इतिहास ने अक्सर कस्तूरबा गांधी को उनके पति मोहनदास करमचंद गांधी की परछाई की तरह ही बयां किया है। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है, लेकिन देश की भलाई और संघर्ष के दिनों में कस्तूरबा की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। कस्तूरबा को पढ़ना और लिखना नहीं सिखाया गया था, हालांकि युवा अवस्था में ही उन्होंने पारिवारिक बंधनों को छोड़कर अपना सारा ध्यान व पूरा जोर देश की आज़ादी के लिए लगा दिया था। आज 11 अप्रैल को कस्तूरबा गांधी की 154वीं जयंती है। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
महज 13 साल की उम्र में हो गया था विवाह
कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल, 1869 को वर्तमान गुजरात राज्य के पोरबंदर में एक आर्थिक रूप से मजबूत और प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनका मात्र 13 साल की उम्र में मोहनदास करमचंद यानि महात्मा गांधी से वर्ष 1883 में विवाह हो गया था। जैसा कि गांधी की आत्मकथा ‘द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ में बताया गया है, जिसे दो भागों में पब्लिश किया गया था। कस्तूरबा ने अपने शादी के पहले कुछ साल एक रूढ़िवादी परिवार की औरत की तरह ही गुजारे। इस दौरान महात्मा गांधी काम के सिलसिले में परिवार से दूर रहे और कस्तूरबा ने घर पर रहकर ही चार बच्चों को सार-संभाल की।
जब पूरी जिंदगी नोटबुक में लिखने से किया इंकार
कस्तूरबा गांधी ने अपने जीवन में कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की, लेकिन वे ज़िंदगी भर शिक्षा के लिए जिज्ञासु रही और चीजों को तेजी से समझ लेती थीं। कस्तूरबा की एक किताब में लिखा है कि महात्मा गांधी ने उन्हें एक बार कहा था कि जब तक वह अपने बच्चे जैसी लिखावट में सुधार नहीं करती, तब तक वह उसे नोटबुक नहीं देंगे। इसके बाद उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी नोटबुक में लिखने से इंकार कर दिया। महात्मा गांधी ने भी कई बार अपनी आत्मकथा में पत्नी कस्तूरबा का जिक्र किया।
उन्होंने लिखा कि जब भी वे अपनी इच्छाओं और मर्जी को कस्तूरबा पर चलाते थे। हर बार कस्तूरबा मानती नहीं थीं। उन्होंने लिखा, ‘मेरे पहले के अनुभव के अनुसार, वह यानि कस्तूरबा बहुत ही अड़ियल थी। मेरे सारे दबाव के बावजूद वह अपनी इच्छानुसार काम करती। इससे हमारे बीच कम या लंबे समय के लिए मनमुटाव चलता रहता था। लेकिन जैसे-जैसे मेरे पब्लिक जीवन का विस्तार हुआ, मेरी पत्नी खुश रहने लगी और जान-बूझकर मेरे काम में खुद भी खो गई।’
लंबे समय तक अकेलेपन का सामना किया
कस्तूरबा गांधी ने अपने जीवन में लंबे समय तक अकेलेपन का सामना किया। उन्होंने ऐसा तब सबसे ज्यादा महसूस किया जब महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में राजनीति और न्याय के लिए लड़ाई लड़ीं। इस दौरान कस्तूरबा ने अपनी लीडरशिप टैलेंट को सुधारा। वे अपने फैसले अच्छे से किया करती थी। उन्होंने अपनी छवि का इस्तेमाल अच्छी चीजों के लिए किया। जैसा कि महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो’ जैसे आंदोलनों की शुरुआत की और कस्तूरबा इन आंदोलनों में एक फ्रंट-लाइनर की भूमिका में थीं।
महात्मा गांधी को हिरासत में लिए जाने पर वे अक्सर आंदोलनों की अगुवाई करतीं। एक बार कस्तूरबा ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश को संबोधित करते हुए एक अच्छा और प्रभावी भाषण लिखा था। जिसके कुछ वाक्य हैं, ‘भारत की महिलाओं को अपना उत्साह साबित करना होगा। जाति या पंथ की परवाह किए बग़ैर वे सभी इस संघर्ष में शामिल हों। सत्य और अहिंसा हमारे पहरेदार होने चाहिए।’
कस्तूरबा ने ही शुरू किया था साबरमती आश्रम
कस्तूरबा गांधी अक्सर जनता को संबोधित करती और उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करती थीं। उन्होंने ही ‘साबरमती आश्रम’ शुरू किया था, जिसके लिए मुख्य रूप से महात्मा गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया। वर्ष 1906 में जब गांधी ने ‘शुद्धता’ का संकल्प लिया तो उन्होंने महात्मा गांधी की पसंद को पहचाना और इसको कबूल किया। कस्तूरबा के अपने आदर्श थे, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने बच्चों सहित अन्य लोगों को उनकी इच्छा के अनुसार काम कराने या झुकाने का प्रयास नहीं किया।
दक्षिण अफ्रीका में तीन माह जेल में बंद रही थी ‘बा’
सामाजिक स्वतंत्रता के लिए कस्तूरबा गांधी की लड़ाई भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष से बहुत पहले शुरू हुई। उन्होंने महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान इसकी शुरूआत की। साल 1913 में दक्षिण अफ्रीका में ऐसा कानून पास हुआ, जिससे ईसाई मत के अनुसार किए गए और विवाह विभाग के अधिकारी के यहां दर्ज किए गए विवाह के अतिरिक्त अन्य विवाहों की मान्यता अग्राह्य (ग्रहण के अयोग्य) की गई थी।
दूसरे शब्दों में हिंदू, मुसलमान, पारसी आदि लोगों के विवाह अवैध करार दिए गए और ऐसी विवाहित स्त्रियों की स्थिति पत्नी की न होकर रखैल सरीखी बन गई। इसके कानून के विरोध में कस्तूरबा ने कुछ अन्य महिलाओं के साथ आंदोलन किया, जिसके लिए उन्हें तीन महिलाओं के साथ 3 महीने की जेल की सज़ा दी गई। फलाहार के कारण कस्तूरबा को तीन महीने जेल में आधे पेट भोजन पर रहना पड़ा। जब वे जेल से छूटीं तो उनका शरीर ठठरी (हड्डियों का ढांचा, कंकाल) मात्र रह गया था।
भारत छोड़ों आंदोलन में गिरफ्तार किया गया
कस्तूरबा गांधी की ‘असहयोग’ और ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में सक्रिय उपस्थिति थी। वे अपनी ज्यादा उम्र के बावजूद जनता को अंग्रेजों के ख़िलाफ़ अहिंसक आंदोलन में ले गईं। आखिरी बार उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी सक्रियता के लिए गिरफ्तार किया गया था। पुलिस द्वारा गलत व्यवहार के कारण उनके शरीर पर काफ़ी तनाव पड़ा। कस्तूरबा गांधी ने 22 फ़रवरी, 1944 को इस दुनिया से अलविदा कह दिया था यानि आज़ादी से तीन साल से पहले ही। भारत में ‘बा’ से नाम से विख्यात कस्तूरबा अपने आप में एक बड़ी शख्सियत थीं। उन्हें सिर्फ़ महात्मा गांधी की पत्नी भर कहना इतिहास और सच्चाई से मुंह मोड़ने जैसा होगा।
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