2016 में हुआ उरी आतंकवादी हमला फिर कल 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर बहस तेज हो गई है। चरमपंथियों के इस बार हमले में 42 सैनिक शहीद हुए हैं जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान के सामने कड़ा रूख अपनाते हुए तुरंत प्रभाव से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया।
हर बार आतंकवादी हमलों के बाद कैबिनेट मंत्रियों की बैठकों से करारा जवाब देने की बातें कही जाती है मानो जैसे यह सिलसिला अब आम सा हो गया है। इन सब के बावजूद भारत अब भी किसी मास्टर स्ट्रोक से बहुत दूर दिखाई पड़ता है।
पुलवामा हमला होने के बाद एक बार फिर सिंधु जल संधि के बारे में चर्चाएं तेज होने लग गई है, जिसे रक्षा विशेषज्ञ काफी समय से भारत का पाकिस्तान के खिलाफ सबसे असरदार विकल्प मानते रहे हैं। ऐसे में आइए समझने की कोशिश करते हैं कि क्या है सिंधु जल संधि और क्या मजबूरी है कि भारत इस संधि को तोड़ने में लचीला रवैया दिखाता आ रहा है ?
क्या है सिंधु जल संधि ?
भारत और पाकिस्तान के बीच दो युद्ध, कारगिल वॉर और कितनी ही दिक्कतों के बावजूद आज भी यह संधि बनी हुई है। 56 साल पहले भारत और पाकिस्तान की ओर से हस्ताक्षरित यह संधि दो देशों के बीच चली पानी की लड़ाई को सुलझाने का एक सफल अंतरराष्ट्रीय उदाहरण माना जाता है।
सिंधु नदी 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है, जिसमें पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) कवर होता है। संधि में भारत इन सभी नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही अपने पास रखता है औऱ 80% पानी पाकिस्तान को देता है।
संधि होने की बैकग्राउंड स्टोरी
जब 1947 में भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तब से पानी की यह लड़ाई शुरू हो गई। इसका ज्यादा असर पंजाब और सिंध प्रांतों में देखा गया। कुछ समय बाद 1947 में भारत और पाकिस्तान दोनों के इंजीनियरों ने ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ पर हस्ताक्षर किए जिसमें पाकिस्तान की ओर से बहने वाली दो प्रमुख नहरों का पानी पाकिस्तान को दिया जाने की बात कही गई। 31 मार्च 1948 तक बिना किसी रूकावट के पानी सप्पलाई होती रही।
1 अप्रैल 1948 को समझौता खत्म होने के बाद भारत ने इन दोनों नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी 17 लाख एकड़ ज़मीन पर हालात बदतर हो गए। कुछ मुलाकातों के बाद एक बार फिर भारत पानी देने को राजी हुआ। अभी तक बात बिना संधि के ऐसे ही कम समय वाले समझौतों में चल रही थी।
फिर एक दिन नेहरू के आमंत्रण पर टैनिस वैली अथॉरिटी के प्रमुख रहे लिलियंथल भारत आए और फिर पाकिस्तान भी गए। वापस देश लौटकर उन्होंने सिंधु नदी के बंटवारे का एक फॉर्मेट तैयार किया। लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने उस फॉर्मेट को देखकर भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों को दिखाया। इसके बाद दोनों देशों के बीच बैठकों का एक दौर शुरू हुआ।
आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में दोनों देशों ने सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।
क्या कहा गया है सिंधु जल समझौते में ?
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सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो तरह की नदियों में बांटा गया।
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पूर्वी नदियां- सतलज, ब्यास और रावी
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पश्चिमी नदियां- झेलम, चिनाब और सिंधु
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पूर्वी नदियों का पानी भारत का होगा और पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान इस्तेमाल करेगा। लेकिन पश्चिमी हिस्से वाली नदियों का भी भारत सीमित तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। वहीं भारत को बिजली बनाने, खेती के लिए पानी जैसी कुछ विशेष सुविधाएं भी दी गई है।
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एक सिंधु आयोग बनाया गया जिसमें दोनो देशों के कमिश्नरों समय-समय पर मिलते हैं।
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किसी भी तरह का विवाद होता है तो कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन ( मतलब कि स्थाई मध्यस्थता न्यायालय जो एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान है। यह देशों, सरकारी संस्थाओं और निजी कम्पनियों के बीच होने वाले मतभेदों में मध्यस्थता करके उन्हें सुलझाने का काम करता है।)
संधि पर होती आई है राजनीति
क्या भारत पाकिस्तान का पानी रोक देगा, क्या पाकिस्तान के हिस्से का पानी भारत अपनी नदियों में छोड़ देगा? सिंधु जल संधि को लेकर भारत में इस तरह के सवाल समय-समय पर उठते रहते हैं। जम्मू कश्मीर सरकार का मानना है कि संधि से राज्य को हर साल करोड़ो का नुकसान होता है। हालांकि विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित हुआ लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला.
वहीं जानकारों का मानना है कि भारत ने 1960 में पानी के बदले शांति पाने की उम्मीद के साथ साइन किए थे लेकिन ऐसा आज के हालातों को देखकर कहीं दिखाई नहीं देता है। वहीं इस संधि को तोड़ने के सवाल पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। किसी का कहना है य़ह दौतरफ़ा संधि है इसे एक साइड से कहकर तोड़ा नहीं जा सकता है। दोनो देशों को मिलकर ही इस पर कुछ फैसला लेना होगा।
अब संधि टूटी तो पाकिस्तान पर क्या असर होगा ?
पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती है जिसके कारण वहां की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन इस पानी पर निर्भर है। अगर भारत यह पानी रोक दे तो आप सोचिए पाकिस्तान में कितना बड़ा संकट पैदा हो सकता है। वहीं पाकिस्तान ने इस नदी के बेसिन पर कई बांध बना रखे हैं जिनसे बिजली और खेती होती है।
भारत पर भी होगा असर ?
भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद साफ छवि है फिर अगर भारत यह संधि तोड़ता है तो पाकिस्तान भारत को हर मंच पर घेर सकता है। वहीं इससे पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल के साथ संबंधों पर भी असर पड़ सकता है।
भारत अब इसके लिए क्या कर सकता है?
वर्तमान में, भारत आक्रामक तरीके से इसी में लगा है कि कैसे वो पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी रोके। 2016 में उरी हमले के बाद इन जल परियोजनाओं को तेजी से ट्रैक करने का निर्णय लिया गया था। इस बार, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार ने भारत को पाकिस्तान में जाने वाले पानी को रोकने पर विशेष ध्यान दिया है। 2019 में, भारत अपने हिस्से का 93-94% हिस्सा उपयोग करता है और भारत का 6-7% हिस्सा पाकिस्तान में बहता है। भारत भारत पूर्वी नदियों से अपने पूरे हिस्से का उपयोग करे इसके लिए वह तीन परियोजनाएं चला सकता है।
रावी नदी पर शाहपुरकंडी बांध परियोजना
पंजाब में सतलज-ब्यास की दूसरी कड़ी
जम्मू-कश्मीर में उज्ह दरान परियोजना। यह पानी उत्तरी पहाड़ी राज्यों के साथ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान और दिल्ली को दिया जाएगा।
रेणुका बांध
2019 में, यह घोषणा की गई कि भारत में एक और अंतर-राज्यीय बांध भी चल रहा है जिसका नाम है अपर यमुना बेसिन में रेणुकाजी बहुउद्देश्यीय बांध परियोजना। इस ‘ऐतिहासिक परियोजना’ के निर्माण के बाद, गीर्ट नदी का प्रवाह लगभग 110% बढ़ जाएगा। बांध से पानी का उपयोग यूपी, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान द्वारा किया जाएगा।