जानिये क्या होता है डीप सी पोर्ट? भारत को इसे इंडोनेशिया में बनाने की क्यों जरूरत पड़ गई!

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार अपने कार्यकाल के तौर पर पांच साल पूरे करने जा रही हैं। मोदी सरकार का यह पहला टर्म है। इन पांच वर्षों के दौरान भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी ने करीब 60 देशों की यात्रा कर विश्व के कई राष्ट्रों से मित्रतापूर्ण और सहयोगात्मक संबंध बनाए हैं। इसका फायदा भारत को कई मामलों में होता भी दिख रहा है। हालांकि, इन दौरों को लेकर प्रधानमंत्री हमेशा से ही विपक्षियों के निशाने पर रहे हैं। लेकिन इस बात को नकारना कतई आसान नहीं है कि भारत को प्रधानमंत्री के बनाए मित्रतापूर्ण रिश्तों का फायदा नहीं हुआ है। भारत की विदेश नीति आज पहले के मुकाबले काफी मज़बूत है। मित्रता और आपसी सहयोग की भावना की बदौलत भारत इंडोनेशिया में अपना डीप सी पोर्ट बना रहा है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारत इंडोनेशिया में यह पोर्ट क्यों बनाने जा रहा है और यह डीप सी पोर्ट क्या होता है?

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क्या होता है डीप सी पोर्ट?

गहरा समुद्री बंदरगाह या समुद्री बंदरगाह को डीप सी पोर्ट कहा जाता है। डीप सी पोर्ट आम बंदरगाहों से थोड़ा अलग पानी के ऊपर और अंदर हो सकता है। यह एक तैरते हुए बंदरगाह के रूप में भी हो सकता है। यहां डीप सी पोर्ट की तरह ही जहाज आते हैं। इन जहाजों का इस्तेमाल ज्यादातर सामान लाने और ले जाने में किया जाता है। व्यापारिक और रणनीतिक नीतियों के चलते डीप सी पोर्ट का निर्माण किया जाता है। इसके पानी के भीतर होने की वजह से इसमें मूमेंट होती रहती है। डीप सी पोर्ट या डीप वाटर पोर्ट को आमतौर पर बड़े और भारी जहाजों के उपयोग के लिए बनाया जाता है। ये पोर्ट व्यापारिक रूप से काफी महत्वपूर्ण होते हैं।

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सबांग में बन रहा भारत का पहला डीप सी पोर्ट

समुद्री पड़ोसी देश इंडोनेशिया के तबांग में भारत अपना पहला डीप सी पोर्ट यानी समुद्री बंदरगाह बना रहा है। यह बंदरगाह भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के करीब हैं। इसके साथ ही भारत अब दक्षिणपूर्वी एशिया में अपनी दस्तक देने में कामयाब हो गया है। भारत ऐसे समय में इंडोनेशिया में डीप सी पोर्ट बनाने में कामयाब रहा है जब चीन इस क्षेत्र में बंदरगाह बनाने के लिए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर लगातार काम कर रहा है। चीन बीआरआई के जरिए आसियान देशों से कनेक्टिविटी बढ़ाकर अपने व्यापार को बढ़ाने के नए रास्ते ढूंढ़ रहा है। ऐसे समय में भारत का यह कदम बड़ी अहमियत रखता है। इंडोनेशिया के समुद्र में बन रहा सबांग पोर्ट भारत और इंडोनेशिया के बीच आपसी सामरिक साझेदारी के तहत बनकर तैयार होगा।

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बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) क्या है?

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव एक बड़ा प्रोजेक्ट होता है जिसके तहत एक या एक से ज्यादा देश अपने व्यापारिक और रणनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए कई देशों के साथ एक समझौता करते हुए बॉर्डर या समुद्री सीमा में आने-जाने और माल की ढुलाई के लिए एक रोड तैयार करते हैं। भारत जहां हिंद महासागर क्षेत्र के छोटे देशों की क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर देता है वहीं, चीन उन पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करता है। चीन ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के माध्यम से छोटे देशों को ऋण देकर उन पर अपनी दादागिरी चलाना चाहता है। इसके अलावा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक और प्रोजेक्ट ‘वन बेल्ट, वन रोड’ भी है। इस प्रोजेक्ट के तहत चीन यूरोप, एशिया और अफ्रीका को सड़क और समुद्र के रास्तों के जरिए जोड़ने की बात करता है।

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भारत को चीन से निपटने में मिलेगी मदद

इंडोनेशिया में दोनों देशों के संयुक्त उपक्रम में बन रहा सबांग डीप-सी पोर्ट दक्षिणपूर्वी एशिया में भारत को और मज़बूती देने का काम करेगा। भारत इससे चीन के प्रभुत्व को टक्कर देने में कामयाब रहेगा। इंडो-पैसिफिक रणनीति काे धार देने में यह पोर्ट महत्वूपर्ण भूमिका अदा करेगा। हाल में भारत का एक कोस्ट गार्ड जहाज ‘विजित’ 17 से 20 मार्च तक के लिए सबांग दौरे पर था। माना जा रहा है ये सबांग डीप सी पोर्ट भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति के लिए काम का साबित होगा। इंडोनेशिया में बन रहे इस भारतीय बंदरगाह से साउथ ईस्ट एशियन मार्केट में भारत की पहुंच और आसान होगी। ये ऐसे समय में रणनीतिक बचाव का काम भी करेगी, जब चीन स्ट्रेट ऑफ मलक्का में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

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भारत ने एक्ट ईस्ट के लिए अपनी नीति को अपग्रेड अपग्रेड किया

इंडोनेशिया और भारत दोनों देशों ने अपनी-अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत मैरीटाइम कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए पिछले साल इस पोर्ट के निर्माण की योजना को लॉन्च किया था। दोनों देश कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के जरिए एक-दूसरे की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले साल मई में जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इंडोनेशिया के दौरे पर गए थे, तो दोनों देशों ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मैरीटाइम सहयोग को लेकर साझा नजरिया जाहिर किया था।

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गौरतलब है कि लुक ईस्ट पॉलिसी के बावजूद, तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव के दिनों के बाद आसियान देशों के साथ भारत का रिश्ता काफी हद तक व्यापार आधारित रहा है। इंडो-पैसिफिक समुद्र में चीन की बढ़त नया नज़रिया है। इसलिए, भारत सरकार ने एक्ट ईस्ट के लिए अपनी नीति को अपग्रेड करने का काम किया है।

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