जानिए अनुच्छेद 35-ए को, जिसकी वजह से कश्मीर में हालात बद से बदत्तर हो गए

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जिस कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है वो ही नरक में बदलती जा रही है। रविवार की रात घाटी के लिए सबसे लंबी रात भी कही जा सकती है। जम्मू- कश्मीर में रविवार रात अचानक धारा 144 लागू कर दी गई। यहां इंटरनेट, मोबाइल सेवा के साथ ही लैंडलाइन सेवाओं को भी ठप्प कर दिया गया है। इससे पहले कारगिल के समय कश्मीर में इस तरह के हालात थे। मगर उस समय भी लैंडलाइन फोन सेवा को बंद नहीं किया गया था। आप समझ सकते हैं कि अब हालात उसे भी बदत्तर होते नजर आ रहे हैं। कश्मीर में महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं को नजरबंद कर दिया गया है।

नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के घर पर एक बैठक में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35- ए को रद्द करने की कोशिश को लेकर हुई। इस बैठक में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजनीतिक दलों के नेताओं ने कश्मीर के हालातों पर चर्चा की। जब भी संविधान के इस अनुच्छेद की बात होती है कश्मीर के हालात नाजुक हो जाते है। क​हा जा सकता है कि इस अस्थायी अनुछेद की वजह से ही कश्मीर के लोगों का जीवन नरक बनता जा रहा है।

हम आपको समझाते हैं कि आखिर अनुच्छेद 370 और 35- ए में कश्मीर को भारत के दूसरे राज्यों से कैसे अलग- थलग करने की कोशिश की गई है।

– अनुच्छेद 35-ए संविधान का वह अनुच्छेद है जो जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर प्रावधान करता है कि वह राज्य में स्थायी निवासियों को परिभाषित कर सके।
– वर्ष 1954 में 14 मई को राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35 A जोड़ दिया गया। अनुच्छेद- 370 के तहत यह अधिकार दिया गया है।
– साल 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बना जिसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया.
-जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक, स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 सालों से राज्य में रह रहा हो, और उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।

अनुच्छेद 35—ए ने ऐसे भारत से अलग किया कश्मीर को
– संविधान में जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा
– 1954 के राष्ट्रपति के आदेश से ये संविधान में जोड़ा गया
– इसके तहत राज्य के स्थायी निवासियों की पहचान होती है
– जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग संपत्ति नहीं ख़रीद सकते
– बाहरी लोग राज्य सरकार की नौकरी नहीं कर सकते और यहां कोई व्यापारी भी काम नहीं कर सकता।

आर्टिकल 35A के विरोध में दलील
– कश्मीर में बसे बहुत से लोगों को कोई अधिकार नहीं
– 1947 में जम्मू में बसे हिंदू परिवार अब तक शरणार्थी हैं।
– ये शरणार्थी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सकते
– सरकारी शिक्षण संस्थान में दाख़िला नहीं ले सकते
– निकाय, पंचायत चुनाव में वोटिंग करने का भी इन्हे अधिकार नहीं
– खुद भारत की संसद राज्य सरकार की अनुमति के बिना यहां रक्षा, विदेश मामलों और संचार के अलावा किसी मामले में कानून नहीं बना सकती।

अनुच्छेद 370 के पक्ष में नहीं थे अंबेडकर

बताया जाता है कि डॉ भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 के पक्ष में नहीं थे। लिहाजा इस अनुच्छेद को संविधान में जोड़ने का प्रस्ताव शेख अब्दुल्ला ने रखा था और यह अनुच्छेद मामूली चर्चा के बाद संविधान में जोड़ दिया गया। इस अनुच्छेद को लेकर संसद में गंभीरता से चर्चा भी नहीं की गई थी। अंबेडकर ने कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर की पॉलिसी को लेकर खुश नहीं है।

अनुच्छेद 370 ने ही कश्मीर में अलगाववाद की भावना को बढ़ावा दिया

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट में एक एनजीओ ने याचिका दायर कर इस अनुच्छेद को एक भारत की भावना के खिलाफ और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला प्रावधान बताया। इस याचिका में अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370 की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। इस याचिका में तर्क दिया गया कि आजादी के बाद देश का संविधान बनाने के लिए जो संविधान सभा बनी थी उसमें जम्मू-कश्मीर के 4 प्रतिनिधि भी शामिल थे। साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य को कभी भी स्पेशल स्टैटस नहीं दिया गया। ये भी तर्क दिया गया कि 35-ए एक अस्थायी उपबंध था जिसे राज्य में हालात को उस समय स्थिर करने के लिए जोड़ा गया था। इस अनुच्छेद को संविधान के निर्माताओं ने नहीं बनाया।

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