कौन हैं संत रविदास जिनकी जयंती पर यूपी सरकार ने सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है?

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योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को माघ पूर्णिमा और संत रविदास जयन्ती के अवसर पर राज्य में सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का निर्णय लिया है। राज्य के प्रमुख सचिव जितेन्द्र कुमार द्वारा जारी किए गए एक आदेश में 19 फरवरी को माघ पूर्णिमा और संत रविदास जयन्ती के अवसर पर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश ​घोषित किया गया है। मंगलवार को संत रविदास जयन्ती के साथ ही माघ पूर्णिमा भी है। हिंदू धर्म में माघ पूर्णिमा का बड़ा महत्व है। यूपी के प्रयागराज में चल रहे कुंभ में इस दिन पांचवा पवित्र स्नान भी किया जाएगा। संत रविदास जयन्ती पर पूर्व में प्रतिबंधित अवकाश था, जिसे यूपी सरकार ने अब सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया है। ऐसे में आपके लिए यह जानना जरूरी है कि संत रविदास कौन है?

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15वीं शताब्दी के महान संत, कवि, समाज-सुधारक रविदास का जीवन परिचय

संत रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी (बनारस) के पास सीर गोवर्धनपुरा गांव में माघ मास की पूर्णिमा के दिन संवत् 1398 को हुआ था। संत रविदास को रैदास, रोहिदास, रूहिदास जैसे कई नामों से भी जाना जाता है। इनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कलसा देवी था। संत रविदास की पत्नी का नाम लोना देवी था। इनसे रविदास को दो संतानें प्राप्त हुई। इनके पुत्र का नाम विजयदास और बेटी का नाम रविदासिनी था। संत रविदास भारत में 15वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि, समाज-सुधारक और दर्शनशास्त्री के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन को नेतृत्व किया था। रविदास ने सामाजिक सुधार के लिए अपने लेखनों, कविताओं के जरिए आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश ​दिए। इन्होंने हमेशा लोगों को सिखाया कि बिना किसी भेद-भेदभाव के प्रेम करना चाहिए।

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जूता व्यवसायी पिता ने निकाल दिया था घर से

संत रविदास के पिता संतोख दास का जूते बनाने का व्यवसाय था। रविदास भी अपने पिता के कार्य में हाथ बंटाते थे। साधु-संतों और ईश्वरीय भक्ति की ओर रविदास का शुरू से ही बहुत झुकाव था। इसी के कारण वह जब भी किसी साधु-संत या फकीर को नंगे पैर देखते तो अक्सर उन्हें नए जूते-चप्पल बिना पैसे लिए ही दे देते थे। रविदास के संपर्क में आने वाले लोग उनके व्यवहार के कारण उन्हें बहुत पसंद करते थे। साथ ही वे ज्ञानी जनों की संगत में बहुत-सा समय बिताते थे। इसका पता जब इनके पिता को चला तो वे बहुत नाराज हुए। इसके बाद पिता ने इनको घर से निकाल दिया। अपने पिता द्वारा घर से निकाले जाने के बाद रविदास ने अपने लिए कुटिया बनाई और जूते-चप्पलों की मरम्मत का काम करने लगे। अपने छोटे से व्यवसाय से जो आमदनी होती, उसी से गुजारा करते और साधु-संतों की संगत में रहते थे।

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‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ कहावत आज भी प्रसिद्ध

वैसे तो संत रविदास के जीवन के कई महत्वपूर्ण किस्से हैं लेकिन इनमें से कुछ बहुत सुनाए जाते हैं। एक बार रविदास के कुछ विद्यार्थी और अनुयायियों ने पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिए पूछा तो उन्होंने ये कह कर मना किया कि उन्होंने पहले से ही अपने एक ग्राहक को जूता देने का वादा कर दिया है तो अब वही उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। संत रविदास के एक विद्यार्थी ने उनसे दोबारा निवेदन किया तब उन्होंने कहा मेरा मानना है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ है। मतलब शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरुरत है ना कि किसी पवित्र नदी में नहाने से, अगर हमारी आत्मा और ह्दय शुद्ध है तो हम पूरी तरह से पवित्र है चाहे हम घर में ही क्यों न नहाए। संत द्वारा तब कही गई यह कहावत आज भी लोगों के बीच में बहुत प्रसिद्ध है।

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रविदास का मध्ययुगीन साधकों में विशिष्ट स्थान माना जाता है। ऐसा कहा जाता रहा है कि रविदास भी कबीर की तरह ही उच्च कोटि के प्रमुख संत कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। खुद कबीरदास ने ‘संतन में रविदास’ कहकर इनको बड़ी मान्यता दी थी। यह भी कहा जाता है कि दिल्ली के शासक सिकन्दर लोदी ने उनकी ख्याति से प्रभावित होकर उन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था, लेकिन इन्होंने बड़ी विनम्रता से इसे अस्वीकार कर दिया था। इनका जीवनकाल 120 से 125 साल लम्बा रहा बताते हैं।

संत रविदास के निधन के बाद हर साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि पर इनकी जयन्ती मनाई जाती है। इस दिन अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र में इनकी कई समुदायों में विशेष मान्यता है।

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