने कहा कि इलाके के एक गेस्टहाउस के मालिक और कुछ निवासियों ने कहा था “ये पिल्ले हमें काटते हैं इसलिए हम उन्हें खत्म कर देंगे”। मई 2018 में हैदराबाद के कोंगारा के वन क्षेत्र में 100 स्ट्रीट डॉग्स के शव पाए गए। अप्रैल 2018 में, दो कुत्तों को पीटा गया, उनके जबड़े टूट गए। पशु चिकित्सक सलीम चरणिया ने मीडिया को बताया कि यह चौंकाने वाली बात है कि पॉश जगहों पर रहने वाले शिक्षित लोग आवारा जानवरों से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे हैं। हमेशा की तरह अपराधी “अज्ञात व्यक्ति” थे। यहां तक कि अगर वे “ज्ञात” हैं, तो यह ज्यादा मायने नहीं रखता है।
जुलाई 2016 में, तमिलनाडु में एक मेडिकल छात्र ने पांच मंजिला इमारत की छत से एक पिल्ले को फेंक दिया और दूसरे दोस्त ने इसका वीडियो बनाया। कुत्ता जिंदा रहा। घायल, घबराया हुआ, चलने में असमर्थ था फिर भी उसकी पूंछ को काट दिया गया। छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन तुरंत जमानत मिल गई। बेंगलुरु में एक महिला जो लेफ्टिनेंट की पत्नी थी उसने एक बोल्डर से आठ पिल्लों को उड़ाया और सबक सिखाने के लिए उनकी हत्या कर दी। 1,000 रुपये का जुर्माना भरने के बाद वो बिलकुल फ्री हो गई।
भारत में अनुमानित 30 मिलियन आवारा कुत्ते हैं। डब्ल्यूएचओ हर साल रेबीज के 18,000-20,000 मामलों का अनुमान लगाता है। लेकिन इसमें से कोई भी रेबीज के डर के बारे में नहीं है। जो लोग छत से पिल्ले फेंकते हैं, वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह मज़ेदार है, क्योंकि उन्हें लगता है कि अन्य जीव, विशेष रूप से छोटे कमजोर प्राणी मरने योग्य ही हैं। भारत में जीवन सस्ता है। पशु का जीवन और भी सस्ता है। छुट्टी लेकर चिड़ियाघर जाते हैं और हम पिंजरे में बंधे जानवर को देखकर खुश होते हैं। ऐसा लगता है कि एक जानवर केवल हमारे मनोरंजन के लिए मौजूद है।
भारत में एकमात्र जानवर जिसकी हमें परवाह है और हम इंसानियत दिखाते हैं वो है गाय। हमारे पास पशु बिक्री को विनियमित करने के लिए कड़े कानून हैं। हमारे पास गौ रक्षा दल, एक गाय मंत्री तक है। गाय और गायों का कल्याण चुनाव अभियानों और उग्र बयानबाजी का विषय है। गायों की हत्या करने के आरोपी उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करते हैं इसलिए उन्हें जमानत नहीं मिल सकती है।
हममें से अधिकांश रोजाना कुत्ते के साथ रहते हैं। सड़कों और गलियों के कुत्ते स्वदेशी भारतीय नस्ल के हैं। उनका घर गली है। फिर भी इनको निशाना बनाया जाता है। समस्या हो सकती है लेकिन इस तरह हिंसा का सहारा लेना कहां तक सही है।
एक “मानव” द्वारा 16 कुत्तों की बेरहमी से हत्या कर दी जाती है तो आप सोच सकते हैं कि इंसान खुद कहां है और कहां जा रहा है। हमें इंसान होने के अर्थ को दोबारा समझने की जरूरत है।