क्या भारत मंदी का सामना कर रहा है?

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किन चीजों से पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है?

अर्थव्यवस्था वास्तव में धीमी हो रही है। कई अर्थशास्त्रियों ने भी इस बात पर गौर किया है। अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों ने 6 से आठ महीने से इस पर नजर बनाई हुई है। उदाहरण के लिए अप्रैल-जून 2018 के दौरान पैसेंजर व्हीकल की बिक्री में लगभग 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई थी जिसके बाद सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने अक्टूबर 2018 और जनवरी 2019 को छोड़कर सभी महीनों में बिक्री में गिरावट देखी जिसमें 2 प्रतिशत से भी कम की बिक्री देखी गई।

महिंद्रा के लिए ट्रैक्टर की बिक्री में भी दिसंबर 2018 के बाद गिरावट आई है। महिन्द्रा के पास 40 प्रतिशत से अधिक मार्केट शेयर है। इस साल जनवरी में ये फ्लेट ही था और फरवरी में भी वापस नीचे गिरा। दिसंबर से दोपहिया वाहनों की बिक्री शुरू हुई। दो सबसे बड़े दोपहिया निर्माता हीरो मोटोकॉर्प और होंडा मोटरसाइकिल इंडस्ट्री के तीन-चौथाई एडिशन को कवर करते हैं इनमें भी इस दौरान गिरावट दिखाई दी। इस महीने की शुरुआत में मारुति सुजुकी ने मार्च के लिए कार उत्पादन में 25 फीसदी की कटौती की। मारूति की ये घोषणा कहीं ना कहीं खतरे की घंटी है।

अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों की चिंता की बात यह है कि गैर-विवेकाधीन वस्तुओं जैसे कि खाद्य पदार्थों के प्रसार की खपत में कमी का संकेत है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि अब विवेकाधीन वस्तुओं जिसमें कार, बाइक जैसी वस्तुओं का उत्पादन शामिल है केवल उन्हीं पर इसका प्रभाव पड़ेगा। हम सभी को पता है कि भारत उपभोग-प्रधान अर्थव्यवस्था बनी हुई है जिसका मतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था बढ़ती है या इसी बात पर निर्भर है कि हम भारतीय बहुत ज्यादा चीजों का इस्तेमाल या उपभोग करते हैं। देश के सकल घरेलू उत्पाद में उपभोग व्यय या कनजप्शन एक्पेन्डिचर का लगभग 56 प्रतिशत योगदान है।

मैक्रो इंडिकेटर्स भी इस मामले में अच्छे सिग्नल नहीं दे रहे हैं। आठ मुख्य चीजें इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, कोयला, बिजली, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और रिफाइनरी उत्पाद औद्योगिक उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत कवर करते हैं। साल जनवरी में 1.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि पिछले महीने 2.8 प्रतिशत तक थी। दिसंबर 2018 में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि 2.6 प्रतिशत थी वो भी घटकर जनवरी 2019 में 1.7 प्रतिशत हो गई। जनवरी 2018 में घटकर यह 7.5 प्रतिशत हो गई थी।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय का अनुमान है कि मार्च 2019 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों (अप्रैल-जून 2018, जुलाई-सितंबर 2018 और अक्टूबर-दिसंबर 2018) में जीडीपी की वृद्धि दर क्रमश: 8 प्रतिशत, 7 प्रतिशत, 6.6 प्रतिशत और 6.6 प्रतिशत थी। यह दिखाता है कि अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है।

यह धीमा क्यों हो रहा है?

यह अपने आप में एक बड़ा ही कठिन सवाल है। उदाहरण के लिए पैसेंजर वाहनों की मांग इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही (सितंबर 2018 की शुरुआत) के दौरान कई कारणों से कम हो गई जिमसें उच्च ब्याज दर, उच्च ईंधन की कीमतें और लोन की कमी। इंडस्ट्री में कई लोगों का कहना है कि उपभोक्ताओं ने केवल वाहनों की खरीद के निर्णय को आगे कि यह सुझाव देते हुए कि इस मांग का कोई स्थायी डिसट्रक्शन नहीं है।

एक बड़े लेवल पर कट्टर नीति नोटबंदी और GST के लागू करने के कारण भी इस मार्केट पर नेगेटिव प्रभाव पड़ा है। भारत काफी हद तक एक नकदी अर्थव्यवस्था रहा है और अनौपचारिक क्षेत्रों में इन दोनों ही नीतियों से बड़ा झटका लगा। कैश को सिस्टम से बाहर कर दिया गया था, और कई छोटे व्यवसाय को जीएसटी का सामना नहीं कर पाते हैं।

सर्कुलेशन पोस्ट डिमैनेटाइजेशन में मुद्रा लगभग एक प्रतिशत गिर गई, लेकिन मार्च 2018 तक सकल बैंक लोन एकल अंकों में रहा। लेकिन पिछले दो वर्षों में, बैंक लोन धीमा हो गया क्योंकि बैंकों को खराब लोन के लिए उच्च प्रावधान करना पड़ा। खुदरा और व्यवसायों ने लोन का उपयोग करना काफी मुश्किल पाया।

हमें मंदी के बारे में कितनी चिंता होना चाहिए?

एक धीमी अर्थव्यवस्था हमेशा दर्द देती है। सीधे शब्दों में कहें तो यह लोगों की आय को प्रभावित करता है और नौकरी पैदा नहीं करता है। इस साल जनवरी में सरकार ने 2017-18 के विकास के अनुमान को संशोधित कर 6.7 प्रतिशत के पहले के अनुमान से 7.2 प्रतिशत कर दिया। इसने 2016-17 में वास्तविक विकास दर (नोटबंदी के वर्ष) को संशोधित कर पहले के अनुमानित 7.1 प्रतिशत को 8.2 प्रतिशत कर दिया।

इन तीखे संशोधनों का अर्थशास्त्रियों ने भारी संघर्ष किया। 2014-15 और 2015-16 में, मौजूदा सरकार के पहले दो वर्षों में, अर्थव्यवस्था क्रमशः 7.1 प्रतिशत और 8.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी। सरकार को उम्मीद है कि 2018-19 में अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी, जो 2017-18 में 7.2 प्रतिशत से धीमी है।

चीजों को और बारीकी से समझने के लिए आइए हम देखें कि दुनिया भर में क्या हो रहा है। 2017 में 3.1 प्रतिशत बढ़ने के बाद, विश्व अर्थव्यवस्था के 2018 में 3 प्रतिशत तक धीमा होने का अनुमान है। और 2019 के लिए दृष्टिकोण यह बताता है कि यह अगले दो वर्षों में 2.8 प्रतिशत तक धीमा हो जाएगा। अमेरिका और यूरो क्षेत्र दोनों के लिए आने वाले तीन वर्षों में संभावनाएं कम नहीं हैं निरंतर धीमा होने की ओर इशारा हो रहा है।

चीन की जीडीपी विकास दर 2021 में 6 प्रतिशत घटकर 2018 के मुकाबले 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। विश्व बैंक की नवीनतम वैश्विक आर्थिक संभावनाओं के अनुसार, भारत को 2021 तक हर साल 7.5 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है। भारत, अपनी क्षमता को देखते हुए निश्चित रूप से 8-10 प्रतिशत वृद्धि की कक्षा में कूद सकता है। इसलिए स्वाभाविक रूप से, भारत के भीतर अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है हांगकांग और न्यूयॉर्क में निवेशक भारतीय ग्रोथ की कहानी का जश्न मना रहे हैं। यह शायद विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार में डाले जा रहे अरबों डॉलर के बारे में बताता है। भारत वैश्विक निवेशकों के लिए काफी लाभदायक साबित हुआ है।

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