अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ अपने शिखर सम्मेलन के समापन के बाद, उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग हाल में कुमसुसन मेमोरियल पैलेस पहुंचे जो आजकल लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पैलेस में किम ने करोड़ों रूपये खर्च कर आज भी अपने पिता किम जोंग-इल और दादा किम इल-सुंग की लाशों को वैसे ही संभाल कर रखा हुआ है। पैलेस के सामने से गुजरने वाले हर शख्स को तीन बार झुककर नमन करना होता है।
किम जोंग ने पिता और दादा के शवों को एम्बामिंग तकनीक की मदद से सुरक्षित कर रखा है जिसके लिए पहली बार करीब 1 करोड़ 41 लाख खर्च किए गए।
लेनिन लैब करती है लाशों की देखभाल
लेनिन लैब मॉस्को की एक वैज्ञानिक टीम है। यहां के वैज्ञानिक एम्बामिंग तकनीक के जरिए लाशों को फ्लेक्सिबल और उनकी स्किन को वैसी ही बनाए रखते हैं। किसी भी लाश की एम्बामिंग में कई महीनों का समय लगता है, किम जोंग के पिता और दादा की बॉडी की एम्बामिंग में करीब डेढ से दो साल का समय लगा।
गौरतलब है कि इसी लेनिन लैब के वैज्ञानिक सोवियत संघ के व्लादिमीर लेनिन के शरीर को भी 1924 से एम्बामिंग के जरिए सुरक्षित रख रहे हैं। एम्बामिंग से पहले वैज्ञानिक ममीफिकेशन तकनीक के जरिए बॉडी को संरक्षित रखते थे, लेकिन एम्बामिंग में शरीर की स्किन का लचीलापन वैसा ही बना रहता है।
क्या होती है एम्बामिंग ?
शव को खराब होने से बचाने के लिए और काफी लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में एक खास तरह का लेप पूरे शरीर पर लगाया जाता है। इसी प्रक्रिया को एम्बामिंग कहा जाता है। एम्बामिंग करने के बाद मृत शरीर को किसी भी प्रकार के इंफेक्शन से बचाने के साथ शरीर में से आने वाली बू भी रोकी जा सकती है।
एम्बामिंग में जो लेप लगाया जाता है उसे एम्बामिंग फ्लूइड कहते हैं। इस लेप को कई खास तरह के केमिकल जैसे फॉर्मलडिहाइड, ग्लूटरल्डेहाइड, मेथेनॉल , इथेनॉल, फेनोल और पानी को मिलाकर बनाया जाता है। लेप को शरीर पर लगाने के साथ ही शरीर के अंदर इंजेक्शन से भी दिया जाता है। एम्बामिंग के बाद शरीर डीकंपोजिट होना बंद हो जाता है।