क्या है डिटेंशन सेंटर, जिन पर इन दिनों चर्चाएं जोरों पर है, जानें

Views : 4221  |  0 minutes read
detention center

नागरिकता संशोधन कानून, 2019 और एनआरसी को लेकर देश में विरोध जारी है इस बीच पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने डिटेंशन सेंटर को लेकर अलग-अलग बातें कही हैं। वहीं, सरकार के आंकड़े बताते हैं कि असम में 6 डिटेंशन सेंटर हैं, जिनमें 900 से ज्यादा लोग रह रहे हैं। यही नहीं जनवरी, 2019 में गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने यहां कम से कम एक डिटेंशन केन्द्र बनाने के लिए नियम जारी किए गए थे।

देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को रखने के लिए डिटेंशन सेंटर बनाने की बात नई नहीं है। वर्ष 2009 के बाद से 4 बार राज्य सरकारों को ऐसे डिटेंशन सेंटर बनाने के निर्देश जारी हो चुके हैं। असम में पहली बार वर्ष 2005 में तरुण गोगोई की कांग्रेस सरकार ने डिटेंशन सेंटर बनाए थे।

क्या है डिटेंशन सेंटर

डिटेंशन सेंटर यानी हिरासत केंद्र जिसमें ऐसे अवैध विदेशी नागरिकों को रखा जाता है जो भारत के विदेश कानून, 1946 के सेक्शन 3(2)(सी) के तहत केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वह किसी भी अवैध नागरिक को भारत से बाहर निकाल सकती है। देश के बाहर निकालने तक की प्रक्रिया तक ऐसे लोगों को इन्हीं डिटेंशन सेंटरों में ही रखा जाता है। जिन लोगों के पास देश में रहने के दस्तावेज मौजूद नहीं होते और ट्रिब्यूनल/अदालतें विदेशी घोषित कर देती हैं। उन्हें इन केन्द्रों में रख जाता है। बाद में उनके देश वापस भेज दिया जाता है।

डिटेंशन केन्द्रों का एनआरसी से क्या संबंध है?

पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में एनआरसी निवासियों की एक सूची है जिससे यह मालूम होता है कि कौन यहां का मूल निवासी है और अवैध शरणार्थी। वर्ष 2013 में, तमाम रिट याचिकाओं के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के रजिस्ट्रार जनरल को ये निर्देश दिया कि इस साल 31 अगस्त तक एनआरसी की अपडेट लिस्ट जारी करें। इसकी प्रक्रिया वर्ष 2015 में शुरू हुई थी और इसी साल 31 अगस्त को इसे जारी किया गया। इस सूची में 19.07 लाख आवेदक जगह बनाने में नाकाम रहे। एनआरसी लिस्ट में शामिल न हो पाने से ये साबित नहीं होता कि वे सभी विदेशी हो गए। फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सामने वह अपना मामला रख सकते हैं, जो कि अर्ध सरकारी संस्था है और विशेषतौर पर नागरिकता से जुड़े मामले देखता है। ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

इन राज्यों में हैं डिटेंशन सेंटर?

डिटेंशन सेंटर की शुरूआत पहली बार असम में वर्ष 2005 में हुई और उस समय वहां कांग्रेस नेतृत्व में तरुण गोगोई की सरकार ने इन सेंटरों को बनवाया था। वर्ष 2009, वर्ष 2012, वर्ष 2014 और वर्ष 2018 में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को डिटेंशन सेंटर खोलने के आदेश दिए जा चुके हैं ताकि अवैध रूप से देश में रहनेवाले विदेशी नागरिकों की गतिविधि पर रोक लग सके और डिपोर्टेशन के आदेश के दौरान उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जा सके।

असम के गोलपाड़ा, तेजपुर, जोरहाट, डिब्रूगढ़, सिलचर और कोकराझार में 6 डिटेंशन सेंटर हैं। इन सेंटर को जिलों की जेल में ही जगह दी गई है। जहां 988 लोगों को रखा जा सकता है।

मतिया में सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर बनाया जा रहा है, जहां एक साथ 3000 लोग रखे जा सकते हैं। कर्नाटक में एक सेंटर है। मुंबई में भी एक डिटेंशन सेंटर खोलने की योजना है। इस साल के शुरू में बंगाल सरकार ने भी न्यू टाउन और बोनगांव में डिटेंशन सेंटर खोलने की रजामंदी दे रखी है। गोवा और दिल्ली में भी एक-एक सेंटर हैं।

ये सुविधाएं होती है डिटेंशन सेंटर में

डिटेंशन सेंटर निर्माण के ​लिए केंद्र सरकार ने जनवरी में सभी राज्यों को मॉडल डिटेंशन सेंटर मैन्युअल भेजकर तमाम सुविधाएं स्थापित करने को कहा था। इनमें स्किल सेंटर, बच्चों के लिए क्रेच और पकड़े गए विदेशियों को उनके मिशन/दूतावासों/कौंसुलेट या परिवारों से संपर्क करने के लिए सेल बनाना शामिल था।

COMMENT