क्या वाकई EVM को हैक किया जा सकता है ? पूरा झोल यहां समझिए

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अमेरिकी साइबर एक्सपर्ट सैयद शुजा ने दो दिन पहले लंदन में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में हैकिंग को लेकर कई अहम खुलासे किए, जिसके बाद सरकार और चुनाव आयोग के कान खड़े हो गए हैं। शुजा ने 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत को ईवीएम हैकिंग का नतीजा बताया वहीं बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे की हत्या में भी ईवीएम का पेंच बताया।

हालांकि हैकर शुजा अपने दावों को साबित करने के लिए किसी तरह का कोई सबूत पेश करने में नाकामयाब रहा तो वहीं भारत निर्वाचन आयोग ने शुजा के दावों को नकारते हुए कहा कि भारत में इस्तेमाल की जाने वाली ईवीएम मशीन पूरी तरह से सुरक्षित हैं। लेकिन फिर भी हैकर के किए इन दावों के बाद हर कोई ईवीएम को शक की निगाहों से देख रहा है।

ऐसे में यह जानना जरूरी हो गया है कि क्या वाकई में ईवीएम हैक की जा सकती है? आइए समझते हैं इसके कुछ तकनीकी दावपेच।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में हैकिंग को लेकर चुनाव आयोग की साख पिछले काफी समय से दाव पर है, लेकिन चुनाव आयोग हर बार ईवीएम हैकिंग के दावों को खारिज करता आ रहा है। हैकिंग के इन्हीं दावों के बीच लगातार बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की मांग भी जोरों-शोरों से उठती रही है।

ईवीएम की सुरक्षा विशेषताएं (चुनाव आयोग के अनुसार)

चुनाव आयोग ईवीएम को पूरी तरह सुरक्षित बताता आया है और इसे टेंपर करने की बातों को महज झूठे दावे बताता है। चुनाव आयोग कहता है-

– ईवीएम कंप्‍यूटर ऑपरेटेड मशीन नहीं है और यह पूरी तरह से स्वतंत्र मशीन है।

– ईवीएम को किसी रिमोट डिवाइस से हैक या ऑपरेट नहीं किया जा सकता है।

– ईवीएम में वायरलेस या कोई भी हार्डवेयर पोर्ट के लिए कोई रिसीवर नहीं लगा है।

– ईवीएम में लगी कंट्रोल यूनिट (सीयू) और बैलेट यूनिट (बीयू) केवल एन्क्रिप्टेड या डाइनामिकली डेटा लेता है।

गौरतलब है कि ईवीएम को भारत इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स लिमिटेड, बैंगलुरु और इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद बनाती हैं।

कैसे बनाया जाता है सॉफ्टवेयर?

ईवीएम को बनाने वाली कंपनी इसके लिए विशेष सॉफ्टवेयर तैयार करती है जिसके लिए प्रोग्राम लिखा जाता है। प्रोग्राम को मशीन कोड में कन्‍वर्ट कर विदेशों से इसके लिए चिप तैयार करवाई जाती है। हर माइक्रोचिप में एक यूनिक आईडेंटिफिकेशन नंबर होता है।

क्या ईवीएम बनाने वाले कुछ गड़बड़ कर सकते हैं?

चुनाव आयोग इस बात को भी नकारता है और कहता है कि ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि ईवीएम की सुरक्षा के लिए सॉफ्टवेयर पर कई प्रोटोकोल होते हैं। ईवीएम पूरी तरह से तैयार होने के बाद ही किसी राज्य या जिले में भेजी जाती है। ऐसे में ईवीएम बनाने वाली कंपनी या निर्माता ये पहले नहीं जान पाता है कि कहां से कौनसा उम्मीदवार चुनाव लड़ने जा रहा है।

सीरियल नंबर से जुड़ी होती है हर ईवीएम

चुनाव आयोग ईवीएम की सुरक्षा को लेकर कहता है कि हर ईवीएम एक यूनिक सीरियल नंबर से जुड़ी होती है जिसकी वजह से इसके डेटा ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर के कारण आसानी से मशीन की लोकेशन का पता लगाया जा सकता है।

वीवीपैट का जन्म कैसे हुआ ?

ईवीएम की विश्वसनीयता कायम रखते हुए चुनाव आयोग वीवीपैट यानि वोटर वेरीफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल लेकर आया। इसे ईवीएम मशीन के साथ जोड़ा जाता है जहां ईवीएम पर बटन दबाते ही जिसको आपने वोट दिया है उसके चुनाव चिह्न की पर्ची और उसका नाम छपता है। वोटर इसके जरिए आशवस्त हो सकता है कि उसने किसे वोट दिया है।

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