जानिए क्या होता है LEO सैटेलाइट और इसका अंतरिक्ष में क्या काम होता है?

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देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार दोपहर को राष्ट्र के नाम एक संबोधन दिया। जिसमें पीएम मोदी ने ऐलान किया कि भारत ने अंतरिक्ष में एंटी सैटे​लाइट मिसाइल लॉन्च कर इतिहास रच दिया है। इसके साथ ही भारत ऐसा करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया है। इससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने यह क्षमता हासिल की है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में बताया कि भारत ने पृथ्वी की निचली कक्षा में 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक लियो सैटेलाइट (Low Earth Orbit Satellite) को मिसाइल से मार गिराया है। यह सैटेलाइट भारत में ही डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने विकसित किया गया है। साथ ही भारत द्वारा एंटी सैटेलाइट हथियार का यह पहला प्रयोग है। इसे भारत की अंतरिक्ष में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में आइये जानते हैं क्या होता है लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट और यह अंतरिक्ष में क्या काम आता है..

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एंटी-SAT मिसाइल विकसित करने वाला चौथा देश बना भारत

एंटी सैटेलाइट मिसाइल लॉन्चिंग को अंतरिक्ष में भारत की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। खुद पीएम मोदी ने कहा कि देश के 130 करोड़ लोगों को भारत की इस ख़ास उपलब्धि, डीआरडीओ के वैज्ञानिकों और मिशन में शामिल स्टाफ के सभी लोगों पर गर्व होना चाहिए। दुनिया के तीन बड़े शक्तिशाली देशों के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश है। भारतीय वैज्ञानिकों ने मिशन शक्ति ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा किया है। भारत ने A-SAT मिसाइल से लियो सैटेलाइट को मार गिराया।

इस मिशन शक्ति की कामयाबी के बाद अब भारत भी अमेरिका, रूस और चीन की तरह पृथ्वी से सैंकड़ों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में स्थापित लियो सैटेलाइट को मार गिरा सकता है। मतलब, भारत A-SAT मिसाइल से अंतरिक्ष में मौजूद ऐसे सैटेलाइटों के मार गिराने की क्षमता रखता है जो या देश या देश के सैटेलाइट की जासूसी कर रहे हों। सुरक्षा की दृष्टि से A-SAT मिसाइल की सफलता भारत के लिए बड़ी कामयाबी है। भारत ने जिस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में ध्वस्त किया गया वह भारत का ही आउट ऑफ सर्विस सैटेलाइट था। इस सैटेलाइट का भारत इस्तेमाल नहीं कर रहा था। यह पृथ्वी की सतह से 300 किमी की ऊंचाई पर अंतरिक्ष में था।

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क्या होता है लियो सैटेलाइट

लियो या लो अर्थ ऑर्बिट यानी पृथ्वी की निचली कक्षा पृथ्वी के सबसे नजदीक ऑर्बिट या कक्षा मानी जाती है। लियो पृथ्वी की सतह से 160 किलोमीटर (99 मील) और 2000 किलोमीटर (1200 मील) के बीच की ऊंचाई पर स्थित है। यह पृथ्वी की सतह से सबसे नजदीक होते हैं। मानव द्वारा निर्मित ज्यादातर सैटेलाइट इसी लियो (लॉ अर्थ ऑर्बिट) में मौजूद होते हैं। लो अर्थ ऑर्बिट के बाद मिडियन अर्थ ऑर्बिट, जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट और उसके बाद हाई अर्थ ऑर्बिट आता है। हाई अर्थ ऑर्बिट की दूरी पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर है।

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अंतरिक्ष में क्या काम करता है लियो सैटेलाइट

पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद ज्यादातर लियो सैटेलाइट का इस्तेमाल टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्र में होता है। इसमें कृषि, एंटरटेनमेंट, सुरक्षा, डिजास्टर मैनेजमेंट, टीवी, नेविगेशन, एजुकेशन, मेडिकल, मौसम संबंधित सूचना आदि शामिल हैं। इसके साथ ही ईमेल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और पेजिंग जैसे डाटा कम्युनिकेशन कार्यों में इसका मुख्य रूप से इस्तेमाल होता है। इन सैटेलाइट की गति काफी तेज होती है। लियो में मौजूद कोई सैटेलाइट किसी क्षेत्र की जमीन व पानी पर निगरानी रखने का काम भी करता है। इसके अलावा जासूसी जैसे कार्यों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

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गौरतलब है कि साल 2022 में भारत की ओर से तीन भारतीय सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे, वो भी इस लो अर्थ ऑर्बिट में ही रहेंगे। इस प्रोजेक्ट को लेकर इसरो ने कहा था कि सिर्फ 16 मिनट में तीन भारतीयों को श्रीहरिकोटा से स्पेस में पहुंचा दिया जाएगा और तीनों भारतीय स्पेस के ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ में 6 से 7 दिन बिताएंगे। कुछ समय पहले भी भारत ने कुछ सैटेलाइट इस कक्षा में भेजे गए थे। कई सैटेलाइट के माध्यम से इंटरनेट की स्पीड को बढ़ाने का प्रयास किया है। लियो यानी पृथ्वी की निचली कक्षा से जमीन की दूरी कम होने की वजह से यहां कनेक्शन काफी बेहतर होता है।

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