मजदूर दिवस: जब सामंतवादी ताकतों के खिलाफ दुनियाभर के मजदूरों ने क्रांति का बिगुल बजाया

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आज एक 1 मई है जो कि अपने आप में बेहद खास दिन है। पूरी दुनिया में आज लेबर डे यानी मजदूर दिवस मनाया जाता है। दुनिया भर के मजदूर एक दिन में फिक्स 8 घंटे काम करेंगे यह फैसला आज ही दिया गया था। भारत के अलावा करीब 80 देशों में लेबर डे मनाया जाता है। दुनिया के हर एक मजदूर के लिए आज का दिन एक उत्सव है। इसके पीछे डेढ़ सदी से भी पुराना इतिहास जुड़ा है। आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ खास बातें…

1 मई की जड़ें 19वीं सदी के दूसरे हिस्से में मिलती है जब दुनियाभर में कई क्रांतियों की शुरूआत हुई थी और संगठनों के खिलाफ औद्योगिक श्रमिकों ने अपनी आवाज बुलंद की थी। जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका सहित देशों के मजदूरों ने हर दिन के काम का समय 12-15 घंटे से घटाकर 8 घंटे करने की मांग मुखर की थी।

कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो ने मजदूरों पर काफी प्रभाव डाला

1848 में कार्ल मार्क्स और एंगेल्स द्वारा लिखे गए कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो ने विभिन्न देशों के मजदूरों पर काफी प्रभाव डाला जो अपने आस-पास औद्योगिकरण की गर्मी महसूस कर रहे थे। 1840 के दशक में बड़े पैमाने पर फसलों के खराब होने की मार से व्यापक तौर पर सामंती विरोधी उथल-पुथल शुरू हुई, जिसे ‘1848 की क्रांति’ कहा गया। परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ, जिसे प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में जाना जाता है, उसका जन्म 1864 में लंदन में हुआ। इस संगठन का निर्माण सभी समाजवादी और कम्युनिस्ट संगठनों की छत के नीचे हुआ।

1876 ​​में कुछ वैचारिक मतभेद होने के बाद संगठन का पहला अंतर्राष्ट्रीय विघटन हुआ, जिसके बाद दूसरा अंतर्राष्ट्रीय संगठन 1889 में समाजवादी और कई श्रमिक दलों की एकजुटता से उभरा। यह वही संगठन था जिसने 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस या मजदूर दिवस और 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाना घोषित किया।

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वहीं ऐतिहासिक रूप से, 1 मई को मजदूर दिवस के साथ-साथ हेमार्केट नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है। जब 4 मई, 1886 को शिकागो के हेमार्केट स्क्वायर में मजदूर इकट्ठे हुए और 8 घंटे रोज की मजदूरी के लिए रैली निकाली, तो कुछ सामंती ताकतों ने उन पर बम फेंके। भगदड़ मची और पुलिस ने भी फायरिंग करना शुरू कर दी जिसके बाद 11 लोगों की जान चली गई।

मजदूरों पर रिसर्च करने वाले विलियम जे. एडेलमैन कहते हैं कि “शिकागो हेमार्केट नरसंहार से अधिक किसी भी घटना ने इलिनोइस, संयुक्त राज्य अमेरिका और यहां तक ​​कि दुनियाभर में मजदूरों के इतिहास को इतना प्रभावित नहीं किया है। इसकी शुरुआत 4 मई, 1886 को एक रैली से हुई थी, लेकिन इसके परिणाम आज भी महसूस किए जा सकते हैं।”

भारत में मई दिवस यानि 1 मई 1923 को मद्रास में पहली बार मजदूर दिवस के रूप में मनाया गया। हिंदुस्तान के लेबर किसान पार्टी के नेता, सिंगारवेलर के नेतृत्व में दो बैठकें हुईं, एक ट्रिपलीकेन बीच में और एक मद्रास हाईकोर्ट के पास। इन मीटिंग में कहा गया कि ब्रिटिश सरकार से 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में घोषित करने और एक सरकारी अवकाश का प्रस्ताव पारित करवाया जाएगा। यह भारत में पहला मौका था जब लाल झंडे का इस्तेमाल किया गया था।

इसके अलावा आज के दिन के कई और पहलू भी हैं। कई देशों में इसकी सालों पुरानी जड़ें हैं। रोम में आज का दिन फेस्टिवल ऑफ फ्लोरा के रूप में मनाया जाता है। फ्लोरा फूलों की देवी थी।

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